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राखी का वचन: नीरज कुमार मिश्रा की कहानी

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
August 30, 2023
in नई कहानियां, बुक क्लब
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राखी का वचन: नीरज कुमार मिश्रा की कहानी
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 यदि दो लोगों के चेहरे मिलते हैं तो ज़रूरी नहीं कि उनके चरित्र भी मिलते हों. इस बात को उजागर करती संजीदा कहानी.

शीरी ने बीए प्रथम वर्ष में दाखिला लिया था, कितने अरमान थे कि वह विश्वविद्यालय में पढेगी. कितनी विशाल बिल्डिंग… कितना बड़ा कैंपस और कितने ढेर सारे विद्यार्थी… आते-जाते जहां देखो, बस सबके सर ही सर दिखाई देते हैं और सब के सब कितने बिज़ी. कुछ लड़के-लड़कियों के साथ गप्प लड़ा रहें हैं तो कहीं चार-पांच लड़कियां किताबी माथापच्ची कर रहीं हैं. वहीं एक चायवाले के ठेले पर कुछ बड़ी उम्र के लड़के खड़े हैं वे सारे लड़के चाय पीने के लिए खड़े हैं. पर असल में उनको तलब तो सिगरेट की है. उनमें से एक लड़के ने सबकी नजरें बचाकर सिगरेट सुलगाई और फिर उसी एक सिगरेट से बारी बारी सबने धुंआ उड़ाया. वाह! अजब शौक़ है भाई. शौक़ तो ठीक है पर तनिक हाइजीन का ध्यान तो रखो, पर इन नौजवानों को इन सब चीज़ों से कोई मतलब नहीं दिखता.

शीरी को तो कैंपस में ये सब देखने में मज़ा आता है, पर इसके मज़े लेने के साथ-साथ उसे मां के द्वारा बताई गई सारी बातें भी याद हैं, जैसे- मां ने यूनिवर्सिटी आने से पहले ध्यान दिलाया था कि जैसे राग के साथ द्वेष आता है पालन के साथ पोषण और रीति के साथ रिवाज़ शब्द जुड़ा होता है ठीक उसी प्रकार विश्वास के आगे घात लगा होता है इसलिए कभी भी किसी बाहरी व्यक्ति पर आंख मूंदकर विश्वास मत करना. वैसे भी तुम लड़की हो और आजकल मीडिया में बहुत अप्रिय समाचार आते रहते हैं. लड़कियां कमज़ोर नहीं होतीं, पर उसका अस्तित्व एक उजली चादर के समान होता है जो ज़रा-सी सलवट पड़ते ही मैला हो जाता है. मां की ये सारी बातें और सुझाव अभी चलते ही रहते, पर शीरी मां को बाय करके फट से बाहर निकल आई और यूनिवर्सिटी के लिए रवाना हो गई.

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शीरी और प्रज्ञा दोनों बहनें हैं और उनका एक बड़ा भाई वीरेन है, जो काम के सिलसिले में अक्सर ही दिल्ली रहता है अतः घर में मांबाप और शीरी और प्रज्ञा ही रहते थे.

यूनिवर्सिटी में क्लासेज़ शुरू हो गई थीं और शीरी ने मन लगाकर पढ़ाई करना भी शुरू कर दिया था, पर आज उसका मन पढ़ाई में नहीं लग रहा था, क्योंकि आज से ठीक एक महीने के बाद रक्षाबंधन का त्यौहार आने वाला था और शीरी के भाई ने उसे फ़ोन करके बताया था कि वह रक्षाबंधन पर घर नहीं आ पाएगा, क्योंकि उसकी कंपनी ठीक उसी दिन एक नए प्रोजेक्ट का उद्घाटन कर रही है, जिसके लिए उसका दिल्ली में होना बहुत ज़रूरी है. शीरी बहुत दुखी हो गई. पर क्या कर सकती थी? अपने भाई की स्मृति को मन में संजोए वह पूरे दिन ही अनमनी सी रही.

अगले दिन जब वह अपनी क्लास से निकल रही थी तब उसकी नज़रें कोने में खड़े एक लड़के से टकराईं. आसमानी रंग की शर्ट और ब्लू जीन्स में वह लड़का बहुत हैंडसम लग रहा था. शीरी की निगाहें उस लड़के के चेहरे से चिपक गई थीं. वह लगातार उस लड़के को घूरे जा रही थी. इस बात का अनुमान लड़के को लगा तो वह शीरी की ओर देखकर मुस्कुराने लगा. शीरी को कुछ अजीब सा लगा, पर वह नॉर्मल होकर आगे बढ़ गई.

‘न जाने क्या सोच रहा होगा वह लड़का… मैं तो उसे इसलिए देख रही थी, क्योंकि वह लड़का मुझे एकदम वीरेन भैया की तरह लग रहा था.’ शीरी अपने आप में बुदबुदाए जा रही थी.

अगले दिन शीरी जब अपनी क्लास में जा रही थी तब वह लड़का ठीक वहीं खड़ा था और अपने मोबाइल में नज़रें गड़ाए हुए था. शीरी को देखते ही उसमें कुछ फुर्ती आ गई और वह अपने बाल ठीक करने लगा. उसे ऐसा करते देख शीरी भी अपनी मुस्कुराहट को रोक नहीं सकी और क्लास में दाख़िल हो गई. क्लास ख़त्म होने के बाद भी वह लड़का वहीं खड़ा था और शीरी के बाहर निकलते ही वह शीरी के पास पहुंच गया और अपना नाम जयंत बताया. शीरी ने जयंत को साफ़ करना चाहा कि उसकी शक्ल उसके भाई से काफ़ी मिलती–जुलती है इसीलिए वह उसे देर तक घूरती रह गई थी और इस बात को लेकर वह कोई ख़ुशफ़हमी न पाल ले, मगर जयंत काफ़ी बातूनी और ऊर्जा से भरपूर लड़का मालूम देता था. उसने शीरी को बोलने ही नहीं दिया और फट से कैंटीन में चलकर चाय पीने की विनती कर दी. शीरी को अब भी जयंत में अपने भाई का अक्स नज़र आ रहा था और वैसे भी कैंटीन जाकर चाय पी लेने में कोई बुराई भी नहीं नज़र आई उसे सो वह आगे बढ़ गई.

जयंत भले ही बातें ज़्यादा करता था, मगर उसकी बातों में एक भोलापन और एक अल्हड़पन था, जो कहीं न कहीं शीरी को भा गया और उसने मन ही मन सोच लिया था कि जयंत की शक्ल उसके भाई से तो मिलती ही है इसकी बातें और हरकतें भी वीरेन की तरह ही हैं इसलिए वह आने वाले रक्षाबंधन पर जयंत को ही राखी बांध देगी और उसे अपना भाई बना लेगी.

रक्षाबंधन आने में एक सप्ताह रह गया था. बातों ही बातों में शीरी ने जयंत को बताया था कि वह उसे एकदम उसके भाई वीरेन की तरह लगता है, जिसके बदले में जयंत सिर्फ़ मुस्कुराकर रह गया था.

अगले दिन जब शीरी यूनिवर्सिटी कैंपस से बाहर निकलने लगी, तब जयंत कार लेकर सामने आ गया और शीरी को लिफ़्ट देने के लिए आग्रह करने लगा. शीरी ने बहुत मना किया कि वह रोज़ ऑटो से जाती है और आज भी ऑटो से चली जाएगी पर जयंत नहीं माना.

“अरे इसी बहाने तुम्हारे घर के लोगों से मिल भी लूंग. हां, तुम चाहो तो चाय मत पिलाना मुझे.” जयंत ने मुस्कुराकर कहा तो शीरी मना नहीं कर सकी और कार में बैठ गई.

जयंत तेज़ी से ड्राइव कर रहा था और कुछ ही देर में वह शहर की भीड़भाड़ से बाहर निकल आया था. शीरी की सवालिया नज़रें जयंत के चेहरे को देख रही थी. जयंत ने अचानक गाड़ी रोकी और इससे पहले कि शीरी कुछ समझ पाती, वह शीरी से छेड़छाड़ करने लगा. उसके शरीर पर छाने की कोशिश करने लगा.

शीरी के सपनों का ताजमहल छनाक से चकनाचूर हो गया. जिस लड़के में वह अपने भाई की छवि को देखती थी और उसे राखी बांधना चाहती थी, उसकी सोच इतनी गंदी निकलेगी? क्या यही सब सोचकर जयंत उसके क़रीब आया था? ये तो उसने सोचा ही नहीं था और अब कुछ और सोचने का वक़्त भी नहीं था. शीरी ने एक ज़ोरदार लात जयंत के दोनों पैरों के बीच मारी और गाड़ी का दरवाज़ा खोलकर बाहर उतर गई. कांपते हाथों से उसने पुलिस का नंबर डायल कर दिया.
किस्मत ने शीरी का साथ दिया और पास के क्षेत्र की पुलिस वैन तुरंत ही वहां आ पहुंची. पुलिस ने जयंत को छेड़छाड़ के मामले में गिरफ़्तार तो कर लिया, पर इंस्पेक्टर ने एक चुभता हुआ सवाल पूछ लिया, “क्या मैडम? आप लोगों को इन लड़कों की नीयत तो पता होती है फिर भी आप लोग इनके साथ अकेले गाड़ी में क्यों बैठ जाते हो?”

इंस्पेक्टर के इस प्रश्न का शीरी भला क्या जवाब देती? जिस लड़के को उसने भाई सदृश माना वह तो उसके भाई जैसा विल्कुल भी नहीं था. वह मन ही मन सोच रही थी कि मां की बात सच ही है, अक्सर विश्वास के आगे ही घात होता है. अब वह किसी अनजान लड़के पर विश्वास नहीं करेगी. शायद आज के ज़माने में लोग भरोसा करने योग्य है ही नहीं हैं. और रह गई राखी बांधने की बात तो वह वीरेन भैया से ऑनलाइन बात कर लेगी, समझ लेगी कि उसने राखी बांध दी है.

घर पहुंचकर उसने सारा क़िस्सा मां को सुनाया तो मां ने उसे कसकर सीने से लगा लिया. मां-बेटी दोनों एक दूसरे की धड़कनों को सुनते रहे किसी ने कुछ नहीं कहा.

आज रक्षाबंधन का दिन था. आसपास के सभी भाई-बहनों के घरों में राखी के त्यौहार की धूम थी, पर शीरी उदास थी. उसे पता था कि वीरेन भैया तो आ नहीं पाएगा और वह किसी मुंहबोले भाई को राखी नहीं बांधेगी. वह अनमने मन से घर का काम कर रही थी. तभी कॉलबेल बजी. उसने दरवाज़ा खोला तो देखा कि सामने वीरेन खड़ा था. हाथों में ढेर सारे तोहफ़े लिए हुए.
“पर तुम… तुम तो आने वाले नहीं थे भैया. वह प्रोजेक्ट?” शीरी को जैसे भरोसा नहीं हो रहा था, पर वह बहुत खुश हो रही थी तो शब्द उसकी हलक में अटक-अटक जा रहे थे.
वीरेन ने कहा, ‘‘अरे, ऐसा कैसे हो सकता है कि मैं रक्षाबंधन पर अपनी बहन से राखी न बंधवाऊं?’’
घर का माहौल अब जाकर त्यौहार जैसा हो गया. प्रज्ञा और शीरी ने भाई के तिलक लगाया, उसकी कलाई पर राखी बांधी और वीरेन ने उन दोनों के सिर पर हाथ रखकर, उन्हें आश्वसन दिया कि वह उनके साथ है.

फ़ोटो साभार: पिन्टरेस्ट, फ्रीपिक

 

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