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Home ज़रूर पढ़ें

जानिए कहानी क्रिस्मस केक/फ्रूट केक की

कनुप्रिया गुप्ता by कनुप्रिया गुप्ता
December 24, 2021
in ज़रूर पढ़ें, ज़ायका, फ़ूड प्लस
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जानिए कहानी क्रिस्मस केक/फ्रूट केक की
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हर साल जब क्रिस्मस आता है क्रिस्मस केक की ख़ुशबू हवा में तैरने लगती है. लोग एक दूसरे को गिफ़्ट में फ्रूट केक देते हैं. कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो साल भर इस केक का इंतज़ार करते हैं, क्योंकि ज़्यादातर घरों में ये क्रिस्मस के टाइम ही बनता है. और कुछ लोग इसके लिए मजाक में कहते हैं कि इसे सिर्फ़ गिफ़्ट में ही नहीं दिया जाता, बल्कि कुछ लोग इसे खा भी लेते हैं! ये ठीक वैसा ही है, जैसा भारत में लोग दिवाली पर सोहन पपड़ी के लिए चुटकुले बनाते हैं, बिल्कुल इसी तरह चुटकुले यहां फ्रूट केक के लिए भी बनाए जाते हैं. तो जाते साल को विदाई देती क्रिस्मस की ठंडी हवाओं के साथ आज हम जानेंगे फ्रूट केक की कहानी.

यह तो आप भी मानेंगे कि बदलते वक़्त के साथ भारत में भी लोग फ्रूट केक के दीवाने होते जा रहे हैं. हमारे देश में कई ग़ैर-ईसाई लोग भी साल के इस वक़्त का दिल थाम के इंतज़ार करते हैं कि कब बेकरी पर ये केक मिलेगा.
लेकिन आप केवल इसके नाम पर मत जाइएगा, क्योंकि इसमें बस फ्रूट्स ही नहीं होते, इसमें डाले जानेवाले फ्रूट्स सूखे यानी ड्राइ होने चाहिए, जैसे- तरह तरह की रेज़िन्स और नट्स भी, जिन्हें शक्कर के पानी में भिगोया जाता है, कुछ लोग इनको “रम’’ (ऐल्कहॉल) में भी भिगोकर रखते हैं. और ये शक्कर और रम ही हैं, जो इस केक को लम्बे समय तक ख़राब नहीं होने देते. रम वाला केक तो कई कई सप्ताह तक ख़राब नहीं होता, क्योंकि ऐल्कहॉ,, केक को ख़राब करने वाले बैक्टीरिया को मार देता है, जिसके कारण ये लम्बे समय तक ख़राब नहीं होता.

फ्रूट केक का इतिहास: फ्रूट केक की कहानी 2000 साल पुरानी है. उस समय रोम में जौ के घोल में वाइन, अनार के दाने, पाइन नट्स और तरह तरह की रेज़िन्स मिलाकर ये केक बनाया जाता था. प्राचीन रोम में फ्रूट केक को एनर्जी बार के रूप में बनाया जाना शुरू किया गया था और इसे सैनिकों को युद्ध के समय दिया जाता था.
आज के समय जो फ्रूट केक मिलता है, वो बाद के कुछ समय में यूरोप में जन्मा इस फ्रूट केक में उस समय शहद और सूखे मेवों के साथ कुछ मसाले, जैसे- दालचीनी, जायफल आदि भी मिलाए जाने लगे, जिसके कारण इसका अलग ही स्वाद उभरकर सामने आया.
अट्ठारहवीं सदी में तो यूरोप में बटर और शक्कर से बने केक को बैन भी कर दिया गया था, क्योंकि ये खाने में बहुत ज़्यादा स्वादिष्ट और बहुत भारी था. उन्नीसवीं सदी से इसे यूरोप का ऑफ़िशल वेडिंग केक भी घोषित कर दिया गया था. वैसे अमेरिका और यूरोप का फ्रूट केक एक दूसरे से थोड़ा अलग होता है और भारत में बनने वाला फ्रूट केक तो काफ़ी अलग है.

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चले चलता ही रहे: फ्रूट केक को इसकी लम्बी शेल्फ़ लाइफ़ के कारण भी जाना जाता है. शक्कर और ऐल्कहॉल के कारण ये महीनों ख़राब नहीं होता. आप किसी फ्रूट केक एक्सपर्ट तो पूछेंगे तो कहेगा फ्रूट केक को बनाने के बाद तीन महीने तक रख देना चाहिए फिर काटना चाहिए, क्योंकि तब इसका स्वाद निखरकर आता है. और इसे काटना भी आसन हो जाता है. हालांकि ऐसा करने के लिए इस केक को बीच बीच में निकलकर इस पर स्पिरिट (ब्रांडी या रम) लगाया जाता है और इसे ठन्डी और अंधेरी जगह पर अच्छे से कपड़े में बांधकर रखा जाता है.

क़िस्से फ्रूट केक वाले: फ्रूट केक के क्रिस्मस के साथ जुड़ जाने के लिए ये बात भी फ़ेमस है कि ये समय अमेरिका में बर्फ़ का समय होता था और पहले के समय गर्मियों में आए फलों को अब तक संभालकर रखना संभव नहीं था तो फ्रूट्स को कैंडी में बदल दिया जाता था और फिर क्रिस्मस के समय इन फ्रूट कैंडीज को फ्रूट केक बनाने में प्रयोग में लिया जाता था.
फ्रूट केक की शेल्फ़ लाइफ़ सिर्फ़ कहनेभर के लिए लिए लम्बी नहीं है, अमेरिका में दो दोस्त हैं, जो 1950 से एक दूसरे को वही एक फ्रूट केक गिफ़्ट में देते हैं, पर सबसे पुराना फ्रूट केक जो अब भी खाने लायक है, वो १८७८ में बेक किया गया था और अभी भी अस्तित्व में है. सबसे बड़ी बात है कि लोगों ने ये केक खाए हैं और वो ठीक ठाक हैं, मतलब केक अब भी ख़राब नहीं हुए. इसीलिए फ्रूट केक को विश्व के सबसे लम्बे समय तक ख़राब न होनेवाले भोजन में शामिल किया गया है.

फ्रूट केक और हम: सच कहूं तो भारत में जो फ्रूट केक कभी खाया भी होगा, वो असल फ्रूट केक नहीं रहा, क्यूंकि वो फ्रूट केक की जगह टूटी फ्रूटी केक ज़्यादा होता है. यहां आने के बाद एक दोस्त ने फ्रूट केक बनाया और हम लोगों के घर पहुंचाया शक्कर और फ्रूट्स से बना वो केक सच में बहुत हैवी और टेस्टी था. अब फिर क्रिस्मस आ गया है, फिर फ्रूट केक खाया जाएगा. आप भी बताइएगा कैसा लगता है आपको फ्रूट केक? आप सबको क्रिस्मस और नए साल की शुभकामनाएं. जल्द ही मिलेंगे अगली कहानियों के साथ…

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कनुप्रिया गुप्ता

कनुप्रिया गुप्ता

ऐड्वर्टाइज़िंग में मास्टर्स और बैंकिंग में पोस्ट ग्रैजुएट डिप्लोमा लेने वाली कनुप्रिया बतौर पीआर मैनेजर, मार्केटिंग और डिजिटल मीडिया (सोशल मीडिया मैनेजमेंट) काम कर चुकी हैं. उन्होंने विज्ञापन एजेंसी में कॉपी राइटिंग भी की है और बैंकिंग सेक्टर में भी काम कर चुकी हैं. उनके कई आर्टिकल्स व कविताएं कई नामचीन पत्र-पत्रिकाओं में छप चुके हैं. फ़िलहाल वे एक होमस्कूलर बेटे की मां हैं और पैरेंटिंग पर लिखती हैं. इन दिनों खानपान पर लिखी उनकी फ़ेसबुक पोस्ट्स बहुत पसंद की जा रही हैं. Email: [email protected]

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