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नारीवादी निगाह से-सीइंग लाइक अ फ़ेमिनिस्ट: महिलाओं के संघर्ष को जानने समझने की एक खिड़की

सर्जना चतुर्वेदी by सर्जना चतुर्वेदी
April 12, 2022
in बुक क्लब, समीक्षा
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नारीवादी निगाह से-सीइंग लाइक अ फ़ेमिनिस्ट: महिलाओं के संघर्ष को जानने समझने की एक खिड़की
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फ़ेमनिज़्म या नारीवाद के बारे में सबसे बड़ी ग़लतफ़हमी यह है कि यह पुरुष विरोधी अवधारणा है. निवेदिता मेनन की किताब नारीवादी निगाह से-सीइंग लाइक अ फ़ेमिनिस्ट इन धारणाओं को तोड़ने के पुख्ता आधार उपलब्ध कराती है.

पुस्तक: नारीवादी निगाह से-सीइंग लाइक अ फ़ेमिनिस्ट
लेखक: निवेदिता मेनन
अनुवाद: नरेश गोस्वामी
प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन
मूल्य: 299 रुपए
कैटेगरी: नॉन-फ़िक्शन
उपलब्ध: amazon.in
रेटिंग: 3.5/5 स्टार
समीक्षक: सर्जना चतुर्वेदी, वरिष्ठ पत्रकार

नारीवाद इस शब्द को कई बार पुरुष विरोधी समझकर इससे तटस्थता बरती जाती है जबकि नारीवाद के समर्थक कभी पुरुष विरोधी हों ऐसा क़तई नहीं है. नारीवाद से आशय समानता की बात करना है नारीवाद सिर्फ़ महिलाओं का सरोकार नहीं बल्कि पूरे समाज की ज़रूरत है. जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी की प्रोफ़ेसर निवेदिता मेनन की चर्चित किताब सीइंग लाइक अ फ़ेमिनिस्ट का हिंदी अनुवाद ‘नारीवादी निगाह से’ नाम से प्रकाशित हुआ है. स्त्री आंदोलन और महिलाओं के लिए क़ानून और समाज में मौजूद अधिकारों के बावजूद वास्तविक स्थिति अब भी ज़्यादा बेहतर नहीं है और सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाने की आवश्यकता है. यह निवेदिता मेनन की किताब को पढ़कर बख़ूबी समझा जा सकता है, उन्होंने वास्तविक तथ्यों और साहित्य अध्ययन के माध्यम से वस्तुस्थिति को सामने रखा है.
परिवार, देह, कामना, यौन हिंसा, नारीवादी तथा महिलाएं, पीड़ित या एजेंट, जैसे 6 अध्याय में किताब को लिखा गया है. किताब हमें कई ऐसे तथ्यों से रूबरू कराती है, जिन्होंने महिलाओं के जीवन में ऐतिहासिक परिवर्तन लाए तो कुछ घटनाएं ऐसी हैं, जो हमें स्त्री के साथ सिर्फ़ स्त्री होने के भेद के कारण हुए गंभीरतम अपराध की तस्वीर सामने लेकर आए हैं, तो प्राचीन समाज के कुछ जेंडर भेद से परे नियमों और परंपराओं का भी जिक्र किया है. किताब में उन संघर्षों का भी जिक्र किया है, जिन्होंने महिलाओं को ऐतिहासिक क़ानूनी अधिकार दिलाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जैसे कि भंवरी देवी के साथ हुए बलात्कार के बाद हुए आंदोलन ने कार्यस्थल पर यौन हिंसा से सुरक्षा के लिए विशाखा गाइडलाइन बनाई. सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2010 में महिलाओं के द्वारा किए जाने वाले घरेलू काम के संबंध में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया. यह एक ऐसी महिला से जुड़ा था जिसकी वाहन दुर्घटना में मौत हो गई थी और इस संबंध में महिला के पति ने मुआवजे का दावा किया था. पंचायत ने तय किया था कि मुआवजे की राशि पति की आय की एक तिहाई होनी चाहिए. इस पर महिला के पति ने मुआवजे की राशि बढ़ाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में गुहार लगाई. न्यायाधीशों ने अपनी टिप्पणी में इस बात पर भी ज़ोर दिया कि महिलाओं द्वारा किए जाने वाले घरेलू काम के संबंध में संसद को भी पहल करनी चाहिए. किताब में कई बार हमारे समकक्ष ऐसे सवाल और मुद्दे आते हैं, जो हमें विचार करने पर विवश करते हैं.
नरेश गोस्वामी ने भी अनुवाद काफ़ी सरल भाषा में किया गया है. मेनन की दूसरी चर्चित पुस्तकों में ‘रिकवरिंग सबवर्जन: फ़ेमिनिस्ट पॉलिटिक्स बियॉन्ड दि लॉ’ शामिल है. उन्होंने पावर ऐंड कंस्टेप्शन: आफ़्टर 1989 का सहलेखन भी किया है. दो संपादित पुस्तकों के अलावा नैशनल-इंटरनैशनल जर्नल में भी उनका लेखन प्रकाशित हुआ है. वे समकालीन राजनीति के महत्वपूर्ण सामूहिक ब्लॉग काफिला ऑनलाइन की संस्थापक सदस्य हैं और इस पर नियमित ब्लॉग लिखती हैं. महिलाओं के अधिकारों, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और संघर्ष के बारे में जानने के इच्छुक पाठकों के लिए यह एक अच्छी किताब है.

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Tags: Nivedita MenonNivedita Menon BookNivedita Menon Book in HindiNivedita Menon BooksRajkamal PrakashanSeeing like a Feminist by Nivedita Menonनारीवादी निगाह से-सीइंग लाइक अ फ़ेमिनिस्टनिवेदिता मेनननिवेदिता मेनन की किताबराजकमल प्रकाशन
सर्जना चतुर्वेदी

सर्जना चतुर्वेदी

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