सर्वेश्वर दयाल सक्सेना अपनी बाल कविताओं के लिए जाने जाते थे. कविता मेघ आए में उन्होंने आसमान में घिर आए बादलों की तुलना गांव में आए शहरी मेहमान से की है. जैसे शहरी मेहमान के स्वागत में पूरा गांव इकट्ठा हो जाता है, उसी तरह गांव की पूरी प्रकृति, चाहे वह पेड़ हों, नदी हो, धूल हो उसका स्वागत करते हैं. उन्हें उम्मीद है कि मेघ गांव में ख़ुशियों की बरसात करेंगे.
मेघ आए बड़े बन-ठन के संवर के
आगे-आगे नाचती गाती बयार चली
दरवाज़े-खिड़कियां खुलने लगीं गली-गली
पाहुन ज्यों आए हों, गांव में शहर के
मेघ आए बड़े बन-ठन के संवर के
पड़े झुक झांकने लगे गरदन उचकाए
आंधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए
बांकी चितवन उठा नदी ठिठकी, घूंघट सरकाए
मेघ आए बड़े बन-ठन के संवर के
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की
‘बरस बाद सुधि लीन्हीं’
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के
मेघ आए बड़े बन-ठन के संवर के
क्षितिज अटारी गहराई दामिनी दमकी
‘क्षमा करो गांठ खुल गई अब भरम की’
बांध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके
मेघ आए बड़े बन-ठन के संवर के
Illustration: Pinterest
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