• होम पेज
  • टीम अफ़लातून
No Result
View All Result
डोनेट
ओए अफ़लातून
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • लेखक
ओए अफ़लातून
Home ज़रूर पढ़ें

इतिहास के झरोखे से जानें कलाकंद की मीठी कहानी

कनुप्रिया गुप्ता by कनुप्रिया गुप्ता
July 5, 2021
in ज़रूर पढ़ें, ज़ायका, फ़ूड प्लस
A A
इतिहास के झरोखे से जानें कलाकंद की मीठी कहानी
Share on FacebookShare on Twitter

भारतीय रेलवे पूरे देश को जोड़ता है ये तो आप जानते ही हैं, पर इसकी एक ख़ासियत और बताइए? अब आप सोचेंगे हमें क्या पता कौन-सी ख़ासियत की बात हो रही… तो मैं ही बता देती हूं. बात ये है कि आप किसी भी स्टेशन पर जाइए अगर उस शहर का कोई प्रसिद्ध व्यंजन है तो वो आपको स्टेशन पर ज़रूर मिल जाएगा. हां, ये ज़रूरी नहीं कि वो बहुत बेहतरीन होगा पर कम से कम आप उस स्वाद का मज़ा तो उठा ही सकते हैं. इस तरह दक्षिण से आया कोई यात्री उत्तर के पकवान चख ले और उत्तर से आए यात्री दक्षिण के व्यंजनों का लुत्फ़ ले सके. यही वो काम है, जिसने भारतीय रेल को सिर्फ़ जीवन रेखा नहीं, बल्कि संस्कृतियों से जोड़ने का माध्यम भी बनाया है. मैं जानती हूं कि इस इंट्रो में आपको कलाकंद के बारे में कुछ जानने को नहीं मिला, पर ट्रेन में थोड़ा सफ़र के मुद्दे पर आने का मज़ा ही अलग है. तो पढ़ते जाइए…

तो बात हो रही है भारतीय रेलवे स्टेशनों पर मिलनेवाले ख़ास व्यंजनों की, है ना? भारत के कितने ही स्टेशन हैं जिनपर कोई विशेष मिठाई मिलती है. कई बार तो स्टेशन ही एकमात्र स्थान होता है, जिसके माध्यम से ये स्पेशल मिठाई बेची जाती है और यही मिठाइयां हैं, जो दूर-दूर के शहरों को एक-दूसरे से जोड़ देती हैं. अब आप ही सोचिए न झारखंड के झुमरी तलैया और राजस्थान के अलवर में आख़िर क्या समानता हो सकती है? नहीं पता न ? अच्छा मैं बताती हूं. वो समानता है-कलाकंद. जी हां, कलाकंद ही है जो इन दोनों जगहों का बेहद प्रसिद्ध है. और वैसे कलाकंद जोड़ता तो सरहद पार के लोगों को भी है, क्योंकि कलाकंद जितना भारत में प्रसिद्ध है उतने ही शौक़ से पकिस्तान में भी खाया जाता है. पर अभी हम बात करेंगे केवल भारत के कलाकंद की. वैसे तो कलाकंद को मिल्ककेक भी कहा जाता है और जो लोग मिठाइयों के ख़ास शौक़ीन नहीं भी होते वो भी इसे चाव से खाते हैं.

इतिहास कलाकंद का: कहानियां मज़ेदार होती हैं. ये मैं हमेशा से कहती रही हूं और जब इन कहानियों का सम्बन्ध पेटपूजा या मुंह के स्वाद से हो तो कहानियां कभी स्वादिष्ट तो कभी चटखारेदार भी हो जाती हैं. कलाकंद के जन्म के पीछे भी बड़ी मज़ेदार कहानी है. बंटवारे के वक़्त पाकिस्तान से बाबा ठाकुर दास का परिवार भारत आया और अलवर में आकर बस गया. यहां उन्होंने मिठाई की दुकान लगाई. वर्ष 1947 की बात है इसी दुकान में बाबाजी दूध उबाल रहे थे और किसी कारण से वो फट गया. बाबाजी ने उसे थोड़ा और पकाया, उसमें चीनी डाल दी और दोनों को मिलाकर पकाकर एक सांचे में जमा दिया. जब ये अच्छे से जम गया तो हर टुकड़े के बीच के हिस्से में लाल रंग-सा दिखा. लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ और उन्होंने बाबाजी से पूछा कि ये क्या है और तब बाबाजी ने कहा यही तो कला है और इस तरह कलाकंद का नामकरण भी हुआ और जन्म भी. उसके बाद कलाकंद ने अपनी प्रसिद्धि के झंडे सिर्फ़ भारत में ही नहीं, भारत के बाहर विदेशों में भी गाड़े. बड़े-बड़े नेता अभिनेता प्रसिद्ध लोग अगर अलवर जाते हैं तो वहां का कलाकंद ज़रूर खाते हैं और अब तो अलवर का ये कलाकंद विदेशों में मिल्ककेक या कलाकंद के नाम से निर्यात भी किया जाता है. इसी के बाद लगभग 1960 में झारखंड के आदिवासी परिवारों ने कलाकंद बनाना शुरू किया. ये कलाकंद अपने थोड़े क्रीमी टेक्स्चर के कारण जाना जाता है और आसपास के क्षेत्रों में काफ़ी प्रसिद्ध भी है.

क़िस्सा कलाकंद का: हमने अपने बचपन में मिठाइयों की दुकानों पर बड़े-बड़े कड़ाहों में कलाकंद बनते देखा, पर इसका इसका मिल्ककेक वर्शन ही ज़्यादा खाया. दूध को उबालकर फाड़कर उसमें शक्कर मिलाकर कलाकंद बनाते भी कई बार देखा घरों में और न जाने कितने फ़्लेवर वाला कलाकंद भी, पर आज आपको मेरे पसंदीदा मौसमी कलाकंद के बारे में बताती हूं, वो है- मैंगो कलाकंद. वैसे तो आम के पल्प में पहले से तैयार छेना और मिल्क पाउडर मिलकर भी आसानी से इसे बनाया जा सकता है, पर मैं इसे दूध को उबालकर और उसे मेंगो पल्प से ही फाड़कर बनाती हूं. जब उबलते हुए दूध में मैंगो पल्प डाला जाता है तो कुछ ही देर में वो दूध फट जाता है और उसमे दाना पड़ने लगता है. बाद में चीनी केसर डालिए, पकाइए और जमाइए. क्रीमी टेक्स्चर चाहिए तो शक्कर के पहले थोड़ा-सा मिल्क पाउडर भी मिलाया जा सकता है. इस मैंगो कलाकंद का स्वाद बड़ा अच्छा होता और ये बनाने में भी आसान है. आजकल लोग कलाकंद रिकोता चीज़ और मिल्क पाउडर से भी बनाते हैं. आपको कहां का कलाकंद पसंद है या फिर आप अपने घर में कैसे बनाते हैं इसे यह बात हमें भी बताइयेगा इस आई डी पर: [email protected] जल्द ही फिर मिलेंगे, तब तक बनाइए, खाइए और खिलाइए.

फ़ोटो: पिन्टरेस्ट

इन्हें भीपढ़ें

idris-hasan-latif

एयर चीफ़ मार्शल इदरीस हसन लतीफ़: भारतीय वायुसेना के एक प्रेरक नायक

June 5, 2025
यहां मिलेंगे बारिश में झड़ते बालों को रोकने के उपाय

यहां मिलेंगे बारिश में झड़ते बालों को रोकने के उपाय

June 5, 2025
naushera-ka-sher_brig-mohd-usman

ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान: नौशेरा का शेर

June 4, 2025
कल चौदहवीं की रात थी: इब्न ए इंशा की ग़ज़ल

कल चौदहवीं की रात थी: इब्न ए इंशा की ग़ज़ल

June 4, 2025
Tags: history of kalakandkalakandkalakand storyKanupriya Guptasweetness of kalakandweekly columnweekly column of Kanupriya Guptaकनुप्रिया गुप्ताकनुप्रिया गुप्ता का साप्ताहिक कॉलमकलाकंदकलाकंद का इतिहासकलाकंद की कहानीकलाकंद की मिठाससाप्ताहिक कॉलम
कनुप्रिया गुप्ता

कनुप्रिया गुप्ता

ऐड्वर्टाइज़िंग में मास्टर्स और बैंकिंग में पोस्ट ग्रैजुएट डिप्लोमा लेने वाली कनुप्रिया बतौर पीआर मैनेजर, मार्केटिंग और डिजिटल मीडिया (सोशल मीडिया मैनेजमेंट) काम कर चुकी हैं. उन्होंने विज्ञापन एजेंसी में कॉपी राइटिंग भी की है और बैंकिंग सेक्टर में भी काम कर चुकी हैं. उनके कई आर्टिकल्स व कविताएं कई नामचीन पत्र-पत्रिकाओं में छप चुके हैं. फ़िलहाल वे एक होमस्कूलर बेटे की मां हैं और पैरेंटिंग पर लिखती हैं. इन दिनों खानपान पर लिखी उनकी फ़ेसबुक पोस्ट्स बहुत पसंद की जा रही हैं. Email: [email protected]

Related Posts

abul-kalam-azad
ओए हीरो

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद: वैज्ञानिक दृष्टिकोण के पक्षधर

June 3, 2025
dil-ka-deep
कविताएं

दिल में और तो क्या रक्खा है: नासिर काज़मी की ग़ज़ल

June 3, 2025
badruddin-taiyabji
ओए हीरो

बदरुद्दीन तैयबजी: बॉम्बे हाई कोर्ट के पहले भारतीय बैरिस्टर

June 2, 2025
Facebook Twitter Instagram Youtube
Oye Aflatoon Logo

हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

संपर्क

ईमेल: [email protected]
फ़ोन: +91 9967974469
+91 9967638520
  • About
  • Privacy Policy
  • Terms

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • लेखक

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.