थाली की बात हो या खिचड़ी की, वो एक चीज़ जिसके बिना ये दोनों ही पूरे नहीं होते वो है “पापड़”. कहीं होटल में गए हैं और दुनिया भर की सब्ज़ियां, पुलाव, नान, रोटी और जो भी मन किया वह मंगवा लिया, पर उसके साथ मसाला पापड़ न मंगवाया तो समझिए खाना अधूरा है. पापड़ अमूमन सभी को पसंद भी आता है और इसके इतने रंग, रूप, स्वाद और प्रकार मशहूर हैं कि कई बार लगता है कि न जाने असली वाला कौन सा रहा होगा?
आमतौर मुख्य भोजन के साथ खाए जाने वाला पापड़ स्नैक्स के रूप में भी उतने ही चाव से खाया जाता है. इसकी वजह ये है कि एक तो ये खाने में हल्का होता है और इसके साथ इतने प्रयोग होने लगे हैं कि अब तो तरह-तरह के व्यंजन पापड़ के साथ बनाए जाने लगे हैं.
जब पापड़ की बात होती है भारत के अलग-अलग प्रदेशों में लोगों के दिमाग़ में शायद अलग अलग छवियां बनती होंगी. कहीं चने का पापड़ तो कहीं उड़द का पापड़, कहीं आलू से बना हुआ पापड़, कहीं चावल से बना खिचिया पापड़ तो जितने लोग उतने स्वाद, उतनी अलग अलग पसंद.
इतिहास पापड़ का: जहां तक बात है पापड़ के इतिहास की भोजन इतिहासविद के सी आचार्य की किताब में उल्लेख मिलता है की पापड़ का अस्तित्व लगभग 500 ईसा पूर्व से है. कई पुराने जैन ग्रंथों में भी पापड़ का उल्लेख मिलता है. जिसके बारे में के सी आचार्य जी ने अपनी किताब “अ हिस्टोरिकल डिक्शनरी ऑफ़ इंडियन फ़ूड’’ में किया है. इस किताब में उन्होंने उल्लेख किया है कि उस समय पापड़ काले उड़द, चना और मसूर के आटे से बनाए जाते थे. मूंग दाल के पापड़ इसके बाद ही अस्तित्व में आए. पापड़ का अस्तित्व उससे पुराना भी हो सकता है, पर लगभग 1500 साल से पापड़ भारतीय उपमहाद्वीप में खाया जाता है.
यही मूंग, चने और उड़द के पापड़ विभिन्न राज्यों में और अलग-अलग मतों के अनुयाइयों में अलग ढंग से जगह बनाते रहे, जैसे- सिन्धी लोगों के बीच पापड़ ने अपनी अलग जगह बनाई, वहीं पंजाबियों में उड़द के पापड़ ज्यादा प्रचलित हुए. जैन और मारवाड़ी परिवारों में मूंग और चने के ख़ासे प्रचलित रहे. तो महाराष्ट में भी उड़द के पापड़ों का प्रचलन ज़्यादा रहा.
महाराष्ट्र का मुंबई तो वैसे महिला गृह उद्योग के साथ महिलाओं द्वारा प्राम्भ किए गए लिज्जत पापड़ के लिए जाना जाता है. गुजरात में भी उड़द के पापड़ जिन्हें मठिया कहा जाता है और चावल के आटे के पापड़ जिन्हें खिचिया पापड़ कहा जाता है, ख़ासे प्रचलित हैं. उत्तर प्रदेश में आलू के पापड़ का काफ़ी बोलबाला है, वहीं मालवा राजस्थान में चने और मूंग के पापड़ के साथ, चावल, साबूदाने के पापड़ चलते हैं. साथ ही, मक्का और ज्वार के पापड़, जिन्हें पपड़ियां कहा जाता है, बेहद प्रचलित हैं. दक्षिण भारत में पापड़ का अस्तित्व काफ़ी पुराना है. वहां ज़्यादातर इन्हें पप्पडम के नाम से जाना जाता है. उड़द के और चावल के आटे से बनाए गए तरह-तरह के पापड़ वहां प्रचलन में हैं. इसीलिए हम कह सकते हैं की पापड़ का प्रचलन किसी न किसी रूप में हर भारतीय घर में है और सिर्फ़ भारतीय नहीं पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के देशों, जैसे- पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और यहां तक कि चीन और थाईलेंड में भी पापड़ के कुछ रूप देखने को मिलते हैं.
पापड़ तेरे स्वाद अनेक, काम अनेक: आप कहेंगे इतने तरह के पापड़ बता तो दिए क्या ही बाक़ी रहा? पर बाक़ी ये है कि हम भारतियों ने सभी पापड़ों में इतने प्रयोग किए हैं कि अगर गिनने बैठें तो लिस्ट न जाने कितनी लम्बी हो जाएगी. अब चने के पापड़ ही लीजिए: लहसुन वाले, लाल मिर्च वाले, हरी मिर्च वाले, शक्कर वाले, खट्ट- मीठे, चुन्दडी वाले, जीरा वाले यानी कई तरह के पापड़ आपको मिल जाएंगे. यही हाल उड़द के पापड़ का भी है: तीखे, लाल, हरी मिर्च वाले, काली मिर्च वाले, मसाला पापड़ और भी कई स्वाद आपको मिल जाएंगे. इसी तरह चावल वाले खिचिया पापड़ भी तरह तरह के बनते हैं. आलू और साबूदाना के पापड़ों में भी न जाने कितनी वैराइटी मिलेगी. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि एक पापड़ ऐसा है, जिसे तलकर मसाला पापड़ के लिए भी उतना ही प्रयोग में लिया जाता है, जितना वो बीमारों को भी खिलाया जाता है. और वो है- मूंग का पापड़. मध्यप्रदेश, पंजाब, राजस्थान में जापे/जचकी यानी बच्चे के जन्म के बाद के कुछ समय तक खाने-पीने की कई चीज़ों पर पूरा प्रतिबन्ध होता है, पर पापड़ खाने से पूरी तरह परहेज़ नहीं किया जाता. यहां तक कि लम्बे समय तक बीमार आदमी को भी मूंग दाल से बना पापड़, मूंग दाल खिचड़ी के साथ खाने के लिए दिया जाता है, ताकि मुंह का स्वाद बना रहे.
पापड़ चूरी, पापड़ चाट, पापड़ समोसे, पापड़ कोन चाट, पापड़ की सब्ज़ी जैसे कई और तरह के व्यंजन भी आपको कई जगह देखने मिल जाएंगे.
यादों में पापड़: पापड़ मेरी यादों में नहीं है, क्योंकि पापड़ों के साथ तो हम बड़े ही हुए हैं. बचपन में जब नानी के घर जाते तो बड़े-बड़े बर्तनों में पापड़ का आटा गूंधा जाता और फिर शुरू होती उसकी कुटाई. हां सच में! एक बड़ा हथौड़ा लेकर उसे कूटा जाता, क्योंकि वो वज़न में काफ़ी भारी होता था तो घर के सारे बड़े लोगों की उसे कूटने में ड्यूटी लगती. बाहर के कामगार भी कभी इस काम के लिए बुलवाए जाते. जब इसे लम्बे समय तक कूटकर नरम कर लिया जाता फिर बनाई जाती वाल (आटे के लम्बे-लम्बे, पतले, सिलेंडर की तरह के गोले) और फिर इन्हें एक मोटे धागे की सहायता से एक जैसे आकार में काट लिया जाता. इसके बाद घर और आस-पड़ोस की सारी महिलाएं और कुछ कामगार महिलाएं मिलकर गीत गाती जातीं और पापड़ बनाती जातीं. और हम बच्चे बनाते छोटी छोटी चान्दियां (पूड़ी के आकार के छोटे पापड़) जिन्हें बाद में घर की बड़ी औरतें बड़े आकार में बना लेती. इसी तरह मक्का और ज्वार की पपड़ियां बनाई जातीं, पर ये मुख्यत: सर्दियों में बनाई जातीं. अब तो वहां भी इतने पापड़ नहीं बनाए जाते, बस स्वाद के लिए थोड़े थोड़े पापड़ बना लिए जाते हैं.
और स्वाद जितने पापड़ तो इस बार हमने यहां परदेस में भी बना लिए, क्योंकि हम तो स्वाद के तरसे लोग हैं ही. भारत में तो फिर भी कहीं-कहीं बाज़ारों में अच्छे पापड़ मिल जाते हैं, पर यहां जो पापड़ मिलते हैं वो ऐसे सूखे, पुराने से मिलते हैं कि बस वो नाम के ही पापड़ होते हैं. ख़ासकर चने के पापड़ मिलना बड़ी मुश्क़िल का काम है तो इसलिए स्वाद ग्रंथियों को तरोताज़ा करने के लिए इस बार हमने चने के पापड़ पर हाथ आज़माया. ज़्यादा कुछ तो नहीं पर मन को थोड़ी रहत ही हो गई कि परदेस में हम पापड़ के लिए तरस नहीं रहे.
तो अब आप भी बताइए आपका फ़ेवरेट पापड़ कौन-सा है? जल्द ही हम मिलेंगे नई बातों के साथ नई यादों के साथ.
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