मां और बच्चे का नाता बच्चे के दुनिया में क़दम लेने के नौ महीने पहले ही बन जाता है. पत्रकार-कवि विष्णु नागर के कविता संग्रह जीवन भी कविता हो सकता है की तीन कविताएं इसी नाते के तीन अलग-अलग पहलुओं को दर्शाती हैं.
मांएं
सब मांएं
दुआ करती हैं
कि उनके बच्चे
बड़े, बहुत बड़े आदमी बन जाएं
कई इतने बड़े बन जाते हैं
कि मांएं उनके घुटनों तक भी
नहीं आतीं
फिर भी मांएं
गर्दन अकड़ जाने पर भी
अपने उन बच्चों को
गर्व से देखती रहती हैं
जबकि बच्चे यह भी भूल चुके होते हैं
कि वे किसी मां के गर्भ से पैदा हुए थे
***
मेरी मां रोई थी
मुझसे मेरे पिता
अक्सर ग़ुस्से में कहते थे
कि तू मेरा औलाद नहीं
मां ने सिर्फ़ एक बार ऐसा कहा
उसके बाद वह फूटफूट कर रोई
और जब मैं उसे समझाने लगा
तो वह और ज़ोर से रोई
***
मां उसके साथ रहती है
कोई आदमी कितना ही अकेला हो
अंधेरा उसके साथ रहता है
सन्नाटा उसके साथ रहता है
धरती और आसमान उसके साथ रहते हैं
और चांद न भी रहे तो तारे
ज़रूर उसके साथ रहते हैं
भले ही उसने मां का साथ छोड़ दिया हो
मां उसके साथ ज़रूर रहती है
कवि: विष्णु नागर
कविता संग्रह: जीवन भी कविता हो सकता है
प्रकाशक: अंतिका प्रकाशन
Illustration: Pinterest