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Home बुक क्लब कविताएं

पेड़ होने का अर्थ: डॉ. मुकेश गौतम की कविता

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
September 1, 2021
in कविताएं, बुक क्लब
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पेड़ होने का अर्थ: डॉ. मुकेश गौतम की कविता
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पेड़ और मनुष्य दोनों ही अलग तरह के जीव हैं, पर इस दुनिया में लंबे समय से उनका सह-अस्तित्व रहा है. पेड़ हमारे पोषक हैं, शिक्षक हैं. मनुष्य और पेड़ के बीच पुरातन संबंध है. डॉ मुकेश गौतम के कविता संग्रह प्रेम समर्थक हैं पेड़ की ये तीन कविताएं, पेड़ होने के अर्थ को बताती हैं. पेड़ हर हाल में हमारे काम आता है. उसकी हर एक चीज़ उपयोगी है. और वह अपनी अंतिम सांस तक एक जगह पर खड़े होकर अपने हालात से लड़ता रहता है.

1. आदमी पेड़ नहीं हो सकता

कल अपने कमरे की
खिड़की के पास बैठकर
जब मैं निहार रहा था एक पेड़ को
तब मैं महसूस कर रहा था पेड़ होने का अर्थ!
मैं सोच रहा था
आदमी कितना भी बड़ा क्यों न हो जाए
वह एक पेड़ जितना बड़ा कभी नहीं हो सकता
या यूं कहूं कि
आदमी सिर्फ़ आदमी है
वह पेड़ नहीं हो सकता!

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***

2. हौसला है पेड़…

अंकुरित होने से ठूंठ जाने तक
आंधी-तूफ़ान हो या कोई प्रतापी राजा महाराजा
पेड़ किसी के पांव नहीं पड़ता है
जब तक है उसमें सांस
एक जगह पर खड़े रहकर
हालात से लड़ता है!
जहां भी खड़ा हो
सड़क, झील या कोई पहाड़
भेड़िया, बाघ, शेर की दहाड़
पेड़ किसी से नहीं डरता है!!
हत्या या आत्महत्या नहीं करता है पेड़
थके राहगीर को देकर छांव व ठंडी हवा
राह में गिरा देता है फूल
और करता है इशारा उसे आगे बढ़ने का
पेड़ करता है सभी का स्वागत
देता है सभी को विदाई!
गांव के रास्ते का वह पेड़
आज भी मुस्कुरा रहा है
हालांकि वह सीधा नहीं, टेढ़ा पड़ा है
सच तो यह है कि
रात भर तूफ़ान से लड़ा है
ख़ुद घायल है वह पेड़
लेकिन क्या देखा नहीं तुमने
उसपर अब भी सुरक्षित
चहचहाते हुए चिड़िया के बच्चों का घोंसला है
जी हां, सच तो यह है कि
पेड़ बहुत बड़ा हौसला है

***

3. दाता है पेड़

जड़, तना, शाखा, पत्ती, पुष्प, फल और बीज
हमारे लिए ही तो है पेड़ की हर एक चीज़!
किसी ने उसे पूजा
किसी ने उसपर कुल्हाड़ी चलाई
पर कोई बताए
क्या पेड़ ने एक बूंद भी आंसू की गिराई?
हमारी सांसों के लिए शुद्ध हवा
बीमारी के लिए दवा
शवयात्रा, शगुन या बारात
सभी के लिए देता है पुष्पों की सौगात
आदिकाल से आज तक
सुबह-शाम, दिन-रात
हमेशा देता आया है मनुष्य का साथ
कवि को मिला कागज, कलम, स्याही
वैद, हकीम को दवाई
शासन या प्रशासन
सभी के बैठने के लिए
कुर्सी, मेज, आसन
जो हम उपयोग नहीं करें
वृक्ष के पास ऐसी एक भी नहीं चीज़ है
जी हां, सच तो यह है कि
पेड़ संत है, दधीचि है


कवि: डॉ. मुकेश गौतम
कविता संग्रह: प्रेम समर्थक हैं पेड़
Illustration: Pinterest

Tags: Dr. Mukesh GautamDr. Mukesh Gautam PoetryKavita Sangrah Prem Samrthak hain PedPed hone ka arth by Dr. Mukesh Gautamकविता संग्रह प्रेम समर्थक हैं पेड़डॉ. मुकेश गौतमडॉ. मुकेश गौतम की कवितापेड़ होने का अर्थपेड़ होने का अर्थ डॉ. मुकेश गौतम
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