• होम पेज
  • टीम अफ़लातून
No Result
View All Result
डोनेट
ओए अफ़लातून
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • लेखक
ओए अफ़लातून
Home बुक क्लब क्लासिक कहानियां

हींगवाला: कहानी इंसानियत के रिश्ते की (लेखिका: सुभद्रा कुमारी चौहान)

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
September 9, 2021
in क्लासिक कहानियां, बुक क्लब
A A
हींगवाला: कहानी इंसानियत के रिश्ते की (लेखिका: सुभद्रा कुमारी चौहान)
Share on FacebookShare on Twitter

आज़ादी के पहले के साम्प्रदायिक माहौल को बयां करते हुए लिखी गई लेखिका-कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की यह कहानी इंसानियत पर भरोसे को और पुख़्ता करती है.

लगभग 35 साल का एक ख़ान आंगन में आकर रुक गया. हमेशा की तरह उसकी आवाज़ सुनाई दी,”अम्मा… हींग लोगी?”
पीठ पर बंधे हुए पीपे को खोलकर उसने, नीचे रख दिया और मौलसिरी के नीचे बने हुए चबूतरे पर बैठ गया. भीतर बरामदे से नौ-दस वर्ष के एक बालक ने बाहर निकलकर उत्तर दिया,”अभी कुछ नहीं लेना है, जाओ!’’
पर ख़ान भला क्यों जाने लगा? ज़रा आराम से बैठ गया और अपने साफे के छोर से हवा करता हुआ बोला,”अम्मा, हींग ले लो, अम्मा! हम अपने देश जाता है, बहुत दिनों में लौटेगा.’’ सावित्री रसोईघर से हाथ धोकर बाहर आई और बोली,‘‘हींग तो बहुत-सी ले रखी है ख़ान! अभी पंद्रह दिन हुए नहीं, तुमसे ही तो ली थी.’’
वह उसी स्वर में फिर बोला,”हेरा हींग है मां, हमको तुम्हारे हाथ की बोहनी लगती है. एक ही तोला ले लो, पर लो ज़रूर.” इतना कहकर फौरन एक डिब्बा सावित्री के सामने सरकाते हुए कहा,”तुम और कुछ मत देखो मां, यह हींग एक नंबर है, हम तुम्हें धोखा नहीं देगा.”
सावित्री बोली,”पर हींग लेकर करूंगी क्या? ढेर-सी तो रखी है.” ख़ान ने कहा,”कुछ भी ले लो अम्मा! हम देने के लिए आया है, घर में पड़ी रहेगी. हम अपने देश कू जाता है. ख़ुदा जाने, कब लौटेगा?” और ख़ान बिना उत्तर की प्रतीक्षा किए हींग तोलने लगा. इस पर सावित्री के बच्चे नाराज़ हुए. सभी बोल उठे,”मत लेना मां, तुम कभी न लेना. ज़बरदस्ती तोले जा रहा है.” सावित्री ने किसी की बात का उत्तर न देकर, हींग की पुड़िया ले ली. पूछा,”कितने पैसे हुए ख़ान?”
”पैंतीस पैसे अम्मा!” ख़ान ने उत्तर दिया. सावित्री ने सात पैसे तोले के भाव से पांच तोले का दाम, पैंतीस पैसे लाकर ख़ान को दे दिए. ख़ान सलाम करके चला गया. पर बच्चों को मां की यह बात अच्छी न लगीं.
बड़े लड़के ने कहा-”मां, तुमने ख़ान को वैसे ही पैंतीस पैसे दे दिए. हींग की कुछ जरूरत नहीं थी.” छोटा मां से चिढ़कर बोला-”दो मां, पैंतीस पैसे हमको भी दो. हम बिना लिए न रहेंगे.” लड़की जिसकी उम्र आठ साल की थी, बड़े गंभीर स्वर में बोली-”तुम मां से पैसा न मांगो. वह तुम्हें न देंगी. उनका बेटा वही ख़ान है.” सावित्री को बच्चों की बातों पर हंसी आ रही थी. उसने अपनी हंसी दबाकर बनावटी क्रोध से कहा,”चलो-चलो, बड़ी बातें बनाने लग गए हो. खाना तैयार है, खाओ.”
छोटा बोला,”पहले पैसे दो. तुमने ख़ान को दिए हैं.”
सावित्री ने कहा,”ख़ान ने पैसे के बदले में हींग दी है. तुम क्या दोगे?” छोटा बोला,” मिट्टी देंगे.” सावित्री हंस पड़ी,”अच्छा चलो, पहले खाना खा लो, फिर मैं रुपया तुड़वाकर तीनों को पैसे दूंगी.’’
खाना खाते-खाते हिसाब लगाया. तीनों में बराबर पैसे कैसे बंटे? छोटा कुछ पैसे कम लेने की बात पर बिगड़ पड़ा,”कभी नहीं, मैं कम पैसे नहीं लूंगा!” दोनों में मारपीट हो चुकी होती, यदि मुन्नी थोड़े कम पैसे स्वयं लेना स्वीकार न कर लेती.
कई महीने बीत गए. सावित्री की सब हींग खत्म हो गई. इस बीच होली आई. होली के अवसर पर शहर में खासी मारपीट हो गई थी. सावित्री कभी-कभी सोचती, हींग वाला ख़ान तो नहीं मार डाला गया? न जाने क्यों, उस हींग वाले ख़ान की याद उसे प्राय: आ जाया करती थी. एक दिन सवेरे-सवेरे सावित्री उसी मौलसिरी के पेड़ के नीचे चबूतरे पर बैठी कुछ बुन रही थी. उसने सुना, उसके पति किसी से कड़े स्वर में कह रहे हैं,”क्या काम है? भीतर मत जाओ. यहां आओ.’’उत्तर मिला,”हींग है, हेरा हींग.” और ख़ान तब तक आंगन मैं सावित्री के सामने पहुंच चुका था. ख़ान को देखते ही सावित्री ने कहा,”बहुत दिनों में आए ख़ान! हींग तो कब की ख़त्म हो गई.’’
ख़ान बोला,”अपने देश गया था अम्मा, परसों ही तो लौटा हूं.” सावित्री ने कहा,” यहां तो बहुत ज़ोरों का दंगा हो गया है.” ख़ान बोला,”सुना, समझ नहीं है लड़ने वालों में.’’
सावित्री बोली,”ख़ान, तुम हमारे घर चले आए. तुम्हें डर नहीं लगा?’’
दोनों कानों पर हाथ रखते हुए ख़ान बोला,”ऐसी बात मत करो अम्मा. बेटे को भी क्या मां से डर हुआ है, जो मुझे होता?’’ और इसके बाद ही उसने अपना डिब्बा खोला और एक छटांक हींग तोलकर सावित्री को दे दी. रेजगारी दोनों में से किसी के पास नहीं थी. ख़ान ने कहा कि वह पैसा फिर आकर ले जाएगा. सावित्री को सलाम करके वह चला गया.
इस बार लोग दशहरा दूने उत्साह के साथ मनाने की तैयारी में थे. चार बजे शाम को मां काली का जुलूस निकलने वाला था. पुलिस का काफ़ी प्रबंध था. सावित्री के बच्चों ने कहा,‘‘हम भी काली का जुलूस देखने जाएंगे.’’
सावित्री के पति शहर से बाहर गए थे. सावित्री स्वभाव से भीरु थी. उसने बच्चों को पैसों का, खिलौनों का, सिनेमा का, न जाने कितने प्रलोभन दिए पर बच्चे न माने, सो न माने. नौकर रामू भी जुलूस देखने को बहुत उत्सुक हो रहा था. उसने कहा,‘‘भेज दो न मां जी, मैं अभी दिखाकर लिए आता हूं.’’ लाचार होकर सावित्री को जुलूस देखने के लिए बच्चों को बाहर भेजना पड़ा. उसने बार-बार रामू को ताकीद की कि दिन रहते ही वह बच्चों को लेकर लौट आए.
बच्चों को भेजने के साथ ही सावित्री लौटने की प्रतीक्षा करने लगी. देखते-ही-देखते दिन ढल चला. अंधेरा भी बढ़ने लगा, पर बच्चे न लौटे अब सावित्री को न भीतर चैन था, न बाहर. इतने में उसे-कुछ आदमी सड़क पर भागते हुए जान पड़े. वह दौड़कर बाहर आई, पूछा,”ऐसे भागे क्यों जा रहे हो? जुलूस तो निकल गया न.’’
एक आदमी बोला,”दंगा हो गया जी, बड़ा भारी दंगा!’’ सावित्री के हाथ-पैर ठंडे पड़ गए. तभी कुछ लोग तेज़ी से आते हुए दिखे. सावित्री ने उन्हें भी रोका. उन्होंने भी कहा,”दंगा हो गया है!”
अब सावित्री क्या करे? उन्हीं में से एक से कहा,”भाई, तुम मेरे बच्चों की ख़बर ला दो. दो लड़के हैं, एक लड़की. मैं तुम्हें मुंह मांगा इनाम दूंगी.” एक देहाती ने जवाब दिया,”क्या हम तुम्हारे बच्चों को पहचानते हैं मां जी?” यह कहकर वह चला गया.
सावित्री सोचने लगी, सच तो है, इतनी भीड़ में भला कोई मेरे बच्चों को खोजे भी कैसे? पर अब वह भी करें, तो क्या करें? उसे रह-रहकर अपने पर क्रोध आ रहा था. आख़िर उसने बच्चों को भेजा ही क्यों? वे तो बच्चे ठहरे, ज़िद तो करते ही, पर भेजना उसके हाथ की बात थी. सावित्री पागल-सी हो गई. बच्चों की मंगल-कामना के लिए उसने सभी देवी-देवता मना डाले. शोरगुल बढ़कर शांत हो गया. रात के साथ-साथ नीरवता बढ़ चली. पर उसके बच्चे लौटकर न आए. सावित्री हताश हो गई और फूट-फूटकर रोने लगी. उसी समय उसे वही चिरपरिचित स्वर सुनाई पड़ा,‘‘अम्मा!’’
सावित्री दौड़कर बाहर आई उसने देखा, उसके तीनों बच्चे ख़ान के साथ सकुशल लौट आए हैं. ख़ान ने सावित्री को देखते ही कहा,”वक़्त अच्छा नहीं हैं अम्मा! बच्चों को ऐसी भीड़-भाड़ में बाहर न भेजा करो.” बच्चे दौड़कर मां से लिपट गए.

Illustrations: Pinterest

इन्हें भीपढ़ें

friendship

ज़िंदगी का सरमाया: शकील अहमद की ग़ज़ल

April 22, 2025
kid-reading-news-paper

ख़ज़ाना कौन सा उस पार होगा: राजेश रेड्डी की ग़ज़ल

April 21, 2025
इस दर्दनाक दौर की तुमको ख़बर नहीं है: शकील अहमद की ग़ज़ल

इस दर्दनाक दौर की तुमको ख़बर नहीं है: शकील अहमद की ग़ज़ल

February 27, 2025
फटी एड़ियों वाली स्त्री का सौंदर्य: अरुण चन्द्र रॉय की कविता

फटी एड़ियों वाली स्त्री का सौंदर्य: अरुण चन्द्र रॉय की कविता

January 1, 2025
Tags: Famous writers storyHindi KahaniHindi KahaniyaHindi KahaniyainHindi StoryHindi writersHingwalaKahaniSubhadra Kumari ChauhanSubhadra Kumari Chauhan ki kahaniSubhadra Kumari Chauhan ki kahani HingwalaSubhadra Kumari Chauhan storiesकहानीमशहूर लेखकों की कहानीसुभद्रा कुमारी चौहानसुभद्रा कुमारी चौहान की कविताहिंदी कहानियांहिंदी कहानीहिंदी के लेखकहिंदी स्टोरीहींगवाला
टीम अफ़लातून

टीम अफ़लातून

हिंदी में स्तरीय और सामयिक आलेखों को हम आपके लिए संजो रहे हैं, ताकि आप अपनी भाषा में लाइफ़स्टाइल से जुड़ी नई बातों को नए नज़रिए से जान और समझ सकें. इस काम में हमें सहयोग करने के लिए डोनेट करें.

Related Posts

democratic-king
ज़रूर पढ़ें

कहावत में छुपी आज के लोकतंत्र की कहानी

October 14, 2024
त्रास: दुर्घटना के बाद का त्रास (लेखक: भीष्म साहनी)
क्लासिक कहानियां

त्रास: दुर्घटना के बाद का त्रास (लेखक: भीष्म साहनी)

October 2, 2024
पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालों: सफ़दर हाशमी की कविता
कविताएं

पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालों: सफ़दर हाशमी की कविता

September 24, 2024
Facebook Twitter Instagram Youtube
Oye Aflatoon Logo

हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

संपर्क

ईमेल: [email protected]
फ़ोन: +91 9967974469
+91 9967638520
  • About
  • Privacy Policy
  • Terms

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • लेखक

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.