नींद और सेक्शुअल प्रदर्शन का संबध बहुत गहरा होने के बावजूद लंबे समय तक मेडिकल साइंस और रिसर्च वगैरह में इस बात को कोई तवज्जो नहीं दी गई. बल्कि एक समय तो ऐसा था कि कम नींद लेने को वरदान की तरह माना जाता था, लेकिन भला हो कि कुछ दशकों पहले रिसचर्स ने हमारी सेहत और सेक्शुअल लाइफ़ पर नींद के असर को लेकर शोध किए. तब हमने जाना कि नींद हमारी सेहत और सेक्स जीवन के लिए कितनी महत्वपूर्ण है. आइए, इस बारे में कुछ काम की बातें और एक्स्पर्ट्स की राय भी जानते हैं.
क्या आपने कभी इस बारे में सोचा है कि आपकी नींद का रूटीन आपकी सेक्शुअल परफ़ॉर्मेंस को प्रभावित करता है? ये एक ऐसा क्षेत्र है, जिसपर मेडिकल साइंस और रिसचर्स द्वारा लंबे समय तक ध्यान ही नहीं दिया गया, जबकि यह बात सभी को पता थी कि नींद और सेक्स दोनों में ही मन और शरीर शामिल होते हैं अत: ये किसी भी व्यक्ति के पूरे स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
आजकल के नींद पर शोध करनेवाले लोगों यानी स्लीप रिसचर्स ने इस बात की ओर तुरंत ही ध्यान आकर्षित कराया कि कैसे नींद की गुणवत्ता (अमेरिकी स्लीप फ़ाउंडेशन के अनुसार सात से आठ घंटे की नींद) सही न हो तो कैसे यह किसी भी मनुष्य को शारीरिक और मानसिक दोनों ही तरह के रोग दे सकती है- सेक्शुअल संबंध बनाने की इच्छा में कमी से लेकर टेस्टोस्टेरॉन के स्तर में इतनी कमी आना कि आपकी प्रजनन क्षमता प्रभावित होने लगे और यहां तक कि मस्तिष्क भी क्षतिग्रस्त होने लगे.
जब नींद को ज़रूरी नहीं मानते थे लोग
वर्ष 1950 तक या उसके कुछ समय बाद तक भी, साइकोलॉजिस्ट और रिसचर्स ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया, बल्कि वे तो इस हद तक आगे निकल गए और इस तरह के तर्क देने लगे कि ‘नींद न आना किसी तरह का वरदान है’.
नींद से वंचित रहने को किसी पंथ की तरह माने जानेवाले इस रवैये की शुरुआत करने का श्रेय पश्चिमी देशों में अमेरिका के महान खोजकर्ता: थॉमस एडिसन को जाता है, जिन्हें बिजली के बल्ब बनाने का भी श्रेय जाता है. एडिसन ख़ुद को नींद न आने लिए कुख्यात थे, लेकिन वह दूसरे लोगों को सोने से रोकते भी थे. बल्ब की खोज करने के पीछे के कई कारणों में से एक यह कारण भी था कि वह अपने कर्मचारियों और मातहतों को सोने से रोकना चाहता थे.
जब बात दूसरे लोगों को नींद से वंचित करने की हो तो एडिसन किसी सनकी तरह व्यवहार करता थे. उन्होंने इस बात के लिए सुरक्षा गार्ड तैनात कर रखे थे कि यदि उनका कोई कर्मचारी चार घंटे से अधिक सोता है तो उसे जगाकर काम कराया जाए. नींद के बारे में उसका प्रेरणा सूत्र यह था,‘‘मछली पूरी रात पानी में तैरती है और घोड़े भी नहीं सोते. अत: किसी मानव को नींद की ज़रूरत नहीं है.’’
लंबे समय तक नहीं बदली सोच
एडिसन के बाद आए रिसचर्स, लेखकों और सेल्फ़ हेल्प गुरुओं ने उसकी इस फ़िलॉसफ़ी को आलोचक दृष्टि से देखे बिना, इस पर कोई सवाल उठाए बिना और कुछ सोचे बिना ही वफ़ादारी के साथ जस का तस अपना लिया. बच्चों के लिए 50’ और 60’ के दशक में जो किताबें प्रकाशित हुईं, उनमें एडिसन के ‘इन्सोम्निया स्क्वैड’ (अनिद्रा दस्ता) और इस बारे में बड़े शान से लिखा गया कि किस तरह वह सुबह के चार बजे नौकरी के लिए इंटरव्यूज़ लिया करते थे.
लेखक डेल कार्नेगी ने अपनी सदाबहार सबसे ज़्यादा बिकनेवाली किताब-हाउ टू स्टॉप वरीइंग ऐंड स्टार्ट लिविंग, में लिखा है,‘‘हम तो यह भी नहीं जानते कि क्या हमें सोना भी चाहिए?’’ ऐसे में हमें इस बात पर कोई आश्चर्य भी नहीं होना चाहिए कि आज भी हमारे बीच बहुत से ऐसे लोग मौजूद हैं जो नींद के विरुद्ध बोलते हैं.
पर सच तो कुछ और ही है…
केवल पिछले कुछ दशकों में ही नींद से जुड़े हमारे रवैये में बदलाव हुआ है, जब रिसचर्स ने नींद के फ़ायदों को एक ताज़ातरीन तरीक़े से आंका और जाना कि कैसे नींद की कमी हमारे पूरे स्वास्थ्य और यहां तक की सेक्शुअल व्यवहार को भी बदल देती है.
आज हार्वर्ड, ऑक्स्फ़ोर्ड, कैम्ब्रिज और कई नामचीन यूनिवर्सिटीज़ के वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हैं कि नींद कम होने से ‘स्वास्थ्य से जुड़ी गंभीर समस्याएं’ हो सकती हैं, क्योंकि यह उत्पत्ति से लेकर मनुष्य के विकास तक अरबों वर्षों के उस चक्र के विरुद्ध है, जो बताता है कि मनुष्य का विकास ‘लाइट-डार्क साइकल’ यानी प्रकाश-अंधकार चक्र के तहत हुआ है.
एडिसन ने मछलियों और घोड़ों की बात की, लेकिन ये तो वो जानवर नहीं हैं, जो मनुष्य की तरह अनुवांशिक रूप से स्तनधारी हों. जैविक, अनुवांशिक और व्यवहार संबंधी पैमाने पर देखें तो मनुष्य के सबसे क़रीबी हैं चूहे. हाल ही में जर्नल ऑफ़ न्यूरोसाइंस में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, नींद से वंचित रहने पर चूहों का दिमाग़ हमेशा के लिए क्षतिग्रस्त हो जाता है.
हाल ही में कुछ और अध्ययन सामने आए हैं जो ये बताते हैं कि नींद की कमी से किस तरह उस टेस्टोस्टेरॉन हॉर्मोन का स्तर प्रभावित होता है, जो पुरुषों को पुरुषत्व की ऊर्जा देता है. यही नहीं, अमेरिकन जर्नल ऑफ़ एपिडेमिओलॉजी के अनुसार नींद से वंचित रहने से पुरुषों की प्रजनन क्षमता पर असर पड़ता है. ऐसा इसलिए होता है कि शरीर का प्राकृतिक चक्र यानी नैचुरल साइकल, हॉर्मोन के स्राव को निर्धारित करता है. जब यह बाधित होता है तो स्पर्म काउंट कम हो जाता है. नींद पूरी न होने की वजह से इरेक्टाइल डिस्फ़ंक्शन की समस्या होने का ख़तरा भी बना रहता है.
वहीं, जर्नल ऑफ़ सेक्शुअल मेडिसिन के मुताबिक़, महिलाएं यदि नींद से वंचित रहें तो उनकी भी सेक्स में रुचि कम हो जाती है.
अब आप ही बताइए कि यदि आप अपने जीवन का आनंद नहीं उठा पाते तो आपके ज़्यादा पैसे कमाने का भी क्या फ़ायदा होगा?
तो एक्स्पर्ट्स की क्या सलाह है?
नींद की कमी और सेक्शुअल लाइफ़ व हेल्थ पर इसके असर के बारे में जानने के लिए मैंने डॉक्टर लॉरैंस आई सैंक से बातचीत की, जो हार्वर्ड प्रशिक्षित चिकित्सक, कॉग्निटिव थेरैपी सेंटर, अमेरिका, के को-ऑर्डिनेटर और वीवॉक्स के संस्थापक सदस्य हैं.
डॉक्टर लॉरैंस आई सैंक ने बताया,‘‘हमारी नींद जितनी कम होगी, सेक्शुअल संबंधों की इच्छा भी उतनी ही कम होगी, क्योंकि नींद की कमी की वजह से हॉर्मोन्स ऊपर-नीचे होते रहते हैं.
‘‘इसे इस तरह सोचिए, किसी रेस-ट्रैक पर कोई ऐथ्लीट तब कितना अच्छा प्रदर्शन कर पाएगा, जबकि उसकी नींद ही पूरी न हुई हो? बिल्कुल यही बात सेक्स पर लागू होती है. हां, ये भी सही है कि हर व्यक्ति की नींद अलग-अलग हो सकती है, लेकिन वे लोग जिन्हें सात या आठ घंटे की ज़रूरी नींद से कम नींद की ज़रूरत महसूस होती है, वो नींद की पर्याप्त मात्रा का अपवाद हैं, उनके मुताबिक़ नींद के नियम तो नहीं तय किए जा सकते.
‘‘जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है हमें नीद का रूटीन बना लेना चाहिए और उसे आदत में तब्दील कर लेना चाहिए, क्योंकि उम्रदराज़ लोगों को नींद आने में मुश्क़िल महसूस होती है. नींद को सही रखने का एक और तरीक़ा हो सकता है कि हम उन चीज़ों से बचें, जो रात की नींद में बाधा पहुंचाती हैं, जैसे- कैफ़ीन, ऐल्कहॉल, तम्बाखू या देर रात को भारी भोजन करना या फिर दोपहर में लंबी नींद लेना.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट