किसी महिला के आज़ाद ख़याल होने का यह अर्थ लगाना कि वह पारिवारिक मूल्यों को नहीं समझती होगी, बेहद हल्की बात है. इसी तथ्य को उजागर करती है यह कहानी.
नग़्मा की आज़ाद ख़्याली उसके मायके में सब लोगों को बहुत पसंद थी, पर मुझे और मेरे परिवार वालों को इस तरह की आज़ाद परिंदों की तरह उड़ान भरने जैसी बातें थोड़ा कम ही रास आती थीं.
माना कि नग़्मा ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन किया था और इतनी पढ़ाई, उसके मायके से लेकर मेरे घर तक में किसी ने भी नहीं की थी. और आज नग़्मा को छोड़कर कोई भी महिला हमारे घर मे स्कूटी चलाना नहीं जानती है. बाज़ार स्कूटी से जाना और घरेलू सामान को ख़ुद जांच-परख कर ख़रीदना उसका पसंदीदा काम है. ख़रीददारी के लिए अक्सर नग़्मा शहर के गैलेक्सी मॉल में जाना पसंद करती है, पर सच कहूं तो मॉल होती बड़ी नामुराद जगह है. वहां तो आदमी ज़रूरत के सामान से कहीं ज़्यादा फालतू का सामान ख़रीद ले आता है. इस सामान के साथ ये ऑफ़र है तो उस सामान के साथ वो मुफ़्त में मिल रहा है. अरे साहब, जहां आज के दौर में पानी मुफ़्त में नहीं मिलता, वहां कोई और सामान मुफ़्त में मिलने की उम्मीद भी कैसे की जा सकती है भला?
मॉल के अंदर ऊपर वाले फ़्लोर तक जाने के लिए नग़्मा हमेशा ही ‘एस्केलेटर’ का प्रयोग करती है. अब भला ये भी कोई अच्छी तकनीक है? बस, पैर जोड़कर खड़े हो जाओ और ऊपर पहुंचने का इंतज़ार करो और कहीं पैर आगे बढ़ाने में ज़रा-सा भी चूक गए तो मुंह के बल गिरने से कोई रोक नहीं सकता. अरे कम से कम बगल में ही सुंदर सी सीढियां भी तो बना रखी हैं, उनको काम में लाओ तो हाथ पैरों में हरकत भी बनी रहे.
पर नग़्मा को तो हर नई चीज़ से प्यार हो जाता है. वैसे भी ख़रीदारी करते समय मैं सिर्फ़ गाड़ी में सामान रखने और भुगतान सम्बन्धी काम ही देखता था. बाक़ी ख़रीदारी की ज़िम्मेदारी तो नग़्मा की ही थी.
एक दिन की बात है मैं नग़्मा के साथ ख़रीदारी करने के बाद घर पहुंचा ही था कि मेरा मोबाइल बजने लगा. नया नंबर था इसलिए जान नहीं सका कि उधर से कौन था, पर कुछ देर बाद पता चला कि आदिल बोल रहा था. आदिल मेरा चचेरा भाई था जो दुबई से भारत आ रहा था और आते ही मेरे घर पर रुकेगा ऐसा बता रहा था मुझको. उसकी बातें सुनकर मेरा माथा बहुत बुरी तरह ठनका था, क्योंकि मैं आदिल को बिल्कुल पसंद नहीं करता था. इसका कारण ये था कि आदिल भी नग़्मा के साथ अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढता था और दोनों में काफ़ी लगाव भी था. कुछ ज़्यादा ही लगाव जिसे प्यार की संज्ञा दी सकती थी और इसी कारण दोनों के परिवार वालों ने आदिल और नग़्मा क़ी शादी तय कर दी थी.
दोनों का निकाह हो ही गया होता अगर आदिल ने निकाह के ठीक बाद नग़्मा को अपने साथ दुबई ले जाने की शर्त न रख दी होती. हालांकि, मैं अपने रिश्तेदारों से ये जान चुका था कि ये शर्त उसने जानबूझकर इसलिए रखी थी, क्योंकि वो भले ही प्यार तो नग़्मा से करता था पर नग़्मा के परिवार वालों की तरफ़ से जो दहेज़ उसे दिया जा रहा था उस से वो ख़ुश नहीं था और कहीं और रिश्ता होने पर उसे ज़्यादा रकम मिलने का लालच था इसीलिए आदिल ने ये दोहरी चाल चली. आदिल जानता था कि नग़्मा के घर वाले उसे दुबई नहीं भेजेंगे, क्योंकि वह उनकी इकलौती लड़की है… और नग़्मा की अम्मी भी बीमार रहती हैं.
आदिल को नग़्मा से निकाह तोड़ देने में कोई बड़ी बात नहीं लगी, बल्कि इसमें भी नग़्मा के सामने वो उसके अम्मी और अब्बा को ही दोष देता रहा. निकाह टूटने के बाद नग़्मा अवसाद का शिकार होने लगी तो मेरे अब्बू ने आगे बढ़कर नग़्मा और मेरा निकाह करवा दिया मैं तो अब्बू की मर्ज़ी के आगे कुछ बोल ना सका और वैसे भी नग़्मा जैसी खूबसूरत लड़की को ठुकराने का कोई मतलब ही नहीं था. नग़्मा की हालत ख़राब हो रही थी. उसको उस हालत से निकालने में मेरा किरदार अहम रहा. मैंने नग़्मा को समझाया कि जो भी हुआ है उसमें उसका कोई दोष नहीं है. यह सब सिर्फ़ आदिल के लालच के कारण हुआ है. अगर इसमें किसी को भी शर्मिंदा होने की ज़रूरत है तो वह आदिल है.
मेरी लाख कोशिशों के बाद ही नग़्मा के चेहरे पर मुस्कुराहट थी आई थी, पर भला मुझे क्या पता था कि आज इतने सालों बाद आदिल फिर सामने आकर खड़ा हो जाएगा और मेरे और नग़्मा के पूरे वजूद को हिला कर रख देगा. फिर जब नग़्मा से इतनी ही तल्ख़ी हो गई थी तो फिर आज आदिल मेरे पास क्यों आ रहा है? वो नग़्मा से कैसे मिलेगा? क्या उसे शर्म नहीं आएगी? और फिर वो मेरी और नग़्मा की शादी के बारे में भी सब जानता है, फिर भी क्यों आ रहा है? इसी क्या, क्यों में रात हो गई थी.
अगली सुबह ही आदिल हमारे घर पर आ गया. कई बड़े-बड़े सूटकेस और बैग थे उसके साथ में. हां, यह ज़रूर कहना पड़ेगा कि पहले से अधिक ख़ूबसूरत हो गया था आदिल- गोरा रंग, लंबा स्वस्थ शरीर, क्लीन शेव चेहरा और आंखों पर हल्के लेंस का चश्मा.
मेरे मन में उसे देखकर ही जलन हो रही थी, शायद इसलिए कि आज आदिल मुझसे हर तरह से माली हालत में बेहतर था और शायद इसलिए भी की नग़्मा और आदिल के पहले के रिश्ते के बारे में मुझे पता था.
आदिल ने आते ही समा बांध दिया. अम्मी-अब्बू के लिए दुबई से सुनहरे रंग के हल्के चश्मे के फ्रेम, एक शाही सा दिखने वाला पान दान, मेरे लिए पेन का सेट और इत्र, हमारी बेटी फुजला के लिए कई गुड़ियां और विदेशी खिलौने… यह सब देख कर मैं अंदर ही अंदर जला जा रहा था रहा था. इतने में आदिल ने गिफ़्ट का छोटा सा डब्बा नग़्मा की तरफ बढ़ा दिया. नग़्मा ने मुझसे इशारों इशारों में ही पूछा कि तोहफ़ा स्वीकार करूं या नहीं? मैंने भी आंखों से ही उसे बता दिया. नग़्मा ने हाथ बढ़ाकर वह गिफ़्ट ले लिया.
आदिल की यह बात मुझे बिल्कुल अच्छी नहीं लग रही थी. उसके रसूख के सामने मैं अपने आप को कमतर महसूस कर रहा था. वैसे तो ड्रॉइंग रूम में पार्टी जैसा माहौल था. फुजला आदिल के साथ बेफ़िक्री से खेल रही थी और अम्मी और अब्बू को आदिल दुबई की शान-शौकत भरी ज़िंदगी के बारे में बार-बार बता रहा था. आदिल की ये सारी बातें सुनते हुए मैंने भी अपने चेहरे पर एक फ़र्ज़ी मुस्कुराहट चिपका ली थी गोया मुझपर उसकी इन बातों का कोई असर ही ना हो रहा हो, पर अंदर ही अंदर मैं कुढ़ रहा था.
तभी आदिल ने घूमने जाने का प्लान बना लिया. बोला, ‘‘इमामबाड़ा और चिड़ियाघर घूमे हुए काफ़ी समय हो गया है, चलो हम सब घूम कर आते हैं.’’
आदिल ने मुझसे भी साथ चलने को कहा मन में तो आया कि तुरंत ही मना कर दूं, पर मुझे लगा ऐसा कहना ग़लत होगा तो बड़े भारी मन से मैंने चलने की हामी भर दी. हम सब दिनभर घूमते रहे और शाम को लौटे. तब तक मन और दिमाग़ पूरी तरह से थक गए थे. रास्ते में नग़्मा, आदिल से काफ़ी बेपरवाही से बात कर रही थी. मैंने कनखियों से कई बार देखा भी कि नग़्मा आदिल की हर बात में हामी भर रही थी. रेस्तरां में भी दोनों ने एक-दूसरे की थाली से खाने की चीज़ों की अदला बदली की.
मेरे दिल का हाल सिर्फ़ मैं ही जानता था. शाम को सिर दर्द का बहाना बनाकर मैं कमरे में लेट गया, पर नींद आंखों से कोसों दूर थी. कारण था ड्राइंग रूम से आदिल और नग़्मा की हंसती हुई आवाज़ों का आना. कमबख़्तों को इतना भी लिहाज नहीं है कि अम्मी-अब्बू के सामने जरा कम बात करें. लगता है आंखों का पानी तो बिल्कुल ही मर गया है. रात में मुझे दो बजे नींद आई या तीन बजे मुझे कुछ नहीं पता.
सुबह आंख खुली तो देखा कि नग़्मा किचन में व्यस्त थी. अच्छा, तो मैडम अब नाश्ता भी आदिल की पसंद से ही बनाएंगी, पर कुछ भी हो अब मैं यह लैला-मजनू की कहानी और नहीं सहन कर पाऊंगा. मैं आज ही आदिल से साफ़ बात कर लेता हूं कि भाई देखो रिश्तेदारी तो अपनी जगह है, पर शादीशुदा ज़िंदगी अपनी जगह है, वह मेरी ज़िदगी में ज़हर न घोले और यहां से चला जाए. अपने मन में एक कड़ा निश्चय लेकर बिस्तर से उठा और नहा-धो कर नाश्ते की टेबल पर जा बैठा. सब लोग वहां पर पहले से ही बैठे हुए थे. नग़्मा भी अपनी हर्बल टी लेकर आ गई थी वहां, पर आदिल नहीं था. पूछने पर पता चला कि जनाब बाहर घूमने गए हैं और अब तक लौटे नहीं हैं. पता नहीं क्यों, पर उसका यहां न होना मुझे बहुत अच्छा लग रहा था.
तभी मेज पर रखा हुआ नग़्मा का मोबाइल बज उठा. मैंने आंखों के कोने से देखा तो स्क्रीन पर आदिल का नाम लिखकर आ रहा था. मुझे ऐसा लगा कि नग़्मा ने मेरी नज़रों से बचाते हुए मोबाइल को उठा कर कान से लगा लिया और बात करते हुए किचन की तरफ़ बढ़ गई. मुझे बहुत ग़ुस्सा आ रहा था. आख़िर नग़्मा ने मेरे सामने वहीं पर बात क्यों नहीं की? किसी का भी फ़ोन होता है तो नग़्मा मेरे सामने ही बात कर लेती है, फिर आज आदिल का फ़ोन आने पर वह किचन में क्यों चली गई? दिमाग़ में बवंडर चलने लगा सामने प्लेट ने नाश्ता पड़ा हुआ था पर मेरी आंखों को वो सब नहीं दिखाई दे रहा था.
हालांकि, नग़्मा दस मिनट बाद ही वापस आ गई थी, पर मुझे ये दस मिनट दस साल की तरह लगे थे. नग़्मा एकदम शांत सी लग रही थी. उसके चेहरे पर किसी भी तरह के भाव पढ़ पाने में मैं नाकाम था. उससे इस फ़ोन के बारे में क्या पूछूं? और कैसे पूछूं? नग़्मा मेरे इस तरह से उसके फ़ोन की जासूसी करने पर क्या कहेगी?
पर इस तरह से आदिल का नग़्मा के मोबाइल पर फ़ोन आना मुझे नागवार गुज़र रहा था और मैं बेचैन था कि मैं कैसे उन दोनों के बीच की बातों को जानूं या सुन सकूं. मुझसे नाश्ता भी नहीं किया गया. मैं बालकनी में जा कर टहलने लगा और दिमाग़ लगाने लगा कि दोनों के बीच की बातों को आख़िर कैसे जाना जाए?
अचानक मुझे मोबाइल फ़ोन के कॉल रिकॉर्डिंग फ़ीचर का ध्यान आया, जो लगभग हर फ़ोन में होता है और जिसमें हर आने-जाने वाला कॉल रिकॉर्ड हो जाता है. और नग़्मा के फ़ोन में तो वह फ़ीचर उसने ख़ुद ही ऑन कर रखा है. यह सोच कर मुझे थोड़ा सुकून मिला. हम मैं मौक़ा तलाश रहा था कि कब नग़्मा का मोबाइल मेरे हाथ लगे. और वह तलाश जल्द ही ख़त्म हो गई, जब नग़्मा अपना फ़ोन डायनिंग टेबल पर ही छोड़ कर बर्तन समेट कर अंदर उन्हें मांजने के लिए चली गई.
मैंने मौका ताड़ा और नग़्मा का मोबाइल ले सीधा अपने कमरे में घुस गया और कमरा बंद कर लिया और मोबाइल में कॉल रिकॉर्डर को ढूंढ़ने लगा. आवाज़ बाहर न जाए इसलिए मैंने कान में ईयरफ़ोन लगा लिया और दोनों के बातचीत की रिकॉर्डिंग सुनने लगा.
“हेलो”
“हां, हेलो नग़्मा, देखो फ़ोन मत काटना. मुझे तुमसे कुछ बात करती है. मैं अपनी उस हरकत पर बहुत शर्मिंदा हूं कि मैंने तुमसे निकाह तोड़ दिया था. दरअसल, उस समय हालात ही कुछ ऐसे थे मुझे दुबई जाने के लिए पैसों की ज़रूरत थी और इसलिए मैंने तुमसे निकाह न करके किसी दूसरी जगह निकाह किया. पर उस लड़की से शादी करना मेरी बड़ी भूल साबित हुई. मैं उस शादी से आज तक ख़ुश नहीं रह पाया हूं.’’
“पर तुम आज ये सारा बखेड़ा इस तरह से फ़ोन पर क्यों बता रहे हो मुझे?’’ नग़्मा ने पूछा.
“क्योंकि जो ग़लती मैंने कर दी थी, उसे अब भी सुधारना चाहता हूं. मैं जानता हूं कि तुम्हारा निकाह करना भी एक समझौता ही था, जो तुमने हालात से मजबूर होकर किया था. मैं भी दुखी और तुम भी परेशान… तो क्यों न हम दोनों एक नई ज़िंदगी की शुरुआत करें?’’
कुछ रुक कर वह बोला, ‘‘मैंने अपनी वाइफ़ को तलाक़ दे दिया है और यही मैं तुमसे भी चाहता हूं कि तुम भी अपने शौहर को तलाक़ दे दो और मैं फुजला को भी अपना लूंगा. मैं और तुम मिल कर क्यों न एक नई सुबह का स्वागत करें?’’
फ़ोन पर थोडी देर तो सन्नाटा रहा. मैं नग़्मा का जवाब सुनने के लिए मरा जा रहा था.
“सुनो आदिल, जो हुआ… जैसा भी हुआ, वो बिल्कुल सही था. तुम्हारे जैसे दहेज के लालची का क्या भरोसा? तुम जैसे लोग तो दहेज के लिए किसी लड़की की जान लेने से भी बाज़ नहीं आते और रही बात मेरे शौहर की तो मुझे उनसे बेहतर कोई मिलना तो मुमकिन ही नहीं है. उन्होंने मुझे हर तरह की आज़ादी दी है, हर काम में सहयोग करते हैं. बुरे वक़्त में उन्होंने मुझे जिस तरह संभाला, वो हर किसी के बस की बात नहीं है… और तुमने ये बात सोच भी कैसे ली कि मैं ख़ुश नहीं हूं और तुम्हारी बन सकती हूं? तुमसे मैं हंस-बोल इसलिए रही हूं कि तुम मेरे शौहर के रिश्तेदार हो. और तुम्हारे जैसे लोगों को बीवियां बदलने की आदत होती है, जो मरते दम तक नहीं छूटती. पर मैं तुम्हें बता दूं कि मेरे शौहर मुझसे बहुत प्यार करते हैं और इसका सबूत ये है कि मेरे और तुम्हारे बारे में मालूम होने के बावजूद उन्होंने तुम्हारे यहां आने पर किसी तरह का सवाल नहीं उठाया. अब फ़ोन रखो और दोबारा इस तरह की बात करने की जुर्रत मत करना.’’
फ़ोन काटा जा चुका था.
अचानक नग़्मा का क़द मेरी नज़रों में बहुत बढ़ गया था. मैंने एक लंबी सांस छोड़ी और मेरे सीने की धड़कनें भी अब सामान्य हो रही थीं. मैंने नग़्मा का मोबाइल नाश्ते की टेबल पर रख दिया. नग़्मा अब तक किचन में बर्तन साफ़ रही थी. अब्बू टीवी पर एक फ़िल्मी गाना देख रहे थे जिसके बोल थे- एक प्यार का नग़्मा है.
मेरे मन के कोने से जैसे इक आवाज़ आई कि मेरी नग़्मा भी प्यार का नग़्मा ही तो है!
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट