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Home ओए हीरो

कहानी, एक बिन ब्याही मां की

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
April 1, 2021
in ओए हीरो, मेरी डायरी
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कहानी, एक बिन ब्याही मां की
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कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर, निकहत मरियम नीरुषा, जो बिन ब्याही मां भी हैं, का मानना है कि अपने जीवन को वैसा ही स्वीकार करना चाहिए, जैसा आपने उसे जिया है. इसकी वजह सिर्फ़ यह है कि यदि आप अपना सम्मान करेंगे तो दुनिया भी आपका सम्मान करेगी. निकहत बता रही हैं कि क्यों उन्हें अविवाहित मां होने पर गर्व है

‘‘मैं इलाहाबाद से हूं. वहां के दरियाबाद मोहल्ले के एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार से आती थी. हम पांच बहनें और एक भाई हैं. मेरी बड़ी दो बहनें बिल्कुल पारंपरिक मुस्लिम माहौल में ढल गई थीं, पर मैं टॉम बॉय की तरह थी. इलाहाबाद में रहते हुए ही मैं रेडियो के लिए लिखने लगी थी, थिएटर करने लगी थी. वर्ष 2000 में मैं केवल कुछ रुपए और कुछ सपने लेकर मुंबई आ पहुंची. मेरी आंखों में परिवार के लिए कुछ कर पाने की उम्मीद थी. मुझे अपने माता-पिता को घर की ज़िम्मेदारियों से मुक्त करना था, क्योंकि पिता बीमार थे और मां की भी उम्र बढ़ रही थी. मैं लिखती और ऐक्टिंग करती थी तो लगा कि मुंबई जाकर ऐक्टिंग का काम तो मिल ही जाएगा. पर यहां कोई अपना नहीं था. यहां मैं इलाहाबाद के केवल एक ही इंसान को जानती थी और उन्हीं के साथ मेरा लिव इन रिश्ता हुआ. उन्होंने मुझे बताया कि वे इलाहाबाद से ही मेरी तरफ़ आकर्षित थे, पर मुझे इस बात का कोई इल्म न था.

‘‘मैंने यहां जिस पीजी में रहना शुरू किया, वहां केवल रात ही निकाली जा सकती थी, सुबह 10 बजे से रात के आठ बजे तक बाहर रहना होता था. साथ लाए पैसे तीन दिन में ख़त्म हो गए. ऐक्टिंग का काम ढूंढ़ने के लिए बहुत घूमी, पर काम नहीं मिला. फिर मैंने दो-तीन पार्ट-टाइम नौकरियां कीं, ताकि बसर हो जाए. इस बीच उनसे मुलाक़ात हुई तो उन्होंने चाहत का इज़हार किया. उन्होंने बताया कि वे शादीशुदा तो हैं, पर शादी से ख़ुश नहीं हैं. अपनी पत्नी से तलाक़ ले रहे हैं, जिसकी प्रक्रिया जारी है. यदि आप बाहर से आए हैं और अकेले हैं तो ये शहर आपको और भी अकेला बना देता है. इतना कि कोई आपसे प्यार का इज़हार करे तो आप उसके क़रीब आ ही जाते हैं. फिर उनकी साफ़गोई भी अच्छी लगी. उन्होंने बता दिया था कि वे अपनी पत्नी से तलाक़ ले रहे हैं. हम दोनों ही स्ट्रगल कर रहे थे. हम साथ रहने लगे.

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‘‘इधर मैं टीवी इंडस्ट्री के एक बहुत बड़े कॉस्ट्यूम सप्लायर के संपर्क में आई. उन्होंने मुझे सेट्स पर कपड़ों के थैले लाने-लेजाने का काम दिलवा दिया. मैंने हमेशा ही पूरी मेहनत से काम किया है इसलिए मेरे काम से प्रभावित हो कर प्रॉडक्शन हाउस ने मुझे असिस्टेंट डायरेक्टर की तरह जॉइन करने को कहा. मुझे वहां के बेहतरीन कर्मचारियों में गिना जाने लगा. पर बावजूद इसके किसी के दबाव में आकर मुझे निकाल दिया गया. मेरे सामने बड़ी समस्या ये थी कि इसी नौकरी के बल पर मेरा और मेरे परिवार का जीवन चल रहा था, अब मैं क्या करूं? चार दिन तक मैं घर से ही नहीं निकली. जब यह तय कर लिया तो बाहर निकली कि अब मुझे इसी इंडस्ट्री में कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर बनकर ख़ुद को साबित करना है. महीनेभर संघर्ष किया, पर बात नहीं बनी. फिर मुझे पता चला कि एक प्रॉडक्शन हाउस नया सीरियल बना रहा है. मैं उनके पास पहुंची और कहा कि शुरुआती दो एपिसोड्स के लिए आप भले ही मुझे पैसे मत दीजिए, पर ट्रायल पर मेरा काम देख लीजिए. पसंद आए तो मुझसे काम करवाइए. उन्हें मेरा आत्मविश्वास और काम दोनों ही पसंद आए. तब से मैंने कभी पलटकर नहीं देखा. इस घटना के सालभर बाद मैं बेस्ट कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर के लिए नॉमिनेट की गई थी!

‘‘धीरे-धीरे मेरा करियर सेटल हो रहा था और लिव इन में रहते-रहते तीन वर्ष गुज़र गए थे. तभी मुझे कहीं से पता चला कि मेरे लिव इन पार्टनर की पत्नी प्रेग्नेंट हैं. मैंने सवाल किए, उन्होंने तलाक़ की प्रक्रिया जारी है, इस बात का हवाला देते हुए माफ़ी मांगी. मैंने भरोसा कर लिया. हमारे रिश्ते को पांच बरस होने को आए थे, जब मुझे पता चला कि मैं प्रेग्नेंट हूं. इस बीच मुझे इस बात का भी एहसास हुआ कि मैं केवल उनका ही नहीं, बल्कि उनके परिवार का ख़र्च भी उठा रही हूं!
भले ही मुझे यह मालूम न हो कि मुझे जीवन से क्या चाहिए, लेकिन यह बात अच्छी है कि मैं इस बात को लेकर पूरी तरह से स्पष्ट हूं कि मुझे जीवन से क्या नहीं चाहिए. वही बात मेरे लिव इन रिश्ते पर भी लागू हुई. मैं ये नहीं जानती थी कि मुझे इस रिश्ते से क्या चाहिए, पर ये जानती थी कि एक दूसरी महिला के होते हुए ये इंसान मुझे बिल्कुल नहीं चाहिए. और ये भी अच्छी तरह पता था कि भले ही मेरी शादी नहीं हुई है, लेकिन ये बच्चा जो मेरा हिस्सा है, मेरे भीतर पल रहा है, मुझे चाहिए. मैने उनसे साफ़ कह दिया मैं तुमसे प्यार करती हूं, लेकिन तुम्हारे साथ पहली पत्नी बनकर ही रह सकती हूं. दूसरी औरत बनकर रहना मुझे बिल्कुल गवारा नहीं. तुम तलाक़ ले लो, चाहे कितना भी समय लगे, मैं इंतज़ार कर लूंगी.

‘‘लेकिन इस भरोसे के बदले मुझे उनकी ओर से तलाक़ लेने के केवल दिलासे मिलते रहे. उन दिनों हमारा रिश्ता नाज़ुक दौर से गुज़र रहा था बावजूद इसके मैंने मां बनने का निर्णय लिया, क्योंकिअबॉर्शन का तो सवाल ही नहीं उठता था. मेरे मन की आवाज़ ने कहा कि जब तुममें लिव इन रिश्ते में रहने का साहस है तो प्रेग्नेंसी को जारी रखने का साहस भी रखो. मेरे इस फ़ैसले ने मेरे जीवन में तूफ़ान खड़ा कर दिया. मेरे माता-पिता नाराज़ थे. मैं अपने पार्टनर से नाराज़ थी और अकेली रहने लगी थी. अपनी मदद के लिए किसी हेल्प को रखना अफ़ोर्ड नहीं कर सकती थी. डिलेवरी के लिए अकेले अस्पताल गई, फ़ॉर्म पर ख़ुद साइन किया. ऑपरेशन के बाद बच्चा मिला तो उसे लेकर घर भी अकेली ही आई. धीरे-धीरे घर के लोगों ने स्वीकारना शुरू किया. मेरी मां, मेरे पिता की नाराज़गी की वजह से असमंजस में थीं और चाह कर भी मेरा समर्थन नहीं कर सकती थीं. धीरे-धीरे पिता का मन भी पिघला.

‘‘बच्चे के जन्म के बाद मेरे पास आराम करने का भी समय नहीं था. काम न करती तो बच्चे को कैसे पालती? मेरे बच्चे के जन्म के 15 दिन बाद मैंने काम पर जाना शुरू कर दिया. बेल्ट बांधा, बास्केट में बच्चे का समान रखा, बच्चे को गोद में लिया और ऑटो में बैठकर आफ़िस पहुंच गई. उसके पैदा होने के महीनेभर के भीतर मैंने कार ख़रीदी, चीज़ें सेटल होने लगीं. मेरे काम में तरक़्क़ी होने लगी. बेटे मनाल के स्कूल जाने के होने लायक़ समय तक मैं उसे साथ लेकर ही काम पर जाती थी, चाहे मुझे आउटडोर शूटिंग पर ही क्यों न जाना हो.

‘‘पर अकेली मां के लिए हमारे देश में चुनौतियां कम नहीं होतीं. जब वह स्कूल जाने लायक़ हुआ तो मैंने एक स्कूल का फ़ॉर्म भर दिया और उसमें पिता के नाम की जगह ख़ाली छोड़ दी. स्कूल वालों ने बुलाया और पिता का नाम लिखने को कहा. मैंने उन्हें साफ़ कहा कि मैं पिता का नाम नहीं लिखना चाहती हूं. मन में सोचा- आख़िर क्यूं लिखूं? जबकि मेरे बच्चे को इस दुनिया में लाने से लेकर उसे पालने तक की पूरी ज़िम्मेदारी मैंने अकेले ही निभाई है. और मैं नौ सालों से उस तलाक़ का इंतज़ार कर रही हूं, जो कभी हुआ ही नहीं. स्कूल वालों ने कहा-हम उसे ऐड्मिशन नहीं दे सकेंगे. तब मैंने एक ऐफ़िडेविट बनवाया, जिसमें बताया कि मेरा बच्चा लिव इन रिश्ते से पैदा हुआ है इसलिए क़ानूनन इसके पिता नहीं हैं. उन्होंने यह कह कर दाख़िला देने से इनकार किया कि हम तो माता-पिता दोनों का इंटरव्यू लेते हैं. यह बात मेरे दिल को खल गई. तीन और स्कूल मेरे बच्चे को ऐड्मिशन देने तैयार थे, पर मैं कोर्ट गई, केस लड़ा. केस जीती और स्कूल ने माफ़ी मांगने के साथ-साथ मेर बच्चे को स्कूल में दाख़िला दिया. अब मेरा बच्चा दसवीं में आ गया है.

 ‘‘बेटे का पासपोर्ट बनाने के दौरान भी समस्या हुई. यूं तो क़ानून है कि लिव इन रिश्तों से जन्मे बच्चे का पासपोर्ट मां के नाम पर बनाया जाए, लेकिन समाज की सोच को आप रातोंरात नहीं बदल सकते और ऑफ़िस कर्मचारी भी तो इसी समाज का हिस्सा हैं! पासपोर्ट बनाने के दौरान वहां जिस महिला कर्मचारी ने फ़ॉर्म देखा कि पैरेंट के कॉलम में मैंने सिंगल लिखा है, तुरंत बोलीं-आपने बच्चे के पिता ना नाम नहीं लिखा है, आपका फ़ॉर्म रिजेक्ट हो जाएगा. मैंने कहा-बिल्कुल रिजेक्ट कीजिए और कारण ज़रूर लिखिए. ज़ाहिर है पासपोर्ट बनवाना था तो मेरा बच्चा मेरे साथ ही था. उस भद्र महिला ने कहा-आपकी गलती है ना? गलती आप करें और भु्गते बच्चा! मेरे बच्चे को यह बात आहत कर गई. हम लौटते समय जब कार में बैठे तो मेरे बेटे ने पूछा,‘क्या मैं आपकी गलती हूं? उन्होंने मुझे गलती क्यों कहा?’ यदि मेरे बच्चे के बालमन पर यह बात बैठ जाती तो उसका आत्मविश्वास कहां जाता? मैंने उसे बहुत-सी बातें समझाईं. बताया कि जीवन में कटु लोग भी मिलते हैं. फिर मैंने उस भद्र महिला पर एक ब्लाग लिखा. आख़िर में पसपोर्ट ऑफ़िस के वरिष्ठ अधिकारियों ने इस बात के लिए माफ़ी मांगी और बेटे का पासपोर्ट बन गया.

‘‘मैं मानती हूं कि मैंने जीवन में बहुत महान काम नहीं किया, लेकिन जैसा जीवन जिया, उसे किसी से छुपाया नहीं. लिव इन रिश्ते आज की सच्चाई हैं, पर इस रिश्ते में रहते हुए भी आपको अपना सम्मान बनाए रखना होगा. जब तक आप ख़ुद का सम्मान नहीं करते, कोई औरआपका सम्मान कैसे करेगा? और मेरा तो यही कहना है कि यदि इस रिश्ते में कोई बच्चा आ जाता है तो उसे भी पूरे सम्मान के साथ अपनाइए.’’

 

 

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