दूसरों से महान और अलग दिखने का फ़ितूर एक तानाशाह को जन्म देता है. नरेश चन्द्रकर की यह कविता तानाशाहों के बनने की प्रक्रिया को समझा रही है.
उन्हें पसंद नहीं होती प्रेरक-कथाएं
उनके लिए असहनीय हो जाती हैं शौर्य-गाथाएं
वे सुनना नहीं चाहते वीरता की बातें
लोरियों तक में
पढ़ना नहीं चाहते वे स्नेहपूर्ण पंक्तियां
क़ब्र पर लगे पत्थरों में भी
वे नहाना नहीं चाहते दूसरी बार
एक बार नहाई जा चुकी
नदियों के जल में
ऐसी उन्मत्त पसंदगियों पर चलकर
खड़ा होता है
वज़ूद एक दिन
नए बन रहे तानाशाहों का!
कवि: नरेश चन्द्रकर (ईमेल: [email protected])
कविता संग्रह: अभी जो तुमने कहा
प्रकाशक: भारतीय ज्ञानपीठ
Illustration: Pinterest