किसी भी सुविधा को हासिल करने के लिए हमें कुछ न कुछ क़ुर्बान करना ही पड़ता है. मरहूम कवि कुंवर बेचैन की यह कविता पंक्षियों, तितलियोंऔर इंसानों के उदाहरण से यह बात समझा जाती है.
नीड़ के तिनके
अगर चुभने लगें
पंछियों को फिर कहां पर ठौर है
जो न होतीं पेट की मज़बूरियां
कौन सहता सहजनों से दूरियां
छोड़ते क्यों नैन के पागल हिरन
रेत पर जलती हुई कस्तूरियां
नैन में पलकें
अगर चुभने लगें
पुतलियों को फिर कहां पर ठौर है
पंख घायल थे मगर उड़ना पड़ा
दूर के आकाश से जुड़ना पड़ा
एक मीठी बूंद पीने के लिए
जिस तरफ़ जाना न था मुड़ना पड़ा
फूल भी यदि
शूल-से चुभने लगें
तितलियों को फिर कहां पर ठौर है
Illustration: Pinterest