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Home ज़रूर पढ़ें

सेव का इतिहास और कुछ बातें ख़ास

कनुप्रिया गुप्ता by कनुप्रिया गुप्ता
June 11, 2021
in ज़रूर पढ़ें, ज़ायका, फ़ूड प्लस
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सेव का इतिहास और कुछ बातें ख़ास
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ख़ुशबू की जब बात आएगी तो आप कौन-कौन सी ख़ुशबुओं को याद करेंगे? गुलाब की, रातरानी की या शायद खस की या ऐसी ही कोई और मन को मोह लेने वाली कोई ख़ुशबू आपको याद आएगी, पर क्या आपने कभी कढ़ाही में झारे पर गरम उतरती सेव की खुशबू का मज़ा लिया है? शायद न लिया हो या हो सकता है कि आप हर दिन ऐसी ख़ुशबू के क़रीब से गुज़रते हों और उसके बावजूद आपने कभी वह महसूस ही न किया हो, जो गर्म उतरती सेव के पास से गुज़रते हुए महसूस होता है…

समझ तो आप गए ही होंगे कि एक सेव की दीवानी, सेव को याद कर रही है. अब बातें करते-करते मुझे न वो गाना याद आ गया है-तेरे नाम का दीवाना तेरे घर को ढूंढता है… पर सच यह है कि हम सेव के दीवाने माशूकों के घर नहीं ढूंढते, बस कहीं गर्म उतरती सेव मिल जाए साहब तो दिन बन जाए!
सेव वैसे रतलाम की सबसे ज़्यादा फ़ेमस है, पर इंदौर में भी कम गजब सेव नहीं मिलती है. जहां रतलाम की लौंग वाली सेव प्रसिद्ध है, जो ज़रा-सी मोटी होती है और जिसके मसाले में लौंग को पीसकर डाला जाता है, वहीं इंदौरी सेव जरा पतली होती है, जिसे पोहे वाली सेव भी कहते हैं. एक सेव होती है-दूध वाली जिसके बेसन में पानी के साथ थोड़ा दूध भी डाला जाता है. बाक़ी सेव की इतनी वरायटी आपको रतलाम और इंदौर में मिलेंगी कि यदि नाम गिनने बैठें तो न जाने कितना वक़्त गुज़र जाए. पर कुछ बेहद प्रचलित सेव हैं: लौंग सेव, पोहा सेव, नायलोन सेव,आलू गुझिया, भुजिया सेव, टमाटर की सेव, पलक की सेव, आलू की फरियाली सेव, राजगिरे की सेव, दूध वाली सेव और मेरी सबसे फ़ेवरेट लहसुन की सेव या गाठिया.
एक बात शायद आपने सुनी होगी की मालवा निमाड़ के लोग सेव के बिना खाना खा ही नहीं सकते और यक़ीन मानिए यह सच है! हम लोग सेव को ऐसी ऐसी रेसिपी में डालकर खा लेते हैं कि आप विश्वास नहीं करेंगे. चाट, पानी पूरी जैसे आइटम में सेव खाना तो सुना होगा, पर साहब मैंने ऐसे लोग देखे हैं जो पिज़्ज़ा पर और डोसा में सेव डालकर खा लेते हैं! सब्ज़ी में मिर्ची कम है, कोई बात नहीं थोड़ी सेव मिला लेंगे; कुछ समझ ही न आया तो सेव में बारीक़ प्याज़ काटकर मिला लेंगे, थोड़ा नमक मिर्च निम्बू डालेंगे और उसके साथ रोटी खा लेंगे; यहां तक कि मन थोड़ा उदास हो रहा है, कुछ सूना-सूना सा लग रहा है तो चलो मुट्ठीभर सेव खा लेते हैं… और सच में यह हम पर रामबाण औषधि की तरह असर करती है.
सच मानिए, किसी इन्दौरी आदमी के घर में चाहे चार तरह की सेव रखी हो, पर झारे पर अभी-अभी उतरकर आई सेव उसे अगर दिख गई तो वो 10-20 रुपए की सेव ख़रीदेगा और काग़ज़ की पुड़िया में लेकर वहीं खड़ा-खड़ा खा लेगा और घर पास हो तो ढाई सौ ग्राम या आधा किलो बंधवाकर घर ले आएगा और सेव का आनंद लेने से नहीं चूकेगा.

कहानी सेव की: फ़ूड हिस्टोरियन के सी आचार्य ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि सेव का उल्लेख 12 वीं सदी के ग्रन्थ “मानसोल्लास” में मिलता है, पर दूसरी तरफ़ यह भी उल्लेख मिलता है कि सेव को सबसे पहले २०० साल पहले भील आदिवासियों ने बनाया. ये भील आदिवासी मध्यप्रदेश के रतलाम के आसपास के इलाके में रहते थे. आज भी वो इलाका भील आदिवासियों का गढ़ माना जाता है. यही लोग थे, जिन्होंने सबसे पहले चने से आटे यानी कि बेसन में नमक और मसाले मिलकर सेव बनाई. उसके बाद ये सेव रतलाम से चलकर देश के अलग-अलग कोने में पहुंची और इसने अपना रूप भी बदला.

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क़िस्से सेव के: आप मानिए या न मानिए हम ताज़ा उतरने वाली सेव खानेवालों को पैकेट वाली सेव कभी अच्छी न लगती. हम जब भोपाल में रहा करते थे तो घर में दीवाली पर 8-10 तरह की अलग-अलग सेव बना करती: मोटी सेव, पतली सेव, आलू की सेव, पालक की सेव ,टमाटर की सेव, लहसुन की सेव, हरी मिर्च वाली सेव, पपड़ी, गाठिया और जाने क्या-क्या. और सालभर थोड़े-थोड़े दिन में कोई न कोई सेव बनती ही रहती थी. हमने कभी मम्मी को अकेले सेव बनाते न देखा, क्यूंकि सेव मशीन से नहीं कढ़ाई में झारा रखकर हाथ से घिसी जाती थी तो मम्मी पापा दोनों मिलकर ये काम करते थे. हालांकि मशीन वाली सेव भी बनाई जाती थी. बाद में जब इंदौर आए तो घर के ठीक सामने सेव की दुकान थी तो घर में सेव बनना कम हो गई, क्यूंकि वहां से हर कभी सेव घर चली आती थी.
जब मैं मुंबई गई तो मुझे वह सेव कभी अच्छी न लगी, क्यूंकि जो सेव आती थी, सब पैकेट वाली थी और वो भी कुछ प्रसिद्ध ब्रांड की. वहां रहते कभी गर्म सेव खा ही न सके. फिर हमने घर में ही सेव बनानी शुरू की तब जाकर मालवा के चटोरों को ज़रा राहत हुई!
यहां आने के बाद भी कम से कम दीवाली पर हर बार 2-3 तरह की सेव घर पर बनती है. सारी दुनिया के लिए त्यौहार यानी मिठाइयां हो सकता है, पर मैं अपनी बात करूं तो मैं 10 मिठाइयां बना लूं, लेकिन त्यौहार पर सेव नहीं बनी, मतलब कुछ बना ही नहीं. और हां मैं उन्हीं लोगों में से हूं जो घूमते-फिरते मुट्ठीभर सेव खा लें तो उनका गिरता ब्लडप्रेशर संभल जाए. हमारी रगों में ख़ून के साथ सेव का असर भी बहता है! अच्छा आपके यहां कौन-सी स्पेशल सेव मिलती है, हमें ज़रा बताइए तो इस आईडी [email protected] पर.

फ़ोटो: पिन्टरेस्ट

Tags: इंदौरी सेवनमकीनपोहा-सेवसेवसेव का इतिहाससेव पापड़ीसेव पूरी
कनुप्रिया गुप्ता

कनुप्रिया गुप्ता

ऐड्वर्टाइज़िंग में मास्टर्स और बैंकिंग में पोस्ट ग्रैजुएट डिप्लोमा लेने वाली कनुप्रिया बतौर पीआर मैनेजर, मार्केटिंग और डिजिटल मीडिया (सोशल मीडिया मैनेजमेंट) काम कर चुकी हैं. उन्होंने विज्ञापन एजेंसी में कॉपी राइटिंग भी की है और बैंकिंग सेक्टर में भी काम कर चुकी हैं. उनके कई आर्टिकल्स व कविताएं कई नामचीन पत्र-पत्रिकाओं में छप चुके हैं. फ़िलहाल वे एक होमस्कूलर बेटे की मां हैं और पैरेंटिंग पर लिखती हैं. इन दिनों खानपान पर लिखी उनकी फ़ेसबुक पोस्ट्स बहुत पसंद की जा रही हैं. Email: [email protected]

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