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ओए अफ़लातून
Home ओए हीरो

‘‘हमें समझना होगा कि हम सब इंसान हैं और इंसानियत ही हमारा धर्म है.’’

शिल्पा शर्मा by शिल्पा शर्मा
May 8, 2022
in ओए हीरो, मुलाक़ात
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लीजिए सप्ताहभर से आपको देशभर की कुछ साहसी और बेबाक मांओं से मिलवाते हुए आज आ ही गया मदर्स डे! सभी मांओं को मदर्स डे की हार्दिक शुभकामनाएं. मदर्स डे के दिन हमारे देश में हर धर्म और मज़हब के लोग बाज़ार के दबाव में ही सही अपनी मां को याद कर लेते हैं, उनसे फ़ोन पर बात कर लेते हैं और कुछ तो उन्हें हैप्पी मदर्स डे कह कर विश भी कर देते हैं. लेकिन जिस तरह हमारे देश के सामाजिक तानेबाने में पिछले कुछ सालों में बदलाव आया है, जिस तरह अल्पसंख्यकों, बहुसंख्यकों के मुद्दे उठाए जा रहे हैं और जिस तरह की हिंसा देखने में आई है, आख़िर यह भी तो जाना जाना चाहिए कि आख़िर एक मां ऐसे में कैसा महसूस करती है? आज भी हम एक मां से बात कर के जानेंगे उनके दिल की बात. जानेंगे कि आज के परिवेश में वो अपने बच्चों को बड़ा करते हुए कैसा महसूस करती हैं? आज हम बात कर रहे हैं शहडोल की तसनीम शाकिर से.

 

मध्य प्रदेश के शहडोल की रहने वाली तसनीम के दो बच्चे हैं. उन्होंने केमेस्ट्री में एम.एससी. किया है और वे बच्चों के लिए कोचिंग सेंटर चलाती हैं. हमने उनसे भी वही दो सवाल पूछे, जो हम पिछले पूरे सप्ताह अलग-अलग मांओं से पूछते रहे हैं. तो आइए, जान लेते हैं तसनीम के जवाब.

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आज का माहौल, जिस तरह बदल रहा है, जिस तरह उसमें सांप्रदायिकता घुल रही है, आप अपने बच्चों की परवरिश को लेकर किस तरह कंसर्न हैं?
सबसे पहले तो मैं ये बताना चाहूंगी कि मैं ऐसे बच्चों की मां हूं, जिनके पिता एक मुस्लिम परिवार में पैदा हो कर हिंदू विचारधारा को मानते हैं और जिनकी मां एक हिंदू परिवार में पैदा हुई और मुस्लिम लड़के से निकाह किया. आज से तीस साल पहले जब हमने शादी की थी, अंतरधार्मिक शादी बहुत बड़ी बात तो थी, लेकिन बहुत जल्द ही हम समाज के द्वारा अपना लिए गए. हमने अपनी शादीशुदा ज़िंदगी एक साधारण जोड़े की तरह बड़ी आसानी से शुरू की.
लेकिन बीते कुछ सालो से देश का माहौल बदल रहा है. एक मां होने के नाते मुझे अपने बच्चों की फ़िक्र होती है ख़ासकर जब वो बाहर होते हैं. बेटा बाहर रहके पढ़ता है. जब कभी माहौल ज़्यादा खराब होता है तो हम उसे हिदायत देते हैं कि घर से बाहर कम से कम निकले. और ध्यान से रहे. हर समय बच्चे की चिंता रहती है. ऐसी ख़बरें सुनने को मिलती हैं तो लगता है कि पता नहीं कब क्या हो जाए. मुश्क़िल ये है कि हम बच्चों को घर में बैठा के तो रख नहीं सकते. उन्हें करियर बनाने के लिए बाहर जाना ही होगा. ऐसे में हम अपने बच्चों को सही सीख ही दे सकते हैं, वही देते हैं.

 

देश के माहौल को हम सभी नागरिकों के लिए बेहतर बनाने के लिए आप बच्चों से, देश के नागरिकों से और सरकार से क्या कहना चाहेंगी?
जिस तरह के हालात बन रहे हैं, उसमें मैं अपने देश के लोगों से, अपनी सरकार से और बच्चों से यही अपील करना चाहूंगी की राजनीति और ख़राब मानसिकता वाले लोगों के खेल से ऊपर उठकर हमें अपने आप को टटोल के देखना है कि क्या वो तस्वीर, जो हमें राजनेता या समाज के कुछ तथाकथित सुधारक दिखा रहे हैं, सही है?
क्या वाक़ई जिनके साथ हमारा भाईचारा था, बिना किसी भेदभाव के हम साथ रहा करते थे, वो बदल गए हैं? क्या धार्मिक सहिष्णुता ने वाक़ई हमें नुक़सान पहुंचाया है? इन सवालों के जवाबों का आकलन करना होगा.
चंद आतंकवादियों और कुछ गंदी सोच वाले लोगों के कारण, जिनका कोई धर्म ही नहीं है और जो किसी भी धर्म में हो सकते हैं, हम धर्म विशेष को ही ग़लत बोलेंगे? जब हम बच्चे थे हम जानते भी नहीं थे हमारा कौन सा दोस्त हिंदू है या मुसलमान है या फिर किसी और धर्म का… पर आज सब कुछ बदल गया है.
आज हमें सिर्फ़ ये समझना होगा कि हम इंसान है और इंसानियत हमारा धर्म. एक बच्चा हिंदू परिवार में जन्म लेता है तो वो हिंदू कहलाता है और अगर मुस्लिम परिवार में जन्म लेता है तो मुस्लिम. पर बच्चे पैदा तो एक जैसे ही होते हैं. तो उनमें फ़र्क़ क्यों करना? क्यों नहीं उन्हें साथ-साथ प्रेम से रहना सिखाया जाए. अब समय बदल गया है और हमें भी इन सभी बांटने वाली बातों से ऊपर उठ कर अपने बच्चों के लिए एक नई, मानवता से भरी दुनिया बनानी होगी.

फ़ोटो: गूगल

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शिल्पा शर्मा

शिल्पा शर्मा

पत्रकारिता का लंबा, सघन अनुभव, जिसमें से अधिकांशत: महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर कामकाज. उनके खाते में कविताओं से जुड़े पुरस्कार और कहानियों से जुड़ी पहचान भी शामिल है. ओए अफ़लातून की नींव का रखा जाना उनके विज्ञान में पोस्ट ग्रैजुएशन, पत्रकारिता के अनुभव, दोस्तों के साथ और संवेदनशील मन का अमैल्गमेशन है.

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