• होम पेज
  • टीम अफ़लातून
No Result
View All Result
डोनेट
ओए अफ़लातून
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
ओए अफ़लातून
Home ओए हीरो

सभी हिंदी भाषियों को एक प्लैटफ़ॉर्म पर ला खड़ा करेगा पंक्तियां ऐप: दीपक जौरवाल

शिल्पा शर्मा by शिल्पा शर्मा
September 28, 2021
in ओए हीरो, ज़रूर पढ़ें, मुलाक़ात
A A
सभी हिंदी भाषियों को एक प्लैटफ़ॉर्म पर ला खड़ा करेगा पंक्तियां ऐप: दीपक जौरवाल
Share on FacebookShare on Twitter

उन्होंने आईआईटी कानपुर से पढ़ाई की है, वे इंजीनियर हैं और एक दिन उन्होंने इन्स्टाग्राम पर एक अकाउंट बनाया ‘हिंदी पंक्तियां’ के नाम से, जिसके आज के समय में 4,10,000 फ़ॉलोअर्स हैं. हिंदी के पाठक, लेखक और यहां तक कि प्रकाशकों ने भी उनकी इस सफलता को सिर माथे लिया है. उन्होंने ख़ुद भी लोगों की इस पसंद को सही तरीक़े से समझा और अब हिंदी कम्यूनिटी को एक प्लैटफ़ॉर्म पर लाने के लिए उन्होंने पंक्तियां ऐप भी लॉन्च कर दिया है. आप ठीक समझे, आज हिंदी वाले लोग में हम ‘हिंदी पंक्तियां’ के संस्थापक दीपक जौरवाल से मुलाक़ात करेंगे.

हिंदी के लोगों की ज़रूरतों को समझते हुए सोशल मीडिया पर एक ऐसा मंच उपलब्ध कराना कि वह हर पाठक और लेखक को अपनी अहमियत का एहसास दिला सके और साथ ही हिंदी के प्रसार का एक बेहतरीन माध्यम भी बन जाए, दूर से देखने पर दीपक जोरवाल के इन्स्टाग्राम अकाउंट ‘हिंदी पंक्तियां’ की ये दो ख़ूबियां मुझे समझ आईं, लेकिन जब मैंने उनसे बात की तो जाना कि आख़िर पंक्तियां की शुरुआत कैसे हुई और वे किन उद्देश्यों को लेकर आगे बढ़ रहे हैं. जब हम हिंदी में रोज़ी-रोटी की, किसी उद्यम की बात करते हैं तो दीपक जौरवाल को सुना जाना बहुत ज़रूरी है इसलिए कोई देर न करते हुए मैं सीधे आपको उनसे हुए सवाल-जवाबों से रूबरू करा रही हूं…

दीपक सबसे पहले तो अपने बारे में बताइए. आप आईआईटी कानपुर से हैं, एक इंजीनियर हैं, फिर हिंदी साहित्य की ओर रुझान कैसे हो गया? और हिंदी पंक्तियां की बात करें तो इस अनूठी पहल को शुरू करने का आइडिया कैसे और कब आया?
पहले तो मैं ये बता दूं कि जब भी लोग हिंदी की बात करते हैं तो लोगों को लगता है कि हिंदी साहित्य की बात हो रही है. मेरे हिसाब से हिंदी को केवल साहित्य से आंकना सही नहीं है. मेरा भी हिंदी साहित्य की तरफ़ बहुत रुझान है, ऐसा बिल्कुल नहीं है. दरअसल हुआ ये कि जब मैं आईआईटी कानपुर में पढ़ रहा था तो वहां अमूमन जो भाषा हम इस्तेमाल की जाती है, वो इंग्लिश है और चूंकि आईआईटी में जगह-जगह से लोग आते हैं तो एक कॉमन भाषा बन जाती है अंग्रेज़ी. यह बात अपने आप में एक अच्छी चीज़ है कि एक ही भाषा से सब लोग जुड़ पाते हैं. लेकिन उसका हम जैसे लोगों पर, जो हिंदी पट्टी से जाते हैं और जिनकी इंग्लिश बहुत अच्छी नहीं है, बहुत नकारात्मक असर पड़ता है. हमें लगता है कि हम अपनी बात कभी स्टेज पर जाकर बोल ही नहीं पाएंगे. हम अपनी बात लोगों तक कैसे पहुंचाएंगे? ये जो समस्या है, इससे दो-चार होते हुए मैंने ‘पंक्तियां’ बनाया.

इन्हें भीपढ़ें

फ़िक्शन अफ़लातून#14 मैं हार गई (लेखिका: मीता जोशी)

फ़िक्शन अफ़लातून#14 मैं हार गई (लेखिका: मीता जोशी)

March 22, 2023
Fiction-Aflatoon

फ़िक्शन अफ़लातून प्रतियोगिता: कहानी भेजने की तारीख़ में बदलाव नोट करें

March 21, 2023
सशक्तिकरण के लिए महिलाओं और उनके पक्षधरों को अपने संघर्ष ध्यान से चुनने होंगे

सशक्तिकरण के लिए महिलाओं और उनके पक्षधरों को अपने संघर्ष ध्यान से चुनने होंगे

March 21, 2023
फ़िक्शन अफ़लातून#13 लेकिन कैसे कह दूं इंतज़ार नहीं… (लेखिका: पद्मा अग्रवाल)

फ़िक्शन अफ़लातून#13 लेकिन कैसे कह दूं इंतज़ार नहीं… (लेखिका: पद्मा अग्रवाल)

March 20, 2023

इसकी शुरुआती रूपरेखा कैसी थी? लोगों ने आपकी टीम की इस पहल को कब सीरियसली लेना शुरू किया? क्या आपने लोगों की सोच में बदलाव होते देखा है?
जब यह पेज बन गया तो मैं अपने हिसाब से उसमें नई-नई चीज़ें करता चला गया. धीरे-धीरे बहुत सारे लोग जुड़ने लगे और अपनी पंक्तियां मेरे साथ शेयर करने लगे. इसी तरह लोग मुझे अपना कॉन्टेंट भेजते रहे और मैं उसे क्रिएट करता रहा. जब लगातार कॉन्टेंट आता रहा तो केवल अपने मन की लिखनेवाले ही नहीं, बल्कि कई पाठक भी हमसे जुड़ने लगे. जब बहुत सारे पाठक और लेखक जुड़े तो हम पब्लिशर्स और बड़े राइटर्स की नज़र में भी आ गए. तो वे लोग भी हमारे साथ जुड़ गए, किसी न किसी कोलैबरेशन के तहत. इस तरह हम हिंदी की साहित्यिक कम्यूनिटी से जुड़ गए हैं और उन्होंने हमें सीरियसली लेना शुरू कर दिया. हालांकि हमारे साथ काम करनेवाले अधिकतर लोग ऐसे हैं, जिनका हिंदी साहित्य से कोई जुड़ाव या फिर उस ओर कोई रुझान नहीं है. हां, उन्हें थोड़ा-बहुत लिखने-पढ़ने में; अपने वॉट्सऐप, ट्विटर पर अपडेट करने में या डायरी लिखने में या फिर अपने दोस्तों से शेयर करने में रुचि है और इसके लिए अच्छी-अच्छी लाइनें चाहिए. उनके पास बहुत समय भी नहीं है कि अलग से बैठकर किताबें पढ़ें. तो ऐसे लोग भी सोशल मीडिया पर रहते हुए एक-दो मिनट में हमारी पंक्तियां पढ़ लेते हैं. इस तरह उन्हें अपना समय अलग से भी नहीं निकालना पड़ रहा है. इसी बीच जब हमारे पेज पर हम किन्हीं लेखकों की पंक्तियां डालते हैं तो अपने आप उनकी उत्सुकता बढ़ती है वो देखना चाहते हैं कि ये कौन से लेखक हैं, वो जानने की कोशिश करते हैं. बहुत सारे ऐसे भी लोग हैं जो इस तरह हिंदी की दो-चार पंक्तियां लिखने और पढ़ने की शुरुआत हमारे पेज से करते हैं.

पंक्तियां को लेकर आपका मुख्य उद्देश्य क्या है? आपको कब लगा कि पंक्तियां शुरू करना आप लोगों का सही फ़ैसला था?और इसके अब तक के सफ़र में आपको किन लोगों का सहयोग मिला, जिनका ज़िक्र ज़रूर करना चाहेंगे?
शुरुआती तौर पर ही पंक्तियां को लेकर यह बात तो तय हो गई थी कि हम जो ये प्लैटफ़ॉर्म बना रहे हैं सोशल मीडिया के ज़रिए उसका उद्देश्य साहित्य की सेवा करना बिल्कुल नहीं है, इसका उद्देश्य तब बस इतना था कि जो नई पीढ़ी के लोग हैं या जो लोग अंग्रेज़ी माध्यम के पढ़े-लिखे नहीं हैं, वो सोशल मीडिया पर हिंदी में बोलने-बतियाने में सहज महसूस करें और आपस में जुड़ें. वे सारे लोग जो हिंदी भाषा में ख़ुद को व्यक्त करने में कम्फ़र्टेबल पाते हैं, वे ख़ुद को कमतर माने बिना सोशल मीडिया पर ऐसा कर सकें. आत्मविश्वास के साथ ख़ुद को व्यक्त कर सकें.
आज से डेढ़-दो बरस पहले, जब लोगों ने वॉट्सऐप पर हमारी पंक्तियां शेयर करना शुरू कीं, हम तक पहुंचे और हमें बताना शुरू किया कि वे हमारी पंक्तियों को पसंद करते हैं. हमें फ़ॉलो करना शुरू किया तब लगा कि हां, धीरे-धीरे यह एक सही दिशा में जा रहा है. तब हमने यह भी सोचना शुरू किया कि इसे और बेहतर कैसे किया जा सकता है. अब हमसे कई लेखक और प्रकाशक जुड़े हुए हैं और हम सभी की यह कोशिश रहती है कि कैसे हिंदी का पुराना माहौल, जिसमें लोग मिलकर काम नहीं कर पाए हैं, उसे बदला जाए. हम तो ख़ैर बिल्कुल नए हैं, लेकिन साहित्य और व्यापार में हिंदी के क्षेत्र में जो लोग भी काम कर रहे हैं, वे सब मिलजुल कर काम करें यही उद्देश्य लेकर आगे बढ़ रहे हैं.

पिछले दिनों आपने पंक्तियां ऐप भी शुरू किया, इसका रिस्पॉन्स कैसा है? क्या आप इससे फ़ुल टाइम जुड़े हैं या नौकरी करते हुए इसके लिए समय निकालते हैं?
हमने जो पंक्तियां ऐप शुरू किया है, उसमें ज़रूर ऑफ़िशली हम तीन लोग हैं: मैं हूं, जो ऐप को प्रोडक्ट की तरह, किस तरह डिज़ाइन किया जाए, मार्केटिंग और लोगों को इससे जोड़ने का काम देखता हूं. मेरे दो साथी और हैं अभिषेक और राजकुमार, उनका काम होता है कि जो हमने सोचा है, उसे तकनीकी रूप से कैसे तैयार किया जाए. मैं हिंदी पंक्तियां और ऐप से फ़ुल टाइम जुड़ा हुआ हूं. अभी के लिए अभिषेक और राजकुमार अलग से अपना वक़्त निकालकर इससे जुड़े हुए हैं. इस ऐप को बनाने का भी हमारा बुनियादी उद्देश्य यही है कि हिंदी की कम्यूनिटी के हर क्षेत्र के लोग एक प्लैटफ़ॉर्म पर आ जाएं.
हमारे ऐप को अब तक 22,000 लोग सब्स्क्राइब कर चुके हैं. यदि मैं इन्स्टाग्राम पेज के फ़ालोअर्स के हिसाब से रिस्पॉन्स नापूं तो ये सही पैमाना नहीं होगा, क्योंकि सोशल मीडिया के ऐल्गारिदम्स बहुत अलग होते हैं. हमारी एक पोस्ट हमारे सारे फ़ॉलोअर्स तक नहीं पहुंचती है. कुछ लोगों को दिखाई देती है, कुछ को नहीं. जो पोस्ट ऐप से रिलेटेड है, कई बार उसपर लोग कम एंगेज होते हैं. फ़ॉलोअर्स के लगभग 10-15 प्रतिशत लोगों तक ही पोस्ट की रीच होती है. तो इस लिहाज से यदि हम देखें तो जिन तक वह पोस्ट पहुंच रही है, उनमें से काफ़ी लोग ऐप को सब्स्क्राइब कर रहे हैं. कई लोग यूज़ भले ही न कर रहे हों, पर उन्हें पता है कि पंक्तियां का ऐप आ चुका है. हमें उम्मीद है कि जब ऐप में और भी चीज़ें जुड़ेंगी और उसमें सुधार होगा तो ये लोग भी हमारे साथ आ जुड़ेंगे.

क्या हिंदी पंक्तियां का सफ़र सस्टेनेबल बिज़नेस मॉडल में तब्दील हो चुका है या हो जाएगा? आप इस बात को लेकर कितने आश्वस्त हैं?
अभी तक हम लोग भी इस बात को इतना सीरियसली नहीं ले रहे थे, कुछ समय पहले तक आप पूछतीं तो शायद मैं बहुत आत्मविश्वास से भरा हुआ नहीं था, लेकिन अब जबकि मैं फ़ुल टाइम इसमें जुड़ गया हूं, चीज़ों के लेकर बहुत आश्वस्त हूं. हम लोग आत्मविश्वास से भरे हुए हैं कि इसके आसपास एक सफल बिज़नेस मॉडल खड़ा किया जा सकता है.
मैं आज तक ये बात समझ नहीं पाया कि हिंदी के आसपास बिज़नेस मॉडल नहीं बन सकता, ऐसा लोग क्यों सोचते हैं? हमारे देश में लगभग 42% लोग हिंदी बोलते हैं, पढ़ते और समझते हैं और बाक़ी कई क्षेत्रीय भाषाएं भी देवनागरी में ही लिखी जाती हैं और ये भाषाएं बोलने वाले भी हिंदी अच्छी तरह जानते हैं. इस तरह देखें तो 50-60% लोग ऐसे हैं, जिन्हें आप हिंदी में कॉन्टेंट दे सकते हैं या वे पढ़ना चाहते हैं. इतना बड़ा पाठक वर्ग है और आप उसके आसपास एक सफल बिज़नेस मॉडल नहीं खड़ा कर सकते या नहीं कर पा रहे हैं तो यह मानकर चलिए कि कहीं न कहीं आपके प्रोडक्ट या मॉडल में ही कोई परेशानी है.

Tags: #Hindi_Wale_Log#हिंदी_वाले_लोगAppBaatein Hindi KiDeepak JorwalDeepak Shankar JorwalHindi panktiyaan AppHindi panktiyanHindi Wale LogHindi Wali BaateinInstagramInterviewmulaqatOye HeroPanktyaanइन्स्टाग्रामओए हीरोदीपक जोरवालदीपक शंकर जोरवालपंक्तियां ऐपबातें हिंदी कीमुलाक़ातहिंदी पंक्तियांहिंदी पंक्तियां ऐपहिंदी वाली बातेंहिंदी वाले लोग
शिल्पा शर्मा

शिल्पा शर्मा

पत्रकारिता का लंबा, सघन अनुभव, जिसमें से अधिकांशत: महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर कामकाज. उनके खाते में कविताओं से जुड़े पुरस्कार और कहानियों से जुड़ी पहचान भी शामिल है. ओए अफ़लातून की नींव का रखा जाना उनके विज्ञान में पोस्ट ग्रैजुएशन, पत्रकारिता के अनुभव, दोस्तों के साथ और संवेदनशील मन का अमैल्गमेशन है.

Related Posts

फ़िक्शन अफ़लातून#12 दिखावा या प्यार? (लेखिका: शरनजीत कौर)
ज़रूर पढ़ें

फ़िक्शन अफ़लातून#12 दिखावा या प्यार? (लेखिका: शरनजीत कौर)

March 18, 2023
फ़िक्शन अफ़लातून#11 भरा पूरा परिवार (लेखिका: पूजा भारद्वाज)
ज़रूर पढ़ें

फ़िक्शन अफ़लातून#11 भरा पूरा परिवार (लेखिका: पूजा भारद्वाज)

March 18, 2023
फ़िक्शन अफ़लातून#10 द्वंद्व (लेखिका: संयुक्ता त्यागी)
ज़रूर पढ़ें

फ़िक्शन अफ़लातून#10 द्वंद्व (लेखिका: संयुक्ता त्यागी)

March 17, 2023
Facebook Twitter Instagram Youtube
ओए अफ़लातून

हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

संपर्क

ईमेल: [email protected]
फ़ोन: +91 9967974469
+91 9967638520
  • About
  • Privacy Policy
  • Terms

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.

No Result
View All Result
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • टीम अफ़लातून

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist