पिता के होने और न होने के क्या मायने होते हैं, बता रही हैं पिता पर केंद्रित कवि नरेश चंद्रकर की ये कविताएं.
1
पिता की छाती में एक कुआं है
बजती है जिसमें
जल-तरंग कभी-कभी
जब वे ख़ुश हो जाते हैं या
डूब जाते हैं गहरे दुख में!
2
जादू उतरता है उनके स्नेह में
सहलाते हैं पीठ जब उनके हाथ
बहुत सारा दुख उड़ जाता है
कबूतर बनकर अनन्त में
बहुत दिनों तक
फिर वह अपने पास नहीं आता!!
3
वे घर में रहते हैं
टहलते हैं
और हिलता है सारा परिवार
उनकी आंखों में
कल नहीं रहेंगे यदि वे
तो…?
तो कहां बजेगी जल-तरंग
कैसे सहलेगी पीठ
कौन होगा घर की नींव में!
4
दुर्लभ हो सकती हैं कई सारी चीज़ें
किसी दिन के बाद
किसी के न रहने पर
जैसे पिता के ही
चूने और तम्बाखू की गन्ध
धूप में सूखती हुई धोती
रक्तचाप की गोलियों से भरा डिब्बा
पते लिखी हुई पुरानी डायरियां
ऐसी अनेक चीज़ें हो सकती हैं दुर्लभ
किसी दिन के बाद!
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