आज उनसे मिलना है हमें, आज उनसे मिलना है हमें
चलो उनके लिए कुछ लेते चलें
थोड़ी गुझिया बर्फ़ी लेते चलें?
थोड़ी चकली चिवड़ा लेते चलें…
अब होली पर ऐसे गाने की याद आना तो स्वाभाविक है. इसमें होली का पकवान गुझिया जो शामिल है! तो आइए, आज जानते हैं इस स्वादिष्ट और होली पर लगभग हर उत्तर भारतीय घर में बनने वाले व्यंजन का इतिहास.
ऊपर लिखा गाना ज़्यादा पुराना नहीं है. राजश्री बैनर के तले आई फ़िल्म “प्रेम रतन धन पायो” में सलमान ख़ान गुझिया लिए इस गाने पर नाचते दिखाई देते हैं. मैं सोचती हूं कि भारतीय लोगों के मन में खाना किस हद तक जड़ें जमाए हुए है: हम खाना बनाते रहते हैं, नहीं बनाते तो उसके बारे में सोचते हैं या बातें करते हैं, खाना बनाना सीखते रहते हैं, जिनके पास वक़्त कम है वो भी खाने के बारे में बातें करते हैं, उसके बारे में नॉस्ताल्जिया में जीते हैं या और कुछ नहीं तो बाहर से खाना ऑर्डर करके खाते मिल ही जाएंगे… और हमारे त्यौहार, वो तो जैसे व्यंजनों के आस पास ही बुने गए हैं!
अब होली को ही ले लीजिए, फागुन आया नहीं कि ठंडाई की, दही बड़ों की और खासकर गुजिया (जिसे आमतौर पर गुझिया या करंजी भी कहते हैं) की बातें होने लगेंगी. वैसे तो होली ठिठोली का त्यौहार माना जाता रहा है, पर इसके आने के तीन-चार दिन पहले से घरों में कढ़ाईयां चढ़ जाती हैं और तेल, घी की ख़ुशबू फ़िज़ां में फैलने लगती है. हमारा आज का व्यंजन गुझिया भी ख़ासतौर पर त्यौहारों से जुड़ा हुआ है और न जाने कितने ही लोगों की यादों में डेरा जमाए हुए बैठा हुआ है. खासकर होली के आसपास तो लोग इसे बनाते-खाते हैं ही और अगर अपने घर से दूर हैं तो इसे ख़ूब याद भी करते हैं.
आमतौर पर लोग गुजिया और गुझिया को एक ही चीज़ के दो नाम समझते हैं, पर आपको बता दूं कि ये दो अलग-अलग व्यंजन हैं. दोनों दिखने में लगभग एक जैसी होती हैं, भरावन भी लगभग एक जैसा ही होता है, पर स्वाद, टेक्स्चर और बनाने के तरीक़े में थोडा अंतर होता है. और ये अंतर इसलिए होता है कि गुझिया में ऊपर से चाशनी चढ़ाई जाती है, जबकि गुजिया में ऊपर से चाशनी नहीं चढ़ाई जाती है.
गुझिया को देशभर में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे-महाराष्ट्र में इसे करंजी कहा जाता है तो गुजरात में घुघरा कहा जाता है, बिहार में यही व्यंजन पेड़किया के नाम से मशहूर है जिसे छठ पर्व पर बड़े ही चाव से बनाया खाया खिलाया जाता है.
इतिहास गुझिया का: गुझिया का सबसे पुराना उल्लेख तेरहवीं शताब्दी में ऐसे व्यंजन के रूप में मिलता है, जिसे गुड़ और शहद को आटे के पतले खोल में भरकर धूप में सुखाकर बनाया गया था, पर आधुनिक गुझिया का का जन्म सत्रहवीं शताब्दी में उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में माना गया है. कहा जाता है कि वहीं से ये राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार और अन्य प्रदेशों में फैली. दक्षिण भारत में भी गुझिया अलग-अलग नामों और भरावन के साथ बनाई जाती है. मान्यता यह भी है कि समोसे के भारत में आने के साथ वाले समय में ही गुझिया ने भी अपनी जगह बनाई. कहा ऐसा भी जाता है की गुझिया अन्य एशियाई देशों से भारत आई और यहां के खानपान में ढल गई.
कैसे बनाई जाती है: गुझिया/गुजिया को बनाने के लिए मैदे की लोई को पतला पूरी जैसा बेलकर उसमें सूजी/मावा और मेवे, खोपरा (सूखा किसा हुआ नारियल) और गुड़ या शक्कर जैसी भरावन भरी जाती है. फिर इस पूड़ी को मोड़कर किनारों को दबाकर गुजिया वाला आकार दिया जाता है फिर इसे घी में तला जाता है. जब ये अच्छी तरह तल जाती है तो फूल जाती है. अब यह तो हुई गुजिया. कुछ लोग इसे ऐसे ही खाते हैं. लेकिन कुछ लोग इसके ठंडा होने पर इसपर चाशनी चढ़ाते हैं और ये चाशनी चढ़ी गुजिया, गुझिया कहलाती है. कहीं-कहीं गुझिया ऊपर से रबड़ी डालकर भी खाई जाती है.
पारंपरिक रूप से इसे हाथों से गोठ कर ही बनाया जाता था, पर अब इसको बनाने के लिए तरह तरह के सांचे आ गए हैं. मैंने तो अपने बचपन के समय से ही इसे सांचे से ही बनते देखा है.
कब बनाई जाती है: वैसे तो यह खाने की चीज़ है, कभी-भी बनाइए और खाइए, पर गुजिया को मुख्य रूप से होली से ही जोड़ा जाता रहा है. यूं तो हमारे घरों में मैंने इसे दीवाली पर भी बनते देखा है. जब होली खेलने के बाद लोग होली मिलने के लिए आते हैं तो बाक़ी कई व्यंजनों के साथ गुजिया भी भरपूर चाव से खिलाई जाती रही है. ठीक ऐसा ही दीवाली के समय भी होता है. हमारे घरों में इसे गूंजा/गूंजे के नाम से जाना जाता रहा है.
क़िस्सा गुजिया का: ये क़िस्सा तो मैंने भी पहली बार जाना कि पुराने ज़माने में महिलाएं गुझिया बनाने के लिए होली के कुछ दिन पहले से ही नाख़ून काटना बंद कर देती थीं, क्योंकि लम्बे नाख़ूनों से गुझिया के कोने दबाने/गोठने में आसानी होती थी.
हमारे घर में समान्यत: गुजिया बनाई जाती थी, मतलब बिना चाशनी वाली गुजिया. मैंने अपने घर में इसे अलग ढंग से बनते देखा हमारे यहां इसकी भरावन में मावा या सूजी नहीं, बल्कि सिर्फ़ मेवे के टुकड़े, शक्कर का बूरा और नारियल का बूरा यानी खोपरा भरा जाता था. हालांकि मैं मीठे की ख़ास शौक़ीन कभी नहीं रही, पर वो गुजिया, जो दीपावली पर बनती थी और मुझे बेहद पसंद आती थी. इसे बड़े पवित्र व्यंजन की तरह ट्रीट किया जाता था नहा-धोकर बड़ी साफ़-सफ़ाई के साथ इसे बनाया जाता था और लक्ष्मी पूजा में इसका भोग लगता था.
तो ये थी हमारी गुजिया की कहानी. आपके भी तो कुछ क़िस्से-कहानियां होंगे इससे जुड़े. हमें ज़रूर बताइएगा, इस आई डी पर:
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फिर जल्द ही मिलेंगे अगले व्यंजन के साथ. तब तक रंग उड़ाइए, गुलाल लगाइए, गुझिया बनाइए, खाइए, खिलाइए… हैप्पी होली!
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट