व्यवस्था विरोधी कवियों की सूची में बाबा नागार्जुन का नाम काफ़ी ऊपर आता है. उन्होंने इंदिरा गांधी के तानाशाह शासन को आईना दिखानेवाली कई कविताएं लिखी थीं. उनमें से एक है ‘आओ रानी हम ढोएंगे पालकी’.
आओ रानी, हम ढोएंगे पालकी,
यही हुई है राय जवाहरलाल की
रफ़ू करेंगे फटे-पुराने जाल की
यही हुई है राय जवाहरलाल की
आओ रानी, हम ढोएंगे पालकी!
आओ शाही बैंड बजाएं,
आओ बंदनवार सजाएं,
ख़ुशियों में डूबे उतराएं,
आओ तुमको सैर कराएं
उदकमंडलम की, शिमला-नैनीताल की
आओ रानी, हम ढोएंगे पालकी!
तुम मुस्कान लुटाती आओ,
तुम वरदान लुटाती जाओ,
आओ जी चांदी के पथ पर,
आओ जी कंचन के रथ पर,
नज़र बिछी है, एक-एक दिक्पाल की
छटा दिखाओ गति की लय की ताल की
आओ रानी, हम ढोएंगे पालकी!
सैनिक तुम्हें सलामी देंगे
लोग-बाग बलि-बलि जाएंगे
दॄग-दॄग में ख़ुशियां छलकेंगी
ओसों में दूबें झलकेंगी
प्रणति मिलेगी नए राष्ट्र के भाल की
आओ रानी, हम ढोएंगे पालकी!
बेबस-बेसुध, सूखे-रुखड़े,
हम ठहरे तिनकों के टुकड़े,
टहनी हो तुम भारी भरकम डाल की
खोज ख़बर तो लो अपने भक्तों के ख़ास महाल की!
लो कपूर की लपट
आरती लो सोने के थाल की
आओ रानी, हम ढोएंगे पालकी!
भूखी भारत-माता के सूखे हाथों को चूम लो
प्रेसिडेंट के लंच-डिनर में स्वाद बदल लो, झूम लो
पद्म-भूषणों, भारत-रत्नों से उनके उद्गार लो
पार्लियामेंट के प्रतिनिधियों से आदर लो, सत्कार लो
मिनिस्टरों से शेकहैंड लो, जनता से जयकार लो
दाएं-बाएं खड़े हज़ारी ऑफ़िसरों से प्यार लो
धनकुबेर उत्सुक दीखेंगे उनके ज़रा दुलार लो
होंठों को कंपित कर लो, रह-रह के कनखी मार लो
बिजली की यह दीपमालिका फिर-फिर इसे निहार लो
यह तो नई-नई दिल्ली है, दिल में इसे उतार लो
एक बात कह दूं मलका, थोड़ी-सी लाज उधार लो
बापू को मत छेड़ो, अपने पुरखों से उपहार लो
जय ब्रिटेन की जय हो इस कलिकाल की!
आओ रानी, हम ढोएंगे पालकी!
रफ़ू करेंगे फटे-पुराने जाल की!
यही हुई है राय जवाहरलाल की!
आओ रानी, हम ढोएंगे पालकी!
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