यूं इस बात का कोई आंकड़ा तो मौजूद नहीं है, लेकिन जिस तरह सोशल मीडिया पर इस बात की चर्चा सुनाई देती रहती है, यूं लगता है जैसे भारतीय युवाओं के बीच कैशुअल सेक्स अब सामान्य-सी बात हो. हमारे देश के सांस्कृतिक परिवेश और युवाओं की आर्थिक आत्मनिर्भरता को देखते हुए संगीत सेबैस्टियन ने एक्स्पर्ट्स से बातचीत कर के यह जानने की कोशिश की है कि आख़िर हुकअप्स या कैशुअल सेक्स का किसी व्यक्ति पर कैसा असर पड़ता है या पड़ सकता है?
कोरा पर एक सवाल मौजूद है, जिसमें पूछा गया है कि इन दिनों भारतीय युवा कैशुअल सेक्स, एक-दूसरे को लाभ पहुंचाने वाले रिश्तों और फ़्लिंग्स (छोटे समय के सेक्शुअल रिश्ते) में शामिल क्यों हैं और वे इसे लेकर बहुत सहज भी हैं.
हालांकि इस बात का कोई आधिकारिक आंकड़ा या रिसर्च मौजूद नहीं है, जो साबित कर सके कि आजकल के भारतीय युवाओं में कैशुअल सेक्स का चलन बढ़ा है, लेकिन सार्वजनिक प्लैटफ़ॉर्म्स पर इस बात की बढ़ती चर्चा इस वास्तविकता की ओर इशारा करती है कि यह वाक़ई आम-सी बात हो चली है. कोविड-19 वाले इस दौर में यह बात मानी जा सकती है कि लोग एक-दूसरे से वैक्सिनेशन सर्टिफ़िकेट की ज़्यादा मांग करेंगे, बजाय कंडोम के, लेकिन यह तो बिल्कुल ही नहीं माना जा सकता कि महामारी, कैशुअल सेक्स की चाह पर अंकुश लगा देगी.
घूम-फिर कर वही सवाल
सेक्स की इच्छा अलग-अलग लोगों में अलग-अलग तरह से उछाल मारती है. साइकोलॉजिस्ट्स का मानना है कि अनिश्चित और तनावभरे समय में ‘भाग लो’ या ‘भिड़ जाओ’ दोनों ही प्रतिक्रियाएं सामान्य हैं. लोग होम आइसोलेशन से पक चुके हैं, क्वारैंटाइन और नेट फ़्लिक्स से ऊब चुके हैं और सेक्स के बारे में कम सतर्क हो गए हैं. और जैसे-जैसे स्थिति सुधरेगी, ज़्यादा से ज़्यादा लोग कैशुअल सेक्स की ओर जाएंगे, यह बात हमें फिर उस सवाल पर ला खड़ा करती है: कैसा होता है हुकअप्स का असर? और क्या ये हेल्दी हैं?
इस सवाल का जवाब कुछ जैविक यानी बायोलॉजिकल और सांस्कृतिक सच्चाइयों को जानने, स्वीकारने और सही तरीक़े से समझने पर निर्भर करता है. पर सबसे ज़रूरी है इस बात को समझना कि- हुकअप्स का खेल कई विषमताओं से भरा है.
पहले ये अंतर समझिए
कई महिलाएं ऐसी होंगी जो कैशुअल सेक्स के बाद इस एहसास के साथ बाहर नहीं आएंगी कि- यह एक बेहतरीन अनुभव था. इसकी वजह ये है कि यदि बात सेक्स की हो तो महिलाओं और पुरुषों के ऑर्गैज़्म के बीच ही बहुत बड़ा गैप है.
यहां तक कि एक सामान्य रोमैंटिक हेटरोसेक्शुअल (विषमलैंगिक) इंटरकोर्स में भी अक्सर पुरुष तो आर्गैज़्म तक पहुंच जाते हैं, पर महिलाएं नहीं पहुंच पातीं. और कैशुअल सेक्स में जहां मिलने का उद्देश्य और प्रेरणा केवल ‘आनंद’ है, यह गैप और भी बड़ा हो जाता है.
अमेरिका में 20,000 कॉलेज के छात्रों (जो सभी हेटरोसेक्शुअल थे) पर की गई एक स्टडी में केवल 40 प्रतिशत युवतियों ने माना कि वे ऑर्गैज़्म तक पहुंचीं, इसकी तुलना में ऑर्गैज़्म तक पहुंचने वाले युवकों का प्रतशित था 78. इसका सीधा मतलब है कि कैशुअल सेक्स के मामले में ‘आनंद’ का झुकाव पुरुषों की ओर ज़्यादा होता है.
व्यक्तिगत होते हैं अनुभव
इसके अलावा हर व्यक्ति की भावनात्मक और सेक्शुअल परिपक्वता का स्तर अलग होता है. कोई व्यक्ति जो अमेरिका में रहता है उसका कैशुअल सेक्स का अनुभव उस व्यक्ति से बिल्कुल अलग हो सकता है, जो भारत में रहता है, क्योंकि इसमें सांस्कृतिक और आर्थिक पक्ष भी तो शामिल होते हैं.
कैशुअल सेक्स से लोगों पर अलग-अलग संदर्भों में और अलग-अलग देशों, जैसे- अमेरिका और भारत के युवाओं पर किस तरह का असर पड़ता है, यह जानने के लिए हमने बात की अमेरिका के जानमाने सेक्स थेरैपिस्ट, हार्वर्ड से प्रशिक्षित डॉक्टर लॉरैंस आई सैंक और आइकान स्कूल ऑफ़ मेडिसिन, अमेरिका, से बोर्ड सर्टिफ़ाइड भारत की एकमात्र महिला सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर शर्मिला मजूमदार से. ये दोनों डॉक्टर्स वीवॉक्स के संस्थापक सदस्य भी हैं.
एक्स्पर्ट्स की राय
इस बारे में बात करते हुए डॉक्टर सैंक कहते हैं,‘‘कैशुअल सेक्स हम पर कैसा असर डालता है यह जानने का आदर्श तरीक़ा ये होगा कि हम एक ऐसे समाज में एक स्टडी करें, जहां सेक्शुअल रिश्तों के लेकर दोगली बातें न होती हों, जहां एक जैसे सेक्शुअल व्यवहार के लिए महिलाओं और पुरुषों को अलग-अलग तरीक़े से ‘जज’ न किया जाता हो. और यह काम तो यहां अमेरिका में भी बड़ा मुश्क़िल है! बतौर एक सेक्स थेरैपिस्ट मैं आपको 333 ऐसे अलग-अलग कारण गिना सकता हूं कि लोग कैशुअल सेक्स में क्यों शामिल होते हैं: कुछ नया पाने की चाहत, बदला लेने की इच्छा, अनुभव पाना, साथी का बेवफ़ा होना, उत्सुकता और यहां तक कि ख़ुद को शक्तिशाली महसूस करना भी इसका कारण हो सकता है. कई महिलाओं ने मुझसे कहा है कि जब वे किसी सेलेब्रिटी या फ़िल्मी सितारे के साथ सेक्स करती हैं तो वे ख़ुद को आकर्षक और शक्तिशाली महसूस करती हैं. इससे उन्हें अच्छा महसूस होता है. तो मेरे हिसाब से मूल मुद्दा कैशुअल सेक्स न रह कर ये हो जाता है कि लोग इसमें शामिल होने के बाद इस घटना की व्याख्या कैसे करते हैं.’’
वहीं इस सवाल के जवाब में डॉक्टर शर्मिला मजूमदार का कहना है,‘‘भारत में कैशुअल सेक्स दोधारी तलवार जैसा है. यह अनुभव और भी बुरा हो सकता है, यदि इसमें शामिल महिला आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर न हो. बतौर समाज ‘सेक्स’ के प्रति हमारा नज़रिया आज भी बहुत परिपक्व नहीं है. फिर कैशुअल सेक्स में शामिल दोनों ही पक्षों को इसके बारे में जागरूक होने की, शिक्षित होने की भी ज़रूरत है, क्योंकि इसका एक परिणाम अवांछित गर्भधारण यानी प्रेग्नेंसी भी हो सकता है. मैं मानसिक स्वास्थ्य की समस्या से जूझ रहे लोगों को तो कैशुअल सेक्स/हुकअप्स से दूर ही रहने की सलाह दूंगी, क्योंकि इससे उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है.’’
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट
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