प्रेम की कक्षा वह कक्षा है, जिसमें आप उम्रभर अटके रह सकते हैं, विनोद कुमार शुक्ल की कविता ‘कक्षा के काले तख़्ते पर सफ़ेद चाक से बना’ यही बताती है.
कक्षा के काले-तख़्ते पर सफ़ेद चाक से बना
फूलों का गमला है
वैसा ही फूलों का गमला
फ़र्श पर रखा है
लगेगा कि गमले को देखकर
काले-तख़्ते का चित्र बनाया गया हो
जबकि चित्र को देखकर हूबहू वैसा ही हुआ गमला
फ़र्श पर रखा है
गहरी नदी के स्थिर जल में
उसका प्रतिबिम्ब है
वह नहीं है जबकि
जल में प्रतिबिम्ब देख रहा हूं
वह आई बाद में
प्रतिबिम्ब के बाद में
अपने प्रतिबिम्ब को देखकर
वह सजी संवरी
प्रतिबिम्ब में उसके बालों में
एक फूल खुंसा है
परन्तु उसके बालों में नहीं
मैंने सोचा काले-तख़्ते के चित्र से
फूल तोड़कर उसके बालों में लगा दूं
या गमले से तोड़कर
या प्रतिबिम्ब से
प्रेम की कक्षा में जीवन-भर अटका रहा
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