इंटरनेट वाले इस दौर में आज छोटे से छोटे बच्चे के हाथ में भी मोबाइल फ़ोन पहुंच गया है. सूचना क्रांति इतने उफ़ान पर है कि ख़बरों और ख़बरों से जुड़े वीडियोज़, विश्लेषण, मीम्स और यहां तक कि जोक्स भी जबरन ही बड़ों और यहां तक कि बच्चों के दिमाग़ में खपाए जा रहे हैं. और फिर बड़े होते बच्चे अपने आसपास की दुनिया में भी कई चीज़ें देखते हैं और उनके पीछे का सच जानना चाहते हैं. तो क्या उन्हें यह सच पूरा का पूरा, जैसा का तैसा बता दिया जाना चाहिए या छुपा लिया जाना चाहिए? या फिर क्या सच्चाई को बताने और छुपाने की कोई सीमा भी है? यहां हम इसी बारे में बातचीत कर रहे हैं.
दुनिया के कई सच बड़े कटु होते हैं और यही वजह है कि माता-पिता अपने बच्चों को इन सच्चाइयों से बहुत जल्दी रूबरू नहीं होने देना चाहते. यह बात एक तरह से बहुत अच्छी है, पर दूसरी तरह से बहुत ख़राब भी. अच्छी यूं कि इससे शायद आप अपने बच्चे का बचपन एक तरह से निश्च्छल बनाए रखने में कामयाब हो सकते हैं, लेकिन बुरा इसलिए कि अंतत: बच्चों को इसी दुनिया में बड़े होना है, रहना और अपने संघर्षों से जूझना है. ऐसे में यदि उन्हें दुनिया के मिज़ाज का सही अंदाज़ा नहीं होगा तो वे यहां कैसे जी पाएंगे, कैसे सफल हो पाएंगे?
पर इस मामले में एक समस्या ये भी है कि छोटी उम्र में ज़्यादा जानकारी, गहराई से दुनिया को जान लेना कहीं उन्हें परेशान न कर दे. चूंकि हम सब इंटरनेट और स्मार्टफ़ोन वाले जीवन का हिस्सा हैं, जहां सूचनाएं बच्चों तक भी पहुंच ही जाती हैं तो बहुत ज़रूरी है कि आप इन सूचनाओं के सच से अपने बच्चों को रूबरू ज़रूर करवाएं. पर इसका तरीक़ा सही रखें. अब ये सही तरीक़ा क्या है? यदि आप भी इसी उलझन में हैं तो चिंता न करें, क्योंकि आज हम इसी बारे में बातचीत कर रहे हैं.
न बोलें, उम्र के मुताबिक़ बताएं सच
यह एक बड़ जटिल और कई बातों पर परस्पर निर्भर करनेवाला मुद्दा है कि बच्चों को किसी भी बात के बारे में कितना सच बताया जाए. यूं भी इस तकनीक से भरी दुनिया में पहले के बच्चों की तुलना में आजकल के बच्चे कम उम्र में ही सूचनाओं से दो-चार हो रहे हैं. अत: हमारी सलाह तो ये होगी कि आप अपने बच्चे को उसकी उम्र और समझ के मुताबिक़ सच्चाई से रूबरू कराते चलें. मसलन, यदि एक चार बरस का बच्चा/बच्ची सैनेटरी पैड्स का विज्ञापन देखकर उसके बारे में पूछता है तो कहा जा सकता है कि मां को इसकी ज़रूरत पड़ती है, वहीं यदि आठ साल का बच्चा/बच्ची इसके बारे में पूछता है तो कहा जा सकता है कि लड़कियों को इसकी ज़रूरत पड़ती है. बजाय इसके कि आप सैनेटरी पैड्स का विज्ञापन आने पर चैनल ही बदल दें,
रिश्तों से जुड़े सच पूरी संवेदनाओं के साथ बताएं
यदि माता-पिता का या घर में किसी और का तलाक़ या सेपरेशन हो रहा हो, किसी की तबियत बहुत ख़राब हो या फिर किसी की मृत्यु हो गई हो तो इसके बारे में बच्चों को उनकी उम्र और सवालों के मुताबिक़ एकदम सही जानकारी दें. यह जानकारी देते हुए संवेदनशील बने रहें. उन्हीं शब्दों का चयन करें, जो उस उम्र का बच्चा समझ सके. ये सारी बातें विनम्रता से करें, क्योंकि बच्चे कोमलमना होते हैं और वे आपकी कही बातों का अपनी तरह से अर्थ निकालते हैं. इस दौरान वो जो भी सवाल पूछें, उनका स्नेह से पगी टोन में जवाब दें. उन्हें सच्चाई से अनभिज्ञ रखना आगे जाकर उनके व्यक्तित्व के सही विकास में बाधा बन सकता है.
सच्चाई को अच्छाई का ट्विस्ट दें, लेकिन…
यदि आप किसी कड़वे सच को बच्चे को पूरी तरह नहीं बताना चाहते हैं तो उसे हल्का-सा ऐसा ट्विस्ट दे सकते हैं, जिससे बच्चा उसे आसानी से समझ सके और आहत भी न हो. लेकिन ऐसा करते समय इस बात का ध्यान रखें कि यदि आपने बात को पूरी तरह बदल दिया तो बच्चा उसके आधार पर उस बात को सच मान लेगा, लेकिन यदि बाद में कभी सच्चाई उसके सामने आई और वो आपके बताए हुए सच से अलग हुई तो उसका आप पर से भरोसा हट जाएगा. अत: बतौर पैरेंट्स आप यदि अपने बच्चे को किसी सच को ट्वीक करते हुए बताना चाहते हैं तो याद रखिए कि ये बदलाव आटे में नमक की तरह ही होना चाहिए, ताकि उस सच का स्वाद इतना ही बदले कि बच्चा उसे समझ सके. इससे ज़्यादा बदलाव कभी न करें.
उन्हें जानने दें ख़बरों से जुड़े सच
समाचारों में आतंकवादी हमलों, हत्या, लूटपाट, बलात्कार, चोरी-डकैती जैसी नकारात्मक ख़बरें भी आती हैं. फिर चाहे बात अख़बार की हो, टीवी की हो या फिर मोबाइल ऐप्स की. यदि आपका बच्चा ऐसी ख़बर सुनकर उसके बारे में आपसे कुछ पूछता है तो उसे सही जानकारी दें. बच्चे(चों) को इन ख़बरों से दूर करने का बेजा प्रयास न करें, क्योंकि अंतत: उन्हें इसी दुनिया में सर्वाइव करना है. अत: उन्हें अपने आसपास घट रही घटनाओं की जानकारी होनी चाहिए, ताकि वे ख़ुद को सुरक्षित रख सकें. इन घटनाओं के बारे में उन्हें समझाते समय उन्हें इनसे निपटने के गुर भी बताते चलिए. इससे वे भविष्य में घट सकनेवाली किसी भी बुरी घटना के लिए मानसिक रूप से तैयार और मुस्तैद रहेंगे.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट