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मैं नर्क से बोल रहा हूं: भूख से मरे आदमी की कहानी (लेखक: हरिशंकर परसाई)

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
September 7, 2022
in क्लासिक कहानियां, बुक क्लब
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harishankar-parsai-vyangya
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हमारे समाज की विसंगतियों, विडंबनाओं पर जिन लेखकों ने बेहिचक अपनी धारदार लेखनी चलाई उसमें हरिशंकर परसाई प्रमुख थे. भूख से मरा आदमी क्या बोलता है, जब वे नर्क पहुंचता है. पढ़ें उनकी इस व्यंग्य रचना में.

हे पत्थर पूजने वालों! तुम्हें ज़िंदा आदमी की बात सुनने का अभ्यास नहीं, इसलिए मैं मरकर बोल रहा हूं. जीवित अवस्था में तुम जिसकी ओर आंख उठाकर नहीं देखते, उसकी सड़ी लाश के पीछे जुलूस बनाकर चलते हो. ज़िंदगी-भर तुम जिससे नफ़रत करते रहे, उसकी क़ब्र पर चिराग जलाने जाते हो. मरते वक़्त तक जिसे तुमने चुल्लू-भर पानी नहीं दिया, उसके हाड़ गंगाजी ले जाते हो. अरे, तुम जीवन का तिरस्कार और मरण सत्कार करते हो, इसलिए मैं मरकर बोल रहा हूं. मैं नर्क से बोल रहा हूं.
मगर मुझे क्या पड़ी थी कि ज़िंदगी भर बेजुबान रहकर, यहां नर्क के कोने से बोलता! पर यहां एक बात ऐसी सुनी कि मुझ अभागे की मौत को लेकर तुम्हारे यहां के बड़े-बड़े लोगों में चखचख हो गई. मैंने सुना कि तुम्हारे यहां के मंत्री ने संसद में कहा कि मेरी मौत भूख से नहीं हुई, मैंने आत्महत्या कर ली थी. मारा जाऊं और ख़ुद ही मौत का ज़िम्मेदार ठहराया जाऊं?
भूख से मरूं और भूख को मेरे मरने का श्रेय न मिले? ‘अन्न! अन्न!’ की पुकार करता मर जाऊं और मेरे मरने के कारण में भी अन्न का नाम न आए? लेकिन ख़ैर, मैं यह सब भी बर्दाश्त कर लेता. ज़िंदगी-भर तिरस्कार का स्वाद लेते-लेते सहानुभूति मुझे उसी प्रकार अरुचिकर हो गई थी, जिस प्रकार शहर के रहने वाले को देहात का शुद्ध घी, लेकिन आज ही एक घटना और यहां से लोक में घट गई.
हुआ यह कि स्वर्ग और नर्क को जो दीवार अलग करती है, उसकी सेंध में से आज सवेरे मेरे कुत्ते ने मुझे देखा और ‘कुर-कुर’ करके प्यार जताने लगा. मेरे आश्चर्य और क्षोभ का ठिकाना न रहा कि मैं यहां नर्क में और मेरा कुत्ता उस ओर स्वर्ग में! यह कुत्ता-मेरा बड़ा प्यारा कुत्ता, युधिष्ठिर के कुत्ते से अधिक! जब से मेरी स्त्री एक धनी के साथ भाग गई थी, तभी से यह कुत्ता मेरा संगी रहा, ऐसा कि मरा भी साथ ही. कभी मुझे छोड़ा नहीं इसने.
बगल का सेठ इसे पालना चाहता था, सेठानी तो इसे बेहद प्यार करती, पर यह मुझे छोड़कर गया नहीं, लुभाया नहीं. सो मुझे सुख ही हुआ कि वह स्वर्ग में आनंद से है, पर मेरे अपने प्रति किए गए अन्याय को तो भुलाया नहीं जा सकता और भाई यह तुम्हारा मृत्युलोक तो है नहीं, जहां फ़रियाद नहीं सुनी जाती. जहां फ़रियादी को ही दंड दिया जाता है. जहां लालफीते के कारण आग लगने के साल भर बाद बुझाने का ऑर्डर आता है. यहां तो फ़रियाद तुरंत सुनी जाती है. सो मैं भी भगवान के पास गया और प्रार्थना की,‘हे भगवन्! पृथ्वी पर अन्याय भोगकर इस आशा से यहां आया कि न्याय मिलेगा, पर यह क्या कि मेरा कुत्ता तो स्वर्ग में और मैं नर्क में! जीवन भर कोई बुरा काम नहीं किया. भूख से मर गया, पर चोरी नहीं की. किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया और यह कुत्ता-जैसे कुत्ता होता है वैसा ही तो है यह. कई बार आपका भोग खाते पिटा यह! और इसे आपने स्वर्ग में रख दिया.’
और भगवान ने एक बड़ी बही देखकर कहा कि इसमें लिखा है कि तुमने आत्महत्या की! मैंने कहा कि नहीं महाराज, मैं भूख से मरा. मैंने आत्महत्या नहीं की, पर वे बोले,‘नहीं, तुम झूठ बोलते हो. तुम्हारे देश के अन्न मंत्री ने लिखा है कि तुमने आत्महत्या की. तुम्हारे शरीर के पोस्टमार्टम से यह बात सिद्ध हुई है.’ और भगवान आसमान से गिरते-गिरते बचे, जब मैंने कहा कि महाराज, यह रिपोर्ट झूठ है. मेरा पोस्टमार्टम हुआ ही नहीं. अरे, मैं तो जला दिया गया था. इसके दस दिन बाद संसद में प्रश्नोत्तर हुए, तो क्या मेरी राख का पोस्टमार्टम हुआ? और तब मैंने उन्हें पूरा हाल सुनाया.
लो तुम भी सुनो. तुम नहीं जानते मैं कहां जिया, कहां रहा, कहां मरा? दुनिया इतनी बड़ी है कि कोई किसी का हिसाब नहीं रखता. और तुम क्या जानो कि जब मेरी सांस चलती थी, तब भी मैं ज़िंदा था. मैं इस अर्थ में जीवित था कि मैं रोज़ मृत्यु को टालता जाता था. वास्तव में, तो मैं जन्म के पश्चात एक क्षण ही जीवित रहा और दूसरे क्षण से मेरी मौत शुरू हो गई. तो बाज़ार की उस अट्टालिका को तो जानते हो. उसी के पीछे एक ओर से पाखाना साफ़ करने का दरवाज़ा है और दूसरी ओर दीवार के सहारे मेरी छपरी. अट्टालिका का मालिक मेरी छपरी तोड़कर वहां भी अपना पाखाना बनाना चाहता था. अगर मैं मर न जाता, तो ग़रीब आदमी की झोंपड़ी पर अमीर के पाखाने की विजय भी इन आंखों से देखता. बस, यहीं झोपड़ी में रहा मैं. मेरे आस-पास अन्न-ही-अन्न था. दीवार के उस पार से जो चूहे आते थे, वे दिन-पर-दिन मोटे होते जाते और दो रोज़ तक वे इसलिए नहीं आए कि निकलने का थोड़ा मार्ग बनाते रहे. पर मैं फिर भी भूखा रहा. बेकार था. अनाज दस रुपये सेर था. इससे तो मेरे लिए मौत सस्ती थी. आख़िर मेरी मौत भी आई. जिस दिन आई, उस दिन अट्टालिका के उस पारवाले रईस के लड़के की शादी थी. बड़ा अमीर था. सारा गांव जानता था कि उसके पास हज़ारों बोरे अन्न थे, पर कोई कुछ नहीं कहता था. पुलिस उसकी रक्षा करती थी. और उस दिन मेरी मौत धीरे-धीरे काला पंजा बढ़ाती आती थी.

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