यह एक सच्चाई है कि दुनिया केवल आपकी हार्ड पावर, जैसे -आर्थिक या सैन्य शक्ति से ही प्रभावित नहीं होती, वो आपकी सॉफ़्ट पावर, जैसे- कल्चर, सिनेमा, खेल वगैरह से कहीं ज़्यादा प्रभावित होती है. दुनियाभर की निगाहें खेल के महाकुंभ ओलंपिक पर लगी हुई हैं, दुनियाभर का मीडिया मौजूद है. ये इवेंट बहुत बढ़िया मौका देता है कि आप दुनिया के सामने अपनी छाप छोड़ सकें. लेकिन क्या वजह है कि 140 करोड़ की आबादी वाला हमारा देश इन खेलों में मेडल के लिए तरसता रह जाता है? इसी बात का गहराई से आकलन किया है भगवान दास ने.
अभी कुछ दिन पहले कुछ मित्रों से मुलाकात हुई. तब हाल में ही भारत ने टी 20 वर्ल्ड वर्ल्ड कप जीता था. सबने कहा- भारत ने इतिहास रच दिया, ये वर्ल्ड कप जीतकर बहुत उम्दा जीत हासिल की. मेरे विचार अलग थे, मैंने कहा- इस खेल को दुनिया में जानता कौन है? ब्रिटेन के अलावा कुछ 5-6 देश, जो पहले ब्रिटिश कॉलोनी थे, वहीं खेलते हैं इसे. उन्हीं में मुकाबला होता है, आप विश्व कप नहीं, बल्कि एक 5-6 देशों का कप खेल रहे होते है. कुछ देशों जैसे कीनिया, जिम्बाब्वे और आयरलैंड को जबरन बुला लिया जाता है, जिससे 12 देशों का एक कोरम बन जाए और इस प्रतियोगिता को विश्व कप कहा जा सके. अगर आप ये विश्व कप जीत भी गए तो इन्हीं 5-6 देशों में ख़बर बनेगी. दुनिया की अधिकतर आबादी को मालूम ही नहीं है कि ये खेल है क्या और इसका विश्व कप किसने जीता. मेरे मित्र मुझसे असहमत थे, उन्होंने कहा- ये हमारा खेल है और इसमें हम अच्छा कर रहे हैं. मैं आगे क्या कहता? बहस वहीं ख़त्म हो गई.
आज ओलिंपिक के मुकाबले ख़त्म होने जा रहे हैं. अमेरिका और चीन में होड़ लगी हुई है कि कौन नंबर 1 आता है? दोनों 30 के आसपास गोल्ड मेडल जीत चुके हैं और मुकाबला चल ही रहा है. हमारी स्थिति बताने लायक भी नहीं है. आलेख लिखे जाने तक भारत केवल 1 सिल्वर और 5 ब्रॉन्ज़ के साथ मेडल टेली में 71वें नंबर पर है. 140 करोड़ का देश, जिसकी जनसंख्या दुनिया में सबसे ज़्यादा है, 1 अदद गोल्ड मेडल के लिए तरस रहा है!
दुनियाभर की निगाहें खेल के इस महाकुंभ पर लगी हुई हैं, दुनियाभर का मीडिया मौजूद है. ये इवेंट बहुत बढ़िया मौका देता है, अगर आप दुनिया के सामने अपनी छाप छोड़ना चाहते हैं. दुनिया केवल आपकी हार्ड पावर जैसे आर्थिक या सैन्य शक्ति से प्रभावित नहीं होती, वो आपकी सॉफ़्ट पावर, जैसे- कल्चर, सिनेमा, खेल से ज़्यादा प्रभावित होती है. आज जो देश ओलम्पिक मेडल तालिका में पहले 10-15 नंबर पर हैं, मेडल पे मेडल ला रहे हैं, दुनिया उन्हें सलाम करेगी. और जो देश पहले 50 में भी नहीं है, दुनिया उनका नाम भी याद नहीं रखेगी.
सच्चाई तो ये है कि बहुत से देश, जिनका नाम भी आपको मालूम नहीं, जैसे- सेंट लूसिया, जमैका भी 1 गोल्ड मेडल जीत के हमसे आगे हैं. बताया जाता है कि सेंट लूसिया की आबादी मात्र 18 लाख है. दुनिया के नक्शे में ये देश कहां है, आपको ढूंढ़ना पड़ेगा. कई देशों ने बहुत अच्छा किया है, क्योंकि वो एक रणनीति और प्लानिंग के तहत काम कर रहे है. मिसाल के तौर पे साउथ कोरिया ने शूटिंग और आर्चरी में अपने आप को विश्व में नंबर 1 बनाया हुआ है. केवल इन्हीं दोनों खेलों के दम पर वो 13 गोल्ड जीतकर मेडल टेली में वो 7वें स्थान पे है. ईरान ने कुश्ती में महारत हासिल की हुई है, वो भी मेडल टेली में 20 स्थान पे है. छोटे देशों ने कुछ खेलों को पकड़कर अपने आप को मेडल टेली में प्रासंगिक बनाया हुआ है. मैराथन और मिडिल डिस्टेंस रनिंग में कीनिया जैसे देश ने महारत हासिल की हुई है, केवल उसमें ही वो 2-3 गोल्ड ले आता है.
लेकिन भारत के पास आज भी कोई रणनीति नहीं है, कोई प्लानिंग नहीं है. मेडल केवल देश के युवा ला सकते हैं, लेकिन उन्हें अफ़ीम के समान क्रिकेट बेचा जा रहा है. मेरा अपना मानना है कि भारत में क्रिकेट एक ओवर रेटेड खेल है. ये खेल देश को ऐसे बेचा जा रहा है, जैसे- इसके आगे कुछ भी नहीं और वो इसीलिए है कि इसमें पैसा बहुत आ रहा है. एक पूरी लॉबी है जो भरपूर पैसा बनाना चाहती है, इसमें क्रिकेटर ही नहीं, राजनेता भी हैं, कॉरपोरेट भी हैं, ये हज़ारों करोड़ का गेम है. बीसीसीआई की बागडोर हमेशा रूलिंग पार्टी से जुड़े किसी नेता के हाथ में होती है. आईपीएल जैसे टूर्नामेंट के ब्रॉडकास्ट राइट हजारों करोड़ में दिए जाते है. ये क्रिकेट की लॉबी अरबों रुपए में खेल रही है. बड़े बड़े प्लेयर्स की नेटवर्थ 1000 करोड़ के आसपास है. बीसीसीआई की कमाई अरबों में है.
कल्पना कीजिए कल से जनता इस खेल को देखना बंद कर दे तो क्या होगा? ये पूरी क्रिकेट लॉबी की कमाई बंद हो जाएगी. इसीलिए इसे जनता के बीच में एक प्रॉडक्ट के समान बेचा जाता है, जितना जनता इसको देखेगी, उतना ही इस लॉबी को फ़ायदा होगा. जैसा मैंने पहले कहा दुनिया के 90% लोग इस खेल को जानते ही नहीं हैं. आप विश्व कप जीत भी जाएं तो दुनिया के बस 5-6 देशों में ख़बर होगी. इसे मुख्यतया वो देश खेलते है जो पहले औपनिवेशिक काल में ब्रिटेन की कॉलोनी थे, जिन पर ब्रिटेन ने हुकूमत की.
ब्रिटेन आज भी ये खेल खेलता है, लेकिन ये उसका भी मुख्य खेल नहीं है. ब्रिटेन ने फ़ुटबॉल और ओलंपिक में होने वाले खेलों में अपनी पकड़ बनाए रखी है. अगर अभी होने वाले ओलम्पिक की मेडल टेली आप देखे तो ब्रिटेन 14 गोल्ड मेडल के साथ 6वें स्थान पर है और अपना दबदबा बनाया हुआ है. ओलंपिक के बाद दुनिया का सबसे लोकप्रिय खेल आयोजन विश्व कप फ़ुटबाल होता है, उसमें भी ब्रिटेन एक तगड़ी टीम है. पिछले विश्व कप फ़ुटबाल में वो क्वार्टर फ़ाइनल तक गई थी, जहां फ्रांस से 2-1 से हार गई. कहने का मतलब बस इतना है कि जिस देश ने हमें क्रिकेट खेलने की लत लगाई, वो इस खेल को इतनी गंभीरता से नहीं खेलता और अपना ज़ोर उन खेलों पे लगाता है जिससे दुनिया में उसका परचम बुलंद हो.
ऑस्ट्रेलिया की तरफ़ देखिए, वो लोग हर खेल खेलते हैं। ऑस्ट्रेलिया का हर नागरिक एक स्पोर्ट्सपर्सन है. वहां के स्कूलों, कॉलेजों में एक स्पोर्ट्स लेना अनिवार्य है. खेलों को अनिवार्य बनाने के पहले उन्होंने उसका बढ़िया इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया है, बढ़िया स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स हर स्कूल, कॉलेज में है. ऑस्ट्रेलिया केवल 2 करोड़ की आबादी के साथ ओलिंपिक में 18 गोल्ड मेडल लेकर तीसरे स्थान पे चल रहा है.
भारत भी चाहे तो तो कुछ चुनिंदा खेलो को ध्यान में रखकर अपनी रणनीति बना सकता है. कुश्ती, शूटिंग, बॉक्सिंग कुछ अच्छे ऑप्शन है. भारत में कुश्ती और अखाड़ों की परंपरा सदियों से रही है और इसके लिए भारत में टैलेंट स्वाभाविक रूप से मौजूद है. भारत भी कुछ ऐसे खेलों पे ध्यान केंद्रित करके अपनी प्लानिंग करे तो कोरिया और ईरान के समान मेडल टेली में सम्मान जनक स्थान पे पहुंच सकता है. इतने बड़े देश में टैलेंट की कोई कमी नहीं हो सकती. ज़रूरत है सही रणनीति की, प्लानिंग की और देश के नौजवानों को सही प्रेरणा देने की.
मैं क्रिकेट के ख़िलाफ़ नहीं हूं, क्रिकेट को खेलना चाहिए लेकिन ठीक वैसे ही जैसे ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया खेलते हैं. किसी भी देश की कोशिश ये होनी चाहिए कि उन खेलों पे ज़ोर दिया जाए, जिनसे उस देश का परचम पूरी दुनिया के सामने बुलंद हो.
अब ये तो भारत वासियों को ही तय करना है कि उन्हें पूरी दुनिया के सामने एक वैश्विक ताकत बनके उभरना है या फिर केवल 5-6 देशों में लोकप्रिय होना है. लेकिन आप भी मेरी तरह एक आम व्यक्ति है और इस सोच में है कि मैं एक अकेला क्या कर सकता हूं तो मेरी एक सलाह है कि आप कम से कम एक खेल खेलना शुरु कर दीजिए, क्योंकि खेलों की महाशक्ति आप तभी बनेंगे जब खेल आपके देश में एक जन आंदोलन यानी mass movement बनेगा.
-भगवान दास की कलम से
फ़ोटो साभार: फ्रीपिक