सियासत हमेशा ही माहौल को नफ़रतभरा बना देती है, लेकिन नफ़रत से केवल नफ़रत ही पैदा होती है. नफ़रत से दूरियां बढ़ती हैं, जबकि समाज के, एक देश के रूप में आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है कि हम सभी भाईचारे के साथ रहें, अपने भीतर झांकें और अपनी कमियों को दुरुस्त करें. इस ग़ज़ल में इन बातों को बड़ी ही साफ़गोई के साथ बयां किया गया है.
उंगली सिर्फ़ दूसरों पे न उठाया कर
अपनी कमियों पे भी शरमाया कर
पत्थर फेंकनेवाले मेरी खिड़की पर
हाल देखने मेरे घर भी आया कर
नफ़रतें नफ़रतों को ही पैदा करती हैं
मुहब्बत के फूल कभी खिलाया कर
दूरियां हर बहस पे बढ़ जाती हैं
नज़दीकियां भी कभी बढ़ाया कर
तू अपनी रोटियां सेंकने के लिए
दूसरों का घर तो न जलाया कर
आग सबके पेट में दहकती है
दूसरों का चूल्हा न बुझाया कर
कौन दूध का धुला है ये तो बता
अपने दाग़ों को यूं न छुपाया कर
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट