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मैं अपनी ख़ुशियों की ज़िम्मेदारी ख़ुद लेता हूं इसलिए ख़ुश रहता हूं और ख़ुशियां बांटता हूं: डॉ अबरार मुल्तानी

प्रमोद कुमार by प्रमोद कुमार
September 17, 2021
in ओए हीरो, ज़रूर पढ़ें, मुलाक़ात
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मैं अपनी ख़ुशियों की ज़िम्मेदारी ख़ुद लेता हूं इसलिए ख़ुश रहता हूं और ख़ुशियां बांटता हूं: डॉ अबरार मुल्तानी
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हिंदी माह में हिंदी के लिए, हिंदी में काम करनेवाली शख़्सियतों से रूबरू कराने के साक्षात्कार श्रृंखला हिंदी वाले लोग की तीसरी कड़ी में मिलें डॉ अबरार मुल्तानी से. देश में आयुर्वेदिक के जाने-माने चिकित्सक के तौर पर ख्याति प्राप्त डॉ मुल्तानी, कई बेस्ट सेलर किताबों के लेखक भी हैं. पिछले एक साल से वे बतौर प्रकाशक भी हिंदी के प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका निभा रहे हैं. हमने उनके इन्हीं विभिन्न भूमिकाओं के बारे में उनसे ख़ास बातचीत की.

कहते हैं मल्टी-टास्किंग महिलाओं का जन्मजात गुण होता है, पर डॉ अबरार मुल्तानी ने साबित कर दिया है कि अपने दिमाग़ की कंडिशनिंग करके हममें से हर कोई मल्टी-टास्कर बन सकता हैं. वे एक मशहूर और व्यस्त डॉक्टर हैं, चर्चित लेखक हैं और एक साल में 100 से क़रीब किताबें प्रकाशित कर चुके प्रकाशक भी हैं. इतना सब कुछ कैसे कर लेते हैं, हममें यह जानने की ललक तो थी ही, साथ ही हमने उनके हिंदी प्रेम पर भी बातचीत की.

एक डॉक्टर से लेखक बनने के बारे में कब सोचा?
मुझे पता नहीं था कि मेरे अंदर एक लेखक भी जी रहा है. मैंने मेरे पिता जी को एक बार पत्र लिखा था जब मैं ग्रैजुएशन कर रहा था तब. निजी नहीं था इसलिए उसे मेरे परिवार के कुछ लोगों ने पढ़ा. कई लोग उसे पढ़कर अचंभित हुए कि मैं इतना अच्छा लिख सकता हूं वह भी कुछ हटकर और सीधे दिल तक असर करने वाला. तब उन कुछ पारिवारिक पाठकों के प्रोत्साहन से मुझे लगा कि मैं लिख सकता हूं और मुझे लिखना ही चाहिए. फिर जीवन का एक लक्ष्य बनाया कि जो अच्छी बात पता चले उसे सबको बता दो और कभी किसी को ग़लत सलाह मत दो. यह लक्ष्य हर अच्छी बात पता चलने पर मुझे लिखने के लिए प्रेरित करते हैं. जीवन ऐसे ही जी कर नहीं ख़त्म करना. कुछ देकर जाना है दुनिया को. लेखन उसी के लिए है.
समाज के अलग-अलग वर्गों के सैकड़ों लोगों से रोज़ाना मिलने से अच्छा एक लेखक के लिए क्या हो सकता है भला. मेरे क्लीनिक का केबिन मेरे लेखन का पावरहाउस है. लोग बताते हैं और मैं लिखता हूं. लोग बताते हैं कि मुझे क्या लिखना चाहिए और मैं वह लिखता हूं. लेखन से हम अपने ज्ञान को, अपनी विधाओं को अनंत दूरी तक ले जा सकते हैं और अनंतकाल तक. इससे बड़ी मानवता की सेवा क्या हो सकती है?

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लेखन के लिए हिंदी चुनने की कोई ख़ास वजह?
हिंदी में इसलिए लिखा क्योंकि, हिंदी में अपने भावों को ऐसा के ऐसा कागज़ पर उतार सकता हूं. मातृभाषा के अलावा दूसरी भाषाओं में मन का प्रवाह बाधित होता है. बाद में हम उसे अंग्रेज़ी में अनुवादित कर लेते हैं लेकिन, पहली पांडुलिपि हिंदी में ही होती है.
हिंदी में क्यों लिखना चुना यह आम सवाल है. इसकी वजह यह है कि हिंदी वह सम्मान अभी तक नहीं पा पाई है जो उसे पाना चाहिए था. लेकिन अब पाठक बढ़ रहे हैं हिंदी के. पहले हिंदी की किताबें कुछ वरिष्ठ लोग ही पढ़ते हुए दिखते थे लेकिन अब युवा ज़्यादा पढ़ रहे हैं. हम अब भी गांव क़स्बों के पाठकों से दूर हैं जिनतक हमें पहुंचना चाहिए. भाषा का सरलीकरण ज़रूरी है उनके लिए. इसलिए हम लेखकों को उनका ख़्याल रखना चाहिए.
लैटिन, संस्कृत, अरबी, चाइनीज़ और अंग्रेजी की तरह हिंदी ज्ञान की भाषा नहीं बन पाई है अभी तक. हम लेखकों को अपने पाठकों को ज्ञान भी देना होगा अपनी किताबों के माध्यम से. ज्ञान की भाषा बने बगैर ना लेखक सम्मान पा सकता है, ना किताब और ना उसका पाठक. देखिए ना हमारी लाइब्रेरी में हम ज्ञान की भाषाओं की किताबों को हमेशा ऊपर या सामने स्थान देते हैं और अन्य भाषाओं की किताब को उससे निम्न. हम ट्रेनों और हवाई जहाजों में अंग्रेज़ी किताबों को शान से दिखाते हुए पढ़ते हैं जबकि हिंदी की किताबें नहीं… स्वयं हम हिंदी के लेखक और कर्ता-धर्ता भी. इस स्थिति के बदलने की उम्मीद के साथ मैं हिंदी लेखन में आया हूं.

एक लेखक होने की सबसे अच्छी और बुरी बात क्या है? आप इन दोनों ही स्थितियों को कैसे संभालते हैं?
लेखकों को लोग दिव्य दृष्टि से युक्त मनुष्य मानते हैं. उन्हें लगता है कि वह वह सर्वज्ञ होते हैं, उन्हें भूत और भविष्य के बारे में सब कुछ पता होता है. लेकिन, इस धरती पर कोई भी सर्वज्ञ नहीं होता. सबको कुछ पता होता है और बहुत सारा सभी के लिए अनजान.
सबसे अच्छी बात लेखकों के लिए यही है कि संसार उनको बहुत सम्मान की दृष्टि से देखता है. उनके लिए सबसे बुरी बात यह है कि वे हमेशा लोगों की अपेक्षाओं के भारी बोझ के तले दबे होते हैं. मैं यह कोशिश करता हूं कि लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरूं लेकिन, उन्हें यह भी बताता रहूं कि मैं भी सर्वज्ञ नहीं हूं.

जब इतने सारे प्रकाशक आपकी किताबें छाप रहे हैं तो ख़ुद प्रकाशन शुरू करने का फ़ैसला लेने की कोई ख़ास वजह?
यह मेरा सौभाग्य रहा है कि बहुत सारे प्रकाशक मुझसे जुड़ना चाहते थे और अब भी चाहते हैं. मुझे कभी ‘राइटर्स स्ट्रगल’ नहीं करना पड़ा. कभी रिजेक्शन का सामना नहीं हुआ. मुझे अपने पुराने प्रकाशकों से भी कोई शिकायत नहीं है. प्रकाशन इसलिए शुरू किया कि मेरी किताबों में गहरी रुचि है. मुझे यह लगा कि इसे व्यवसाय बनाना चाहिए. क्योंकि रुचि वाले व्यवसाय में हम दूसरे व्यवसायों से ज़्यादा अच्छा कर सकते हैं, यह दवाओं जितना लाभकारी व्यवसाय तो नहीं है लेकिन, यह उससे ज़्यादा मनभावन और रुचिकर है. मुझे इसमें मज़ा आया और मैंने अपनी किताबों के साथ-साथ दूसरे लेखकों और क्लासिक किताबों के हिंदी अनुवाद की शुरुआत की. और हम एक साल के छोटे से वक्त में 100 के क़रीब टाइटल पाठकों के लिए प्रकाशित कर चुके हैं.

आपको अपना कौन-सा रोल सबसे ज़्यादा पसंद है?
यह ख़ुदा की मेहरबानी है कि उसने मुझे सारे वह रोल दिए जिसमें मेरी दिलचस्पी है. मैं अपने डॉक्टर के रोल में भी ख़ुश हूं, लेखक के रोल में भी, दवाई निर्माता के रोल में भी, एनजीओ संचालक के रोल में भी और अब एक प्रकाशक के रोल में भी ख़ुश हूं. मुझे अपने सारे ही रोल बेहद पसंद हैं.

बतौर प्रकाशक आपको किन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है?
प्रकाशकों की मूल समस्या होती है कि वह उन पुस्तकों को चुन लेते हैं जो बिकती नहीं और उन पुस्तकों को छोड़ देते हैं जो बिकने वाली थीं. यही समस्या सबसे अहम है. हम किताबों को चुनने में एक पाठक के दृष्टिकोण से उन्हें देखते हैं. पाठक उन किताबों को पढ़ने के लिए ख़रीदेगा या नहीं. अगर हमें लगता है कि यह किताब वाकई छपने योग्य है तो हम उसे छापते हैं. कई बार ऐसा होता है कि जो किताब हम प्रकाशकों को बहुत पसंद आती है उसकी 100 प्रतियां भी नहीं बिकतीं और जो हमें लगता है कि ठीक-ठीक है, ज़्यादा ख़ास नहीं उसकी हज़ारों प्रतियां बिक जाती हैं.
योग्य व्यक्तियों का न मिलना भी प्रकाशन में बड़ी समस्या है. सस्ते लोग महंगे पड़ते हैं और अच्छे लोग तो होते ही महंगे हैं. शुरुआत में यह सब समझने में थोड़ा वक़्त और पैसा लगा. अब काफ़ी कुछ समझ आ गया है.

आप सोशल मीडिया पर ऐक्टिव रहते हैं, मेडिकल प्रैक्टिस करते हैं, लेखक हैं, प्रकाशक हैं… इतने सारे कामों के लिए समय कैसे निकाल लेते हैं?
जैसा मैंने पहले वाले एक प्रश्न में बताया था कि मुझे ख़ुदा ने सारे वह काम दिए हैं जिनमें मुझे दिलचस्पी है. इसलिए सभी कामों के लिए समय निकल जाता है वह भी बिना थके और झुंझलाए. समय का अगर शांति से बैठकर प्रबंधन किया जाए तो वह कभी कम नहीं पड़ता. मैं केवल वह काम करता हूं जो मेरी शक्ति हैं और वह काम किसी और को दे देता हूं जिसे कोई और कर सकता है. जब हम अपने कामों को दूसरों को देना सीख जाते हैं तो फिर हमारे पास अपने पसंदीदा कामों को करने के लिए और अपनी शक्तियों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए ढेर सारा वक़्त निकल जाता है. मेरी शक्ति है कि मैं मरीजों को अच्छी सलाह दे सकता हूं, अच्छा लिख सकता हूं और अच्छी किताबों को चुन सकता हूं. इसलिए मैं अपने इन कामों पर ध्यान देता हूं और बाक़ी के काम जैसे अकाउंटिंग आदि किसी योग्य व्यक्ति को देकर बेफिक्र हो जाता हूं.
सोशल मीडिया मुझे पसंद है क्योंकि वहां दोस्तों से मिलना हो जाता है. सुबह, दोपहर और रात में आधा-आधा घण्टा सोशल मीडिया पर रहकर हम हज़ारों-लाखों लोगों से जुड़कर अपने दिल की बात कर सकते हैं.

अभी आप क्या नहीं हैं जो बनना चाहते हैं?
मुझे लगता है कि मुझे नीतियों के निर्माण में भी सहयोग करना चाहिए. क्योंकि नीतियां हमारे भविष्य को और हमारी पीढ़ियों के भविष्य को एक दिशा देती हैं. मेरी यह कामना है कि मुझे कुछ ऐसा भार ईश्वर द्वारा सौंपा जाए जिससे मैं देश और दुनिया के लिए कुछ प्रभावी काम कर सकूं. मुझे इसके लिए किसी पद आदि की लालसा नहीं है. मैं तो बस यह मानवता की सेवा और अपने दिल के सुकून के लिए करना चाहता हूं.

आप सकारात्मकता से लबालब भरे लोगों में एक हैं, कौन-सा विटामिन खाते हैं?
मैं दुनिया को अपनी आंखों से देखता हूं किसी और का दिया हुआ चश्मा नहीं लगाता, अपनी ख़ुशियों की ज़िम्मेदारी ख़ुद लेता हूं, किसी अन्य के जीवन पर अतिक्रमण नहीं करता न किसी को अपने जीवन पर अतिक्रमण करने देता हूं, सबसे प्रेम करता हूं, अच्छी यादों को याद रखता हूं और बुरी यादों को मिटा देता हूं, अपने काम करता हूं और किसी से बदले में कोई उम्मीद नहीं लगाता… यह ज़िंदगी के कुछ उसूल बना लिए हैं इसलिए ख़ुश रहता हूं और ख़ुशियों को बांटता हूं.

सोशल मीडिया पर आपको कभी-कभी ट्रोल्स का भी सामना करना पड़ता है, ऐसे में क्या आप डिस्टर्ब नहीं होते?
नहीं, मुझे आज तक कभी ट्रोल नहीं किया गया. कुछ लोग नाम और सरनेम देखकर बातों का अलग अर्थ निकाल लेते हैं उन्हें ब्लॉक करके आगे बढ़ जाता हूं. उनसे भी कोई शिकायत नहीं है क्योंकि, वे बेचारे तो बहाव में बह रहे तिनके हैं. बहाव जिधर होगा उधर हो लेंगे. अभी नफ़रतों का बहाव है इसलिए उधर बह रहे हैं जब प्रेम की बारिश होगी तो उधर बहने लगेंगे.

वो कौन-सी 5 किताबें हैं, जिन्हें पढ़ने की सलाह आप सबको देना चाहेंगे.
बहुत सारी अच्छी-अच्छी किताबें पढ़ी हैं मैंने जीवन में. इसका मुझे घमंड है. यह एकमात्र ऐसी चीज़ है जिसका मुझे घमंड है. 5 बताना तो मुश्क़िल है फिर भी हाल ही में पढ़ी 5 बेहतरीन किताबें बताता हूं हमारे प्यारे पाठक मित्रों को
एनिमल फ़ार्म
40 रूल्स ऑफ़ लव
सोफीज़ वर्ल्ड
सेपियंस
12 इयर्स अ स्लेव

Tags: Dr Abrar Multani InterviewDr. Abrar MultaniDr. Abrar Multani Articlesडॉ अबरार मुल्तानीडॉ अबरार मुल्तानी इंटरव्यूडॉ अबरार मुल्तानी के लेखमैंड्रेक पब्लिकेशन
प्रमोद कुमार

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