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ओए अफ़लातून
Home ज़रूर पढ़ें

अहमदाबाद ओल्ड सिटी हैरिटेज वॉक: यात्रा मंदिर से मस्ज़िद तक की

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
April 16, 2021
in ज़रूर पढ़ें, ट्रैवल, लाइफ़स्टाइल
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अहमदाबाद ओल्ड सिटी हैरिटेज वॉक: यात्रा मंदिर से मस्ज़िद तक की
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यदि आप अहमदाबाद घूमने जाएं तो अहमदाबाद ओल्ड सिटी हैरिटेज वॉक पर जाना न भूलें. यह वॉक आपको अहमदाबाद के इतिहास और संस्कृति से परिचित कराएगी. यदि आप अतीत के अंश को अपनी नज़रों से देखने और समझने का शौक़ रखते हैं तो आपको इस वॉक पर ज़रूर जाना चाहिए. सुमन बाजपेयी आपको अपने साथ इसी वॉक पर ले जा रही हैं. 

मैंने कई लोगों से सुन रखा था कि अहमदाबाद घूमने जाओ तो हैरिटेज वॉक पर ज़रूर जाना. घूमने का ख़ासा शौक़ होने की वजह से मैंने तय कर रखा था कि इस वॉक पर तो जाना ही है. जब हम अहमदाबाद पहुंचे तो इस वॉक के लिए और जानकारी जुटाई. पता चला ये ढाई घंटे में ख़त्म होती है. मन थोड़ा डावांडोल हुआ. क्या ढाई घंटे चल पाएंगे? लेकिन ये वॉक करनी तो थी ही, सो मन को समझाया कि चल कर देखते हैं. और कमाल की बात यह है कि सुबह सात बजे शुरू हुई यह वॉक जब पौने नौ बजे ख़त्म हुई तब भी हमारे अंदर और घूमने की ऊर्जा बची हुई थी. इतनी ही रोचक और दिलचस्प है अहमदाबाद ओल्ड सिटी हैरिटेज वॉक. चूंकि यह वॉक पुराने शहर के बीचों-बीच होती है अत: सुबह-सुबह इसकी शुरुआत करने से आपको रास्ते में भीड़ से दो-चार नहीं होना पड़ता. तो आइए, हमारे साथ आप भी इस वॉक का आनंद उठाइए.

कालूपुर स्वामीनारायण मंदिर
इस हैरिटेज वॉक का आरंभ कालूपुर स्वामीनारायण मंदिर से होता है, जो इस शहर के ठीक बीचों-बीच स्थित है. यह स्वामीनारायण संप्रदाय का पहला मंदिर है, जिसका निर्माण वर्ष 1822 के आसपास हुआ था. जब यह बन रहा था तो अंग्रेज़ इस मंदिर को देख बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने इस मंदिर का विस्तार करने के लिए और भूमि दी. तब स्वामीनारायण संप्रदाय के लोगों ने उनका आभार प्रकट करने के लिए इसके वास्तुशिल्प में औपनिवेशिक शैली का प्रयोग किया. पूरी इमारत ईंटों से बनी है. मंदिर में बर्मा टीक से नक्काशी की गई है और हर मेहराब को चमकीले रंगों से रंगा गया है. हर स्तंभ में लकड़ी की नक्काशी है और जो आज तक कायम है. ख़ुद भगवान स्वामीनारायण ने श्री नरनारायण देव की मूर्तियां यहां स्थापित की थीं. यहां प्रवेश करते ही हनुमान और गणेश की विशाल व बहुत ही सुंदर मूर्तियां दाईं-बाईं ओर लगी हुई हैं. निकटवर्ती हवेली में महिलाओं के लिए एक विशेष खंड है और एक ऐसा क्षेत्र है, जहां केवल महिलाओं के लिए समारोह और शिक्षण सत्र आयोजित किए जाते हैं. मंदिर के एक हिस्से से ही महिलाएं पूजा कर सकती हैं.

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कवि दलपत राम का घर
पूजा-अर्चना और भव्य मूर्तियों के दर्शन कर आगे बढ़े तो अगला पड़ाव था कवि दलपत राम का घर, जहां आंगन-सा बना हुआ है, जिसमें उनकी बैठे हुए एक बड़ी-सी मूर्ति है. कवि दलपत राम बच्चों की शिक्षा के प्रति बहुत सजग थे, ख़ासकर लड़कियों की शिक्षा के, क्योंकि उन दिनों में लड़कियों को पढ़ाना माता-पिता सही नहीं मानते थे. दलपत राम के काम के प्रति श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए, अहमदाबाद के एएमसी और नागरिकों ने उनके घर के स्थल पर एक स्मारक का प्रस्ताव रखा, जिसे 1985 में नष्ट कर दिया गया था. निवासियों की यादों और आसपास के घरों के वास्तुशिल्प डिजाइन से उपलब्ध संदर्भों की मदद से, एक स्मारक कवि दलपत राम के घर और मूर्ति का रूप वर्ष 2001 में विकसित किया गया.

चबूतरों का आकर्षण
फिर हम वॉक के अगले पड़ाव, एक पक्षियों के चबूतरे पर आकर रुके. पुराने शहर यानी ओल्ड सिटी में हर पोल में एक चबूतरा है और यहां 500-600 चबूतरे (पक्षियों को दाना डालने के स्तंभ या मीनार) हैं. गुजराती हमेशा जैन धर्म से प्रभावित रहे हैं और वे छोटे जीव तक को भी नहीं मारते. जब पेड़ों की कमी होने लगी तो उन्होंने सोचा कि पक्षियों के लिए दाने डालने के लिए चबूतरे बनाए जाएं. हर चबूतरे में पक्षियों को दाना डालने की जगह बनी हुई है. ये चबूतरे कुछ-कुछ पेड़ों की तरह ही लगते हैं. सारे पोल जाति, धर्म व व्यवसाय के आधार पर विभाजित हैं या फिर इन तीनों के सम्मिश्रण के आधार पर भी बनाए जाते हैं. हर पोल में 20 से 25 परिवार रहते हैं. पोल में एक गेट होता है जिसे सुरक्षा के लिए रात को बंद कर दिया जाता है. हर पोल दूसरे पोल से जुड़ा है. यहां पर कुछ गुप्त मार्ग हैं, जो किसी पहेली की तरह इन आवासों को एक-दूसरे से जोड़ते हैं.

काले रंग में राम
आगे हाजा पटेल नी पोल के कोने में है काला रामजी मंदिर, जो एक हवेली में है. यह लगभग 450 साल पुराना मंदिर है, जिसे हवेली मंदिर के रूप में भी जाना जाता है. मंदिर आम जनता के लिए भी खुला रहता है. यहां की लकड़ी की बनी संरचनाएं जो आज भी इस हवेली का भार संभाले हुए है, सच में बहुत अनूठी हैं. यह पहला मंदिर है जिसमें राम की काले रंग-रूप में प्रतिमा है. राम यहां बैठी हुई मुद्रा में हैं, वरना अधिकतर जगह उनकी प्रतिमा खड़ी हुई अवस्था में ही होती है एकांतवास के समय जब उन्होंने ध्यान किया था, उसे इसमें दर्शाया गया था. उनके साथ माता सीता और लक्षमण की भी काले रंग में ही मूर्तियां हैं.

विभिन्न वास्तुशिल्पों का समन्वय
अगले पड़ाव पर पहुंचने के लिए हमने रिलीफ़ रोड पार की, जो कालूपुर रेलवे स्टेशन से जुड़ी है. ट्रैफ़िक से राहत पाने के लिए अंग्रेज़ों ने यह सड़क बनाई थी, हालांकि अब वह व्यस्त सड़कों में से एक है. इसे पार करते ही दिखता है कैलिको डोम. अब यह जगह एकदम उजाड़ है और इसका पुनर्निर्माण कार्य चल रहा है. कैलिको एक टेक्सटाइल कंपनी थी और भारत का पहला फ़ैशन शो यहीं आयोजित हुआ था.
फिर हम पहुंचे. शांतिनाथनी पोल और देरासर. यह चबूतरा है वृद्धों के बैठने के लिए. यहीं बैठकर वे एक-दूसरे तक अपने संदेश पहुंचाते हैं और सारे उत्सव भी मनाते हैं. एक बहुत ही सुंदर लकड़ी का नक्काशीदार चबूतरा है वह, जिसके पीछे जैन तीर्थंकर शांतिनाथ का देरासर (मंदिर) है. इसके गुंबदों, पैनल, आलों, जाली, खिड़कियों पर बेहतरीन नक्काशी उत्कीर्ण है.
कुआलो खांचो नाम पढ़ने में थोड़ा अजीब लगा, जो इस यात्रा का अगला पड़ाव था. यह समुदाय के कुंए के नाम पर पड़ा. यहां विभिन्न वास्तुशिल्पों का समागम देखा जा सकता है.

प्राचीन वैभव
अष्टपद देरासर या जैन मंदिर की वास्तुकला मन मोह लेती है. इसके बाद देखने को मिली हरकुंवर शेठानी की हवेली. हरकुंवरशेठानी उस समय गुजरात की बहुत ही प्रभावशाली महिला थीं. इस 180 साल पुरानी हरकुंवर शेठानी नी हवेली में करीब 150 कमरे हैं. हवेली पर लकड़ी की नक्काशी इंडो-चाइनीज़ वास्तुशिल्प को दर्शाती है.
इस हैरिटेज वॉक का अंतिम पड़ाव है जामी मस्ज़िद, जो ताजमहल से भी 200 साल पुरानी है और संभवतः किसी प्राचीन मंदिर पर बनी है. इसका निर्माण सुल्तानअहमद शाह प्रथम ने वर्ष 1424 के आसपास कराया था. यह मस्ज़िद वहां के भद्रा किला क्षेत्र के बाहर, जिसके अंतर्गत बाक़ी सारे हिस्से आते हैं, जिससे होकर हम आए थे, सड़क के दक्षिण की ओर किशोर दरवाज़ा से मानेक चौक तक फैली हुई है. इस हैरिटेज वॉक के दौरान समेटी हुई यादों को साथ लिए तीन दरवाज़ा के विशाल मार्ग से निकलकर हम बाहर आए और इस तरह इस हैरिटेजवॉक का समापन हुआ.

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