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लाल सिंह चड्ढा: दोस्ती, प्यार, विश्वास की ख़ुशबू बिखेरती और इतिहास की सैर कराती एक फ़ीलगुड फ़िल्म

अमरेन्द्र यादव by अमरेन्द्र यादव
August 11, 2022
in ओए एंटरटेन्मेंट, ज़रूर पढ़ें, रिव्यूज़
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लाल सिंह चड्ढा: दोस्ती, प्यार, विश्वास की ख़ुशबू बिखेरती और इतिहास की सैर कराती एक फ़ीलगुड फ़िल्म
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ट्रेडिशनली बॉलिवुड रीमेक बनाने में कच्चा रहा है. एक से एक क्लाक्सिक फ़िल्मों की वाहियत कॉपी बनाकर अपनी भद्द पिटा चुका है. ऐसे में हॉलिवुड की ऑल टाइम क्लासिक्स में एक फ़ॉरेस्ट गम्प के बहुचर्चित रीमेक, लाल सिंह चड्ढा से बहुत ज़्यादा उम्मीद नहीं थी. पर जैसा कि इस फ़िल्म का हीरो कहता है,‘दुनिया में चमत्कार होते हैं’, अमन और मानवता की बातें करनेवाली यह फ़िल्म दिलों को छूने में चमत्कारी ढंग से क़ामयाब रही है.

फ़िल्म: लाल सिंह चड्ढा
सितारे: आमिर ख़ान, करीना कपूर ख़ान, नागा चैतन्य, मोना सिंह, मानव विज और अन्य.
डायरेक्टर: अद्वैत चंदन
लेखक: अतुल कुलकर्णी
रन टाइम: 159 मिनट
रेटिंग: 4/5 स्टार

एक स्लो लर्नर बच्चा, जो ठीक से चल भी नहीं पाता. अपनी अकेली मां के साथ रहता है. वह ख़ुद को दूसरों से कमतर और कम अकल समझता है, पर उसकी मां हमेशा कहती है,‘तू दूसरों से अलग है, कम अकल नहीं है.’ वही लड़का पचास की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते इतने कारनामे कर चुका होता है, जिसके बारे में सामान्य अकल वाला एक आम आदमी कल्पना तक नहीं कर सकता है. ज़िंदगी उसे जब, जिस भी भूमिका के लिए चुनती है, वह उसे पूरी ईमानदारी से निभाता है. वह चीज़ों के बारे में ज़रूरत से ज़्यादा सोचता नहीं, बेवजह दिमाग़ लगाता नहीं. बस उसे अपनी मां की कही वह बात याद है,‘जितनी हो सकती है, उससे ज़्यादा मेहनत करनी है.’ वह लड़का है देसी फ़ॉरेस्ट गम्प यानी लाल सिंह चड्ढा. अगर आपने टॉम हैंक्स की मशहूर फ़िल्म फ़ॉरेस्ट गम्प देखी होगी तो स्टोरी हूबहू वही है, पर बेहतरीन देसी एडॉप्टेशन के साथ. फ़ौजी परिवार से आनेवाले लाल सिंह के सपने बड़े नहीं हैं. वह बचपन की दोस्त रूपा से शादी करना चाहता है. लेकिन रूपा बहुत अमीर और फ़ेमस बनना चाहती है. दोनों की ज़िंदगियां कभी समानांतर यानी पैरलल चलती हैं, तो कभी एक-दूसरे में गुत्थम-गुत्था होकर प्रेम कहानी जैसी बन जाती है. इसी प्रेम कहानी के साथ-साथ चलते-चलते हम देश की कहानी भी देख लेते हैं.

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Lal-Singh-Chaddha_Review

इस फ़िल्म को बेमिसाल बनाने में इसकी अलहदा क़िस्स्सागोई के साथ-साथ दो बातों की मुख्य भूमिका रही है. पहली-स्मार्ट और चुस्त लिखाई और दूसरी-सभी कलाकारों की लाजवाब ऐक्टिंग. जैसे फ़िल्म फ़ॉरेस्ट गम्प अमेरिकी इतिहास की प्रमुख घटनाओं को अपनी कहानी में समेटती है, उसी तरह भारत के आधुनिक इतिहास की चुनिंदा प्रमुख घटनाओं को यह फ़िल्म अपने नैरेटिव में शामिल करती है. उदाहरण के तौर पर-दो विश्व युद्धों में भारत की भूमिका, भारत पाक की 1965 की लड़ाई, 1983 में क्रिकेट वर्ल्ड कप की जीत, ऑपरेशन ब्लू स्टार, इंदिरा गांधी की हत्या, सिख विरोधी दंगे, राममंदिर आंदोलन के लिए निकाली गई रथयात्रा, बाबरी मस्जिद विध्वंस, बॉम्बे बम ब्लास्ट और उसके बाद के दंगे, कारगिल वॉर, 2008 का मुंबई पर हुआ आतंकी हमला, अन्ना हज़ारे का जन लोकपाल आंदोलन जैसी घटनाएं कहानी के फ़्लो के साथ आती हैं, ज़बरदस्ती ठूंसी गई नहीं लगतीं.
फ़िल्म में कुछ लंबे समय तक याद रह जानेवाले वन लाइनर्स हैं, तो कुछ दिल को छू जानेवाले डायलॉग्स. फ़िल्म में दंगों को मलेरिया नाम दिया गया है. दोस्त मोहम्मद के पूछने पर कि तुम्हें कभी इबादत करते नहीं देखा, लाल कहता है,‘मज़हब से कभी-कभी मलेरिया फैलता है. रब तो हमारे अंदर है. मेरे अंदर तुम्हारे अंदर.’ लाल सिंह की मां की फ़िलासफ़ी,‘ज़िंदगी गोलगप्पे जैसी होती है. पेट तो भर जाए, पर मन नहीं भरता.’ गाने माहौल के अनुरूप हैं. सुनने में अच्छे लगते हैं, ख़ासकर कहानी सॉन्ग. इसके बोल दिल में गहरे उतरते हैं.

Lal-Singh-Chaddha_Review

अभिनय की बात करें तो स्लो लर्नर और भोले-भाले व्यक्ति के किरदार में आमिर ख़ान क्या ख़ूब जंचे हैं. उन्होंने अपनी डायलॉग डिलिवरी से लेकर हावभाव और लुक तक पर काफ़ी मेहनत की है. उनका पंजाबी लहज़ा प्यारा लगता है. लाल सिंह की बचपन की दोस्त रूपा डिसूज़ा बनी करीना भी भली लगती हैं. थ्री ईडियट्स की तरह एक बार फिर आमिर और करीना की केमिस्ट्री दमदार रही है. मां की भूमिका में मोना सिंह प्रभावित करती हैं. एक्स्टेंडेड कैमियो में नागा चैतन्य ने कमाल का परफ़ॉर्मेंस दिया है. वे सेना के दिनों में लाल सिंह के दोस्त बाल राजू उर्फ़ बाला की भूमिका में ख़ूब खिलते हैं. पाकिस्तानी सिपाही मोहम्मद बने मानव विज भी लाल सिंह की स्टोरी का अहम किरदार हैं. सभी कलाकारों ने अपनी-अपनी भूमिका को इत्मीनान से निभाया है. कुल मिलाकर कास्टिंग परफ़ेक्ट है.
दुनियादारी की कम समझ रखनेवाले इंसान के माध्यम से मानवता, दोस्ती, प्यार और विश्वास का संदेश देती यह फ़िल्म बता जाती है कि समाज को स्मार्ट नहीं, नेकदिल लोगों की ज़रूरत है. हल्के-फुल्के ढंग से गहरी बातें करते हुए, आंखों के कोरों को भिगोते हुए यह भी साबित करती है कि लोग जिसे पागल समझते हैं, अक्सर वही दुनिया का सबसे समझदार इंसान होता है. भारत के मॉडर्न इतिहास की सैर कराती एक फ़ीलगुड फ़िल्म है लाल सिंह चड्ढा. इसके लिए निर्देशक अद्वैत चंदन और लेखक अतुल कुलकर्णी को पूरे मार्क्स मिलने चाहिए.

बॉक्स ऑफ़िस प्रेडिक्शन
ठग्स ऑफ़ हिंदोस्तान जैसी डिज़ास्टर देने के बाद आमिर ख़ान की यह एक दमदार वापसी है. लाल सिंह चड्ढा उनकी सबसे यादगार भूमिकाओं में एक होने जा रही है. हमें नहीं लगता कि फ़िल्म के ख़िलाफ़ चल रहे नकारात्मक प्रचार से कुछ भी फ़र्क़ पड़ने जा रहा है. फ़िल्में अगर बायकॉट या सपोर्ट कैम्पेन से हिट या फ़्लॉप होतीं तो पिछले दिनों सम्राट पृथ्वीराज चौहान और धाकड़ की बॉक्सऑफ़िस पर बुरी गति नहीं होती. उम्मीद है अच्छी माउथ पब्लिसिटी के चलते बॉलिवुड की परफ़ेक्ट वापसी साबित होगी फ़िल्म लाल सिंह चड्ढा.

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अमरेन्द्र यादव

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