• होम पेज
  • टीम अफ़लातून
No Result
View All Result
डोनेट
ओए अफ़लातून
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • लेखक
ओए अफ़लातून
Home ओए एंटरटेन्मेंट

द केरल स्टोरी: इतनी कमज़ोर फ़िल्म क्यों बनाई गई समझ में नहीं आया

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
May 8, 2023
in ओए एंटरटेन्मेंट, ज़रूर पढ़ें, रिव्यूज़
A A
द केरल स्टोरी: इतनी कमज़ोर फ़िल्म क्यों बनाई गई समझ में नहीं आया
Share on FacebookShare on Twitter

विवादित फ़िल्म क्यों विवादित है, इसे जानने के लिए उस देखना तो बनता ही था. लेकिन देखकर समझ में नहीं आया कि इतनी कमज़ोर फ़िल्म क्यों बनाई गई? सच मानिए, यदि इस फ़िल्म को फ़िल्म के तरीक़े से भी ठीक से बनाया जाता तो कला के साथ न्याय होता. पूरी फ़िल्म का एक दृश्य भी प्रभावित नहीं करता. फ़िल्म के संवाद जिसने भी लिखे हैं, एकदम बकवास लिखे हैं. फ़िल्म को विश्वसनीय बताने के लिए अंत में दो लड़कियों के माता-पिता का साक्षात्कार दिखाया गया है, उनके साथ जो घटा उससे सहानुभूति होती है, पर यदि यह सब घटा है तो अपने बच्चों से सही तरह से संवाद न साधने की कमी उनके हिस्से भी आती है. फ़िल्म देखने के बाद भारती पंडित का कहना है कि इस फ़िल्म को न भी देखा जाए तो कुछ घटने वाला नहीं है.

 

फ़िल्म: द केरल स्टोरी
निर्देशक: सुदीप्तो सेन
कलाकार: अदा शर्मा, योगिता बिहानी, सोनिया बालानी व अन्य
रन टाइम: 138 मिनट

इन्हें भीपढ़ें

idris-hasan-latif

एयर चीफ़ मार्शल इदरीस हसन लतीफ़: भारतीय वायुसेना के एक प्रेरक नायक

June 5, 2025
यहां मिलेंगे बारिश में झड़ते बालों को रोकने के उपाय

यहां मिलेंगे बारिश में झड़ते बालों को रोकने के उपाय

June 5, 2025
naushera-ka-sher_brig-mohd-usman

ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान: नौशेरा का शेर

June 4, 2025
कल चौदहवीं की रात थी: इब्न ए इंशा की ग़ज़ल

कल चौदहवीं की रात थी: इब्न ए इंशा की ग़ज़ल

June 4, 2025

विवादित फ़िल्म क्यों विवादित है, इसे जानने के लिए उस देखना तो बनता ही था. कुछ मित्रों से साथ चलने के लिए कहा तो बोले, ट्रेलर इतना डरावना है, फ़िल्म क्या ही देखेंगे, जीवन में वैसे ही बहुत दर्द है, अब और दर्द नहीं… ठीक है भाई, तो हमेशा की तरह अकेली ही चल पड़ी. थिएटर आधा भरा हुआ था मगर बुक माय शो की साइट दिखा रही थी कि 90 प्रतिशत सीटें भरी हैं यानी झूठ की शुरुआत यहीं से हो गई थी.

इस मुद्दे पर फ़िल्म बननी चाहिए या नहीं इस पर बात की जा सकती है, मेरे विचार से हर उस मुद्दे पर फ़िल्म बनानी चाहिए, जो किसी व्यक्ति विशेष पर हो रहे अन्याय से जुड़ा हुआ हो… तो यदि हमारे देश में धर्म परिवर्तन एक मुद्दा है तो उस पर भी फ़िल्म बननी चाहिए. हां, इसे इसी समय क्यों बनाया गया, यह बहस का अलग विषय हो सकता है. पर बाक़ी बात इस पर टिकी है कि फ़िल्म दावा क्या करती है. यदि फ़िल्म कहती है कि यह सत्य घटनाओं पर टिकी हुई है तो वह सच आंकड़ों सहित और तर्क सहित सामने आना चाहिए. और यहीं केरला स्टोरी पूरी तरह से असफल साबित होती है.

धर्म परिवर्तन हर धर्म का प्राथमिक अजेंडा रहा है. कुछ धर्म अपने अनुयायियों को समुदाय विस्तृत करने के लिए विवश करते हैं, तो कुछ जबरन बहकाकर धर्म परिवर्तन करवाते हैं. दोनों ही मामलों में व्यक्ति का संज्ञान और स्व चेतना उसकी मदद करती है. यदि उसमें वह संज्ञान नहीं है तो बहकावे में आना आसान होता है फिर भी इसकी प्राथमिक ज़िम्मेदारी बहकने वाले व्यक्ति की ही मानी जाएगी, हम कहते भी हैं न कि उसने कहा और तुम कूद पड़े गड्ढे में? तुम्हारी अक़्ल कहां गई थी? तो यही लगा मुझे इस फ़िल्म को देखकर.

फ़िल्म है केरल के विविध जगहों से नर्सिंग कॉलेज में पढ़ने आई तीन लड़कियों की, जिनके साथ आसिफ़ा नाम की लड़की भी रहती है, जो आईएसआईएस के एक तय अजेंडे के साथ आई है और उन्हें बहकाने में लगी हुई है. ये लडकियां कम से कम 19-20 वर्ष की दिखाई गई हैं. पहला सवाल ही यह आता है कि 20 साल की लडकियां, जो घर छोड़कर बाहर पढ़ने आ रही हैं, क्या इतनी बेवकूफ़ होती है कि अनर्गल तर्कों से बरगलाई जा सकें? मुख्य लड़की शालिनी, जो तिरुवनंतपुरम के ऐसे घर से हैं, जहां दादी भी मौजूद हैं यानी धर्म से जुड़ी कुछ तो बातें, संस्कार घर में होंगे ही. और धर्म के बारे में प्रचलित विविध कहानियां भी मालूम होंगी ही, चूंकि इस तरह की कहानियां बाल साहित्य का भी अंग रही ही हैं. स्वर्ग-नरक की अवधारणा तो हिन्दू धर्म का मुख्य हिस्सा रहा है, इसी के नाम पर तो धर्म का कारोबार चलता है, फिर भी शालिनी और गीतांजलि इस बारे में नहीं जानतीं? और जन्नत, दोजख, जहन्नुम के वाक़यों से प्रभावित होती जाती हैं? अजीब नहीं है?

केरल के निवासी एक मित्र से बात की तो उन्होंने भी इस बात की पुष्टि की कि केरल में हिन्दू घरों में भले ही पूजा पाठ के आडम्बर नहीं हैं, मगर धर्म के बारे में जानकारी सभी को होती ही है. बावजूद इसके शालिनी को यह सब नहीं पता है और आसिफ़ा की बात पर वह आसानी से विश्वास करती जाती हैं, यह गले के नीचे नहीं उतरता. केरल में पढ़ाई का स्तर बाक़ी राज्यों से अच्छा है यानी विज्ञान की पढ़ाई ठीकठाक होती होगी, वैज्ञानिक सोच क्या होती है सिखाया ही जाता होगा… फिर भी किसी की कुतर्क भरी बातों में आना?
वास्तविकता यह थी कि तीनों लड़कियां प्रेम के जाल में फंसी और उस प्रेम के चलते उन्होंने इस तरह के निर्णय लिए, चाहे शारीरिक सम्बन्ध बनाने के हों, नशा करने के हों या इस्लाम स्वीकारन करने के…

सच मानिए, यदि इस फ़िल्म को फ़िल्म के तरीक़े से भी ठीक से बनाया जाता तो कला के साथ न्याय होता. पूरी फ़िल्म का एक दृश्य भी प्रभावित नहीं करता. निर्देशक ने पता नहीं किस बात के रुपए लिए हैं… लड़कियों से छेड़छाड़ का और उनके कपड़े फाड़ने का दृश्य इतना कृत्रिम है कि मन के किसी तार को नहीं छूता. उसी तरह अफ़गानिस्तान के आतंकी कैंप की हिंसा के दृश्य भी किसी संवेदना तक नहीं ले जाते. कोई ठहराव नहीं, कोई कलात्मकता नहीं, बस कुछ भी फ़िल्माते जाना हो जैसे… मैं वैसे बहुत रोतली हूं, पर इस फ़िल्म में न तो रेप के दृश्य सिहरन पैदा करते हैं, न मौत के दृश्य रुलाते हैं!

फ़िल्म के संवाद जिसने भी लिखे हैं, एकदम बकवास लिखे हैं. आसिफ़ा का हरेक तर्क जो वह इन लड़कियों को बरगलाने के लिए दे रही थी, एकदम फालतू सा था, जिसे सुनकर हंसी आ रही थी. कई बातें इतनी अविश्वसनीय थीं, जैसे लडकियों का एक-दो मुलाक़ातों में प्रेम में पड़ जाना, आसानी से हिजाब पहनने को मान जाना, उनके घरवालों का इस सबके बारे में कोई संज्ञान न लेना, दीपावली की छुट्टियों में घर न आने पर भी घरवालों का कोई दबाव न होना, लड़कियों के हिजाब पहनकर घर आने पर भी कोई बवाल न करना, लड़कियों के हॉस्टल छोड़ देने पर भी कॉलेज प्रशासन का घरवालों को सूचित न करना… लम्बी सूची है अविश्वसनीय घटनाओं की.

एक और मज़ेदार बात कि फ़िल्म में कुछ दवाओं का जिक्र आया है और शालिनी दावा करती है कि उन दवाओं की वजह से उसका ब्रेन वाश हुआ. कुछ दवाएं उत्साहित करती हैं, डर भगाती हैं, क्रूर काम करने के लिए तात्कालिक रूप से तैयार करती हैं यहां तक ठीक है (शराब भी यही करती है), पर दवा लेने से ब्रेन वाश हो जाए ऐसा होता है? तब तो सारी दुनिया में हाहाकार मच जाएगा यार!
अदा शर्मा को अदाकारी नहीं आती, यह पक्का है. सारी फ़िल्म में एक भी प्रसिद्ध चेहरा नहीं है, सारे अभिनेता नए हैं जिनसे ठीक अभिनय करवाने में निर्देशक असफल रहे हैं. न संगीत आकर्षित करता है, न पार्श्व संगीत, न ही कथानक. हां, केरल के शुरुआती कुछ दृश्य अच्छे हैं.

कुल मिलाकर समझ में नहीं आया कि इतनी कमज़ोर फ़िल्म क्यों बनाई गई? फ़िल्म को विश्वसनीय बताने के लिए अंत में दो लड़कियों के माता-पिता का साक्षात्कार दिखाया गया है, उनके साथ जो घटा उससे सहानुभूति है, पर यदि यह सब घटा है तो अपने बच्चों से सही तरह से संवाद न साधने की कमी उनके हिस्से भी आती है. इस फ़िल्म को न भी देखा जाए तो कुछ घटने वाला नहीं है.

फ़ोटो: पिन्टरेस्ट

Tags: the kerala story film review bharti panditद केरला स्टोरीफिल्म रिव्यूभारती पंडित
टीम अफ़लातून

टीम अफ़लातून

हिंदी में स्तरीय और सामयिक आलेखों को हम आपके लिए संजो रहे हैं, ताकि आप अपनी भाषा में लाइफ़स्टाइल से जुड़ी नई बातों को नए नज़रिए से जान और समझ सकें. इस काम में हमें सहयोग करने के लिए डोनेट करें.

Related Posts

abul-kalam-azad
ओए हीरो

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद: वैज्ञानिक दृष्टिकोण के पक्षधर

June 3, 2025
dil-ka-deep
कविताएं

दिल में और तो क्या रक्खा है: नासिर काज़मी की ग़ज़ल

June 3, 2025
badruddin-taiyabji
ओए हीरो

बदरुद्दीन तैयबजी: बॉम्बे हाई कोर्ट के पहले भारतीय बैरिस्टर

June 2, 2025
Facebook Twitter Instagram Youtube
Oye Aflatoon Logo

हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

संपर्क

ईमेल: [email protected]
फ़ोन: +91 9967974469
+91 9967638520
  • About
  • Privacy Policy
  • Terms

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • लेखक

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.