छब्बीस जनवरी 1950 को भारत एक गणतंत्र राष्ट्र बन गया. उसे दिन के महत्व को बताने-समझाने के लिए कई कवियों ने कविता-गीत लिखे हैं. इस छब्बीस जनवरी पढ़िए नज़ीर बनारसी की नज़्म ‘आ तू भी आ कि आ गई छब्बीस जनवरी’.
ऐ शांति अहिंसा की उड़ती हुई परी
आ तू भी आ कि आ गई छब्बीस जनवरी
सर पर बसंत घास ज़मीं पर हरी हरी
फूलों से डाली डाली चमन की भरी भरी
आई न तू तो सब की सुनूंगा खरी खरी
तुझ बिन उदास है मिरी खेती हरी-भरी
आ जल्द आ कि आ गई छब्बीस जनवरी
घूंघट उलट रही है चमन की कली कली
शाख़ें तो टेढ़ी-मेढ़ी हैं सूरत भली भली
रंगीनियां हैं बाग़ में ख़ुशबू गली गली
शबनम से है कली की पियाली भरी भरी
आ तू भी आ कि आ गई छब्बीस जनवरी
मुस्का रही है मुझ पे मिरे बाग़ की कली
आंखें दिखा रही है मुझे कल की छोकरी
ऐसा न हो कि फूल उड़ाएं मिरी हंसी
अब तैरने लगी मिरी आंखों में जल-परी
आ जल्द आ कि आ गई छब्बीस जनवरी
कांटे हों चाहे फूल हों फ़स्ल-ए-बहार के
पाले हैं दोनों एक ही पर्वरदिगार के
हम भारती शिकार हैं अपने ही वार के
ऐ शांति अहिंसा की उड़ती हुई परी
धरती पे आ कि आ गई छब्बीस जनवरी
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