• होम पेज
  • टीम अफ़लातून
No Result
View All Result
डोनेट
ओए अफ़लातून
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
ओए अफ़लातून
Home ओए एंटरटेन्मेंट

जागते रहो: फ़िल्म जो बताती है, हिपोक्रेसी की भी सीमा होती है!

जय राय by जय राय
January 8, 2022
in ओए एंटरटेन्मेंट, ज़रूर पढ़ें, रिव्यूज़
A A
जागते रहो: फ़िल्म जो बताती है, हिपोक्रेसी की भी सीमा होती है!
Share on FacebookShare on Twitter

अगर बात राज कपूर की हो तो आपकी स्मृतियों में उनकी कौन-सी फ़िल्में आती हैं? शायद मेरा नाम जोकर, श्री 420, आवारा, दीवाना, संगम या फिर अनाड़ी. लेकिन एक फ़िल्म और है, जिसकी चर्चा ज़्यादा नहीं होती. सिने-प्रेमियों को छोड़िए सिनेमा के ज़्यादातर पंडितों को भी याद नहीं आती वर्ष 1956 की फ़िल्म जागते रहो. भारतीय फ़िल्म इतिहास की सबसे अच्छी 100 फ़िल्मों की सूची में जगह पाने की क़ाबिलियत रखनेवाली इस फ़िल्म पर चर्चा कर रहे हैं हमारे अपने सिनेमाप्रेमी-लेखक जय राय.

फ़िल्म: जागते रहो
कलाकार: राज कपूर, नरगिस, प्रदीप कुमार, मोतीलाल, सुमित्रा देवी, इफ़्तेख़ार और अन्य
निर्देशक: सोम्भु मित्रा और अमित मैत्रा
लेखक: केए अब्बास और अमित मैत्रा
गीत: शैलेन्द्र और प्रेम धवन
संगीत: सलील चौधरी

फ़िल्म जागते रहो पर चर्चा शुरू करने के पहले हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि अगर फ़िल्मों के अच्छी या बुरी होने का फ़ैसला आप बॉक्सऑफ़िस प्रदर्शन के आधार पर करते हैं तो, बता दें कि भारत में इस फ़िल्म ने उस दौर में ठीक-ठाक बिज़नेस किया था. राज कपूर की पॉप्युलैरिटी इंडिया के अलावा अब के रूस यानी उस समय के सोवियत संघ में भी थी. इसका फ़ायदा फ़िल्म के प्रदर्शन पर भी दिखा. फ़िल्म ने सोवियत संघ में उम्मीद से ज़्यादा बिज़नेस किया. हम कह सकते हैं कि फ़िल्म तकनीकी रूप से ही नहीं, कमर्शियल तौर पर भी सफल थी.

इन्हें भीपढ़ें

Fiction-Aflatoon

फ़िक्शन अफ़लातून प्रतियोगिता: कहानी भेजने की तारीख़ में बदलाव नोट करें

March 21, 2023
सशक्तिकरण के लिए महिलाओं और उनके पक्षधरों को अपने संघर्ष ध्यान से चुनने होंगे

सशक्तिकरण के लिए महिलाओं और उनके पक्षधरों को अपने संघर्ष ध्यान से चुनने होंगे

March 21, 2023
फ़िक्शन अफ़लातून#13 लेकिन कैसे कह दूं इंतज़ार नहीं… (लेखिका: पद्मा अग्रवाल)

फ़िक्शन अफ़लातून#13 लेकिन कैसे कह दूं इंतज़ार नहीं… (लेखिका: पद्मा अग्रवाल)

March 20, 2023
फ़िक्शन अफ़लातून#12 दिखावा या प्यार? (लेखिका: शरनजीत कौर)

फ़िक्शन अफ़लातून#12 दिखावा या प्यार? (लेखिका: शरनजीत कौर)

March 18, 2023

फ़िल्म की कहानी सिर्फ़ एक रात की है. जिसकी शुरुआत गांव से आने वाले बेनाम और बेघर नायक (राज कपूर) द्वारा पानी की तलाश के साथ होती है. प्यासे नायक की कहानी के सहारे फ़िल्म आगे बढ़ती है. नायक अपनी प्यास बुझाने के लिए रातभर दर-बदर भटकता है. पानी की तलाश में भटक रहे उस युवक पर पुलिस चोर होने का ठप्पा लगा देती है. पुलिस से बचने के लिए वह सफ़ेदपोशों की एक इमारत में छुप जाता है. इमारत में चोर के घुस आने की ख़बर से चारों-तरफ़ अफ़रा-तफरी, चीख-पुकार मच जाती है. नायक इमारत के लोगों के बीच घुल-मिल जाता है. वह पूरी रात इमारत के लोगों के बीच अजनबी बना रहता है. लोग उसे तो नहीं समझ पाते कि वह असल में कौन है, पर वह ज़रूर जान जाता है कि उस इमारत में रह रहे लोगों की वास्तविकता क्या है.
पूरी फ़िल्म में लोगों के शोर और ख़ुद के चोर होने की अफ़वाह से डरा हुआ नायक, छुपता-छुपाता फिरता है. वह एक घर से दूसरे घर में जाता है, हर जगह उसे अलग-अलग तरह की घटनाएं दिखती हैं. सफ़ेदपोशों के काले चेहरे दिखते हैं. लोग किस तरह अपने पाप छुपाने के लिए मासूमों का इस्तेमाल कर सकते हैं, अपने कुकर्मों पर से ध्यान भटकाने के लिए दूसरों की ओर उंगली उठाते हैं. लोग कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं. इस हिपोक्रेसी को फ़िल्म फ्रेम दर फ्रेम उजागर करती है. चोर-चोर के शोर में कई शरीफ़ चारों की असलियत देखता नायक जैसे-तैसे वो लंबे समय तक ख़ुद को बचाने में क़ामयाब होता है. यूं तो यह पूरी फ़िल्म ही क्लासिक है, पर इसका क्लाइमैक्स बेहद इम्पैक्टफ़ुल है. समाज के दोगले चेहरे, उसकी हिपोक्रेसी पर बहुत सारे सवाल छोड़ जाता है. जब नायक भीड़ के ग़ुस्से से बचने के लिए पानी की टंकी पर चढ़ जाता है और अपना गुस्सा और दुख बयां करता है, तो कॉमेडी का पुट लेकर आगे बढ़ रही कहानी अचानक से सीरियस हो जाती है. पूरी फ़िल्म में लगभग ना के बराबर बोलनेवाले नायक का मोनोलॉग कि वह कौन है? शहर में आकर उसने क्या सिखा? और शहर में जीने के लिए उसे क्या करना पड़ेगा? भारतीय मिडल क्लास के हिपोक्रेट रवैये को दिखाया गया आईना है. उसके चेहरे पर लगाया गया तमाचा है.

फ़िल्म की कहानी और संदेश तो बेमिसाल है ही. इसके गाने भी सदाबहार हैं. फ़िल्म के तीन गाने आज भी गाहे-बगाहे लोगों की ज़ुबां पर आ जाते हैं. सबसे पहला गाना है ‘ज़िंदगी ख़्वाब है…’ मुकेश द्वारा गाए इस गाने को फ़िल्माया गया है मेथड ऐक्टिंग के शुरुआती पुरोधा मोतीलाल पर. जीवन के फ़लसफ़े को बयां करनेवाला गाना ग़म में डूबे हर आदमी के लिए ऐंथम जैसा है. दूसरा मशहूर गाना है ‘तेकी मैं झूठ बोलयां…’ मोहम्मद रफ़ी साहब ने इसे गाया है. चोर को पकड़ने के लिए पहरा दे रहे पंजाबी समुदाय के लोगों पर इसे फ़िल्माया गया है. वे वक़्त गुज़ारने के मक़सद से इसे सामूहिक रूप से गाते और नाचते हैं. फ़िल्म का नायक भी इसी समूह का एक हिस्सा बन जाता है. यह गाना एक सामाजिक कटाक्ष है. सुनने के बाद आपको उस दौर के ब्लैक ऐंड वाइट और 2022 में आज के हिंदुस्तान में ज़्यादा फ़र्क़ महसूस नहीं होगा. इस गाने की भाषा थोड़ा हिंदी और थोड़ा पंजाबी है, लेकिन समझने में कोई परेशानी नहीं होती. यह गाना आपको एहसास कराएगा कि हमारी समस्याएं अपरम्पार है और उनसे निजात पाने में हमारी कोई दिलचस्पी नहीं है.
इस फ़िल्म का तीसरा और संभवत: सबसे मशहूर गाना है ‘जागो मोहन प्यारे…’ यह गाना फ़िल्म को एक पॉज़िटिव मैसेज के साथ ख़त्म करने में मदद करता है. इस गाने के साथ ही मेहमान भूमिका में नरगिस की एंट्री होती है. नायक की रातभर की दर्द भरी ज़िंदगी को राहत मिलती है. जब वह ख़ुद को बचाते हुए एक घर में प्रवेश करता है, उसका स्वागत एक छोटा बच्चा करता है. बच्चा पूछता भी है कि तुम चोर हो? लेकिन डरता नहीं घर के सारे दरवाज़े खोलता है और डरे हुए नायक को आगे जाने देता है. यह एक ऐसा दृश्य है जहां फ़िल्म में आपको सामाजिक संतुलन नज़र आएगा. एक ही तरह के दो लोगों के मिलने पर क्या होता है. फ़िल्म ख़त्म होते-होते नायक की प्यास बुझ जाती है, जब मंदिर में गा रहीं नरगिस उसे पानी पिलाती हैं.

जागते रहो अपने दौर की बेहतरीन फ़िल्म थी. आप इसे आज के दौर से रिलेट करके देखेंगे तो यह अब भी नई लगेगी. भारत जैसे हिपोक्रेट समाज के संदर्भ में इसकी कहानी कभी पुरानी नहीं होगी. अगर आप फ़िल्मों के शौक़ीन हैं तो आपको यह फ़िल्म निराश नहीं करेगी. बोलती हुई फ़िल्म का वह मूक नायक आपके दिल में उतर जाएगा. बतौर अभिनेता यह राज कपूर के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शनों में एक है. पता नहीं क्यों राज कपूर की चर्चित और मशहूर फ़िल्मों में इसकी चर्चा नहीं होती. बड़े से बड़े फ़िल्म के जानकार भी इस फ़िल्म की ख़ास चर्चा नहीं करते, जबकि इस तरह की फ़िल्मों को समाज के हित के लिए ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को देखने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. फ़िल्म जागते रहो भारतीय समाज के लिए आईना है और हर देखने वाले आदमी को ख़ुद के अंदर झांकने के लिए मजबूर करती है. इसे देखने के बाद आप ख़ुद को ज़रूर बदलना चाहेंगे. हमारे समय के एक मशहूर आदमी ने कहा है,‘हिपोक्रेसी की भी सीमा होती है.’ यह फ़िल्म देखने के बाद आपकी नज़र तमाम तरह की हिपोक्रेसीज़ पर अनायास ही चली जाएगी.

Tags: Cinema SadabaharJagte RahoJagte Raho Raj KapoorJay RaiRaj Kapoor Filmsकल्ट क्लासिक फिल्मेंजागते रहोपुरानी फिल्मेंफ़िल्म जागते रहोफिल्म रिव्यूफिल्म समीक्षा
जय राय

जय राय

जय राय पेशे से भले एक बिज़नेसमैन हों, पर लिखने-पढ़ने में इनकी ख़ास रुचि है. जब लिख-पढ़ नहीं रहे होते तब म्यूज़िक और सिनेमा में डूबे रहते हैं. घंटों तक संगीत-सिनेमा, इकोनॉमी, धर्म, राजनीति पर बात करने की क़ाबिलियत रखनेवाले जय राय आम आदमी की ज़िंदगी से इत्तेफ़ाक रखनेवाले कई मुद्दों पर अपने विचारों से हमें रूबरू कराते रहेंगे. आप पढ़ते रहिए दुनिया को देखने-समझने का उनका अलहदा नज़रिया.

Related Posts

फ़िक्शन अफ़लातून#11 भरा पूरा परिवार (लेखिका: पूजा भारद्वाज)
ज़रूर पढ़ें

फ़िक्शन अफ़लातून#11 भरा पूरा परिवार (लेखिका: पूजा भारद्वाज)

March 18, 2023
फ़िक्शन अफ़लातून#10 द्वंद्व (लेखिका: संयुक्ता त्यागी)
ज़रूर पढ़ें

फ़िक्शन अफ़लातून#10 द्वंद्व (लेखिका: संयुक्ता त्यागी)

March 17, 2023
फ़िक्शन अफ़लातून#9 सेल्फ़ी (लेखिका: डॉ अनिता राठौर मंजरी)
ज़रूर पढ़ें

फ़िक्शन अफ़लातून#9 सेल्फ़ी (लेखिका: डॉ अनिता राठौर मंजरी)

March 16, 2023
Facebook Twitter Instagram Youtube
ओए अफ़लातून

हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

संपर्क

ईमेल: [email protected]
फ़ोन: +91 9967974469
+91 9967638520
  • About
  • Privacy Policy
  • Terms

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.

No Result
View All Result
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • टीम अफ़लातून

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist