अपनी कविताओं के माध्यम से स्त्रियों का अलहदा चित्र खींचनेवाली जया जदवानी की इस कविता में भी स्त्री के कई बिंबों की झलक मिलती है. विशेष रूप से स्त्री होने के नाते छली जाती स्त्री के बिंब.
1.
उसने कहा तुम मत जाओ
तुम्हारे बिना अधूरा हूं मैं
सारी की सारी गठरी धर मेरे सर पर
वह चल रहा आगे-आगे
मैं गठरी समेत उसके पीछे!
2.
जैसे हाशिए पर लिख देते हैं
बहुत फालतू शब्द और
उन्हें कभी नहीं पढ़ते
ऐसे ही वह लिखी गई और
पढ़ी नहीं गई कभी
जबकि उसी से शुरू हुई थी
पूरी एक किताब!
3.
वह पलटती है रोटी तवे पर
बदल जाती है पूरी की पूरी दुनिया
खड़ी रहती है वहीं की वहीं
स्त्री
तमाम रोटियां सिंक जाने के बाद भी!
4.
वे हर बार छोड़ आती हैं
अपना चेहरा
उनके बिस्तर पर
सारा दिन जिसे बिताती हैं
ढूंढ़ने में
रात खो आती हैं!
5.
पढ़ते हैं ख़ुद
ख़ुद नतीजे निकालते हैं
मेरी दीवारों पर क्या कुछ
लिख गए हैं लोग!
Illustration: Pinterest