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Home ओए हीरो

अथाह दुख में भी इस बात से राहत मिली कि नैतिकता जीवित है: शरद सिंह की डायरी

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
May 13, 2021
in ओए हीरो, मेरी डायरी
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अथाह दुख में भी इस बात से राहत मिली कि नैतिकता जीवित है: शरद सिंह की डायरी
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हाल ही में बहुत कम अंतराल के बीच लेखिका, सम्पादक शरद सिंह ने पहले अपनी मां को हार्ट अटैक के चलते खोया और फिर कोरोना के चलते अपनी बड़ी बहन को खोया. जब उन्होंने अपनी बड़ी बहन को खोया तब वे ख़ुद भी पॉज़िटिव थीं. अत: प्रोटोकॉल्स की वजह से अपनी बहन की अंत्येष्टि में भी शामिल नहीं हो सकीं. जिसका दुख अब भी उनकी आंखों से बह आता है. अपने अथाह दुख से उबरने के बीच भी जो सकारात्मक बातें उन्हें दिखाई दीं, उन्होंने उसे कलमबद्ध किया है, जिसे आप यहां पढ़ेंगे.

‘‘आज दोपहर बाद एक आश्चर्यजनक घटना घटी. बीएमसी, सागर यानी बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज से डॉक्टर आशीष शर्मा का फ़ोन आया कि वर्षा दीदी की अंगूठी उनके पास है. मैं स्वयं अथवा किसी को भेजकर उसे प्राप्त कर लूं. अंगूठी के संबंध में उन्होंने पहचान पूछी तो मैंने बताया पन्ना रत्न जड़ी अंगूठी है, जिसे दीदी कनिष्ठा उंगली (सबसे छोटी उंगली) में पहनती थीं. यह सुनकर उन्होंने कहा कि ठीक है जब भी हो, आप उसे ले सकती हैं. असीम दुख की घड़ी में मैं अंगूठी के बारे में भूल ही गई थी. यूं भी वर्षा दीदी को खोने के बाद उनकी अंगूठी का मेरे लिए कोई मूल्य था ही नहीं. पर जब यह फ़ोन आया तो मुझे लगा यह दीदी से जुड़ी वह याद है, जो अंत तक उनके साथ रही. अथाह दुख में डूबे इन दिनों में सुखद लगा यह महसूस कर कि ईमानदारी और नैतिकता अभी जीवित है.
मेरे कहने पर श्री राम सेवा समिति के अध्यक्ष भाई विनोद तिवारी बीएमसी गए, जहां डॉक्टर आशीष शर्मा ने उन्हें अंगूठी सौंपी. सचमुच, डॉक्टर आशीष शर्मा और उनकी टीम सम्मान की पात्र है. उन्होंने न केवल चिकित्सकों का मान बढ़ाया है, वरन बीएमसी के प्रति लोगों का विश्वास भी जगाया.

‘‘भाई विनोद तिवारी वे व्यक्ति हैं, जिन्होंने किसी सगे भाई से बढ़ कर दीदी के प्रति एक भाई का कर्तव्य निभाया. मैं दीदी की अंतिम क्रिया में शामिल नहीं हो सकती थी, इस बात का दुख फ़ोन पर ही मेरी आंखों से बह निकला तो विनोद भाई ने मुझसे कहा था,‘‘प्रोटोकॉल का पालन करते हुए मंत्रोच्चार के साथ दीदी का विधि-विधान से अंतिम संस्कार करूंगा. मैं, उनका भाई, अभी ज़िन्दा हूं, दीदी लावारिस नहीं हैं.” उन्होंने अपनी बात को निभाया भी. पीपीई किट पहन कर उन्होंने दीदी का अंतिम संस्कार भाई कपिल व्यास और कपिल बैसाखिया के सहयोग से विधि-विधान से पूर्ण किया. अस्थि विसर्जन भी उन्होंने ही किया. अपनी चिंता किए बिना सभी की सहायता के लिए तत्पर रहने वाले उनके जैसा भाई मिलना अत्यंत सौभाग्य की बात है. मेरा आशीष, मेरी दुआएं सदा उनके साथ हैं.’’

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हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

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