अभी हमने दीप जलाकर मनाए जानेवाले पर्व दिवाली का स्वागत किया था. दिवाली के इतिहास की बात न करते हुए उस दौरान जलाए जानेवाले दीपक के महत्व पर बात करने जा रहे हैं. आख़िर जगमग जलते दीये हमें नए उत्साह से भर देते हैं. क्यों अग्नि की खोज की तरह ही महत्वपूर्ण दीपक का आविष्कार? क्यों हम दीपक को धरती का सूरज कह सकते हैं? बता रहे हैं डॉ अबरार मुल्तानी.
मनुष्य की अकल्पनीय तरक़्क़ी में अग्नि का अपना एक अहम योगदान है. यह योगदान सभी योगदानों से बढ़कर है. अग्नि को साध कर मनुष्य ने अपनी सुरक्षा की और भोजन को पका कर उसे सुपाच्य बनाया, जिससे भोजन को पचाने में लगने वाली ऊर्जा की बचत हुई और वह ऊर्जा मस्तिष्क को मिली. मस्तिष्क ने उस ऊर्जा का सदुपयोग किया. मनुष्यों के संगठित होने और नए नए आविष्कारों ने उसे ईकोसिस्टम के शीर्ष पर बैठा दिया. अब वह सृष्टि में जो चाहता है करता है. जिसे चाहता है जीवित रहने देता है और जिसे चाहता है उसे मार डालता है.
अग्नि की खोज के साथ ही एक और महान खोज हुई और वह थी,‘दीपक की खोज’. प्रकाश के एक नए स्त्रोत की खोज. दीपक वह खोज थी जिसने सूर्य की सत्ता को सबसे पहले चैलेंज किया. उसने बताया कि प्रकाश के स्त्रोत के लिए केवल सूर्य पर ही निर्भर रहना अब ज़रूरी नहीं. सूर्य की अनुपस्थिति में अब मनुष्यों का सूर्य दीपक था. इस दीपक ने उसे रास्ता दिखाया. कई और काम करने के लिए अन्य जंतुओं से अधिक समय उपलब्ध करवाया. अब रात केवल खाकर सोने या सुस्ताने के लिए नहीं थी बल्कि नए रास्तों को तलाशने के लिए थी. लिखने के लिए, पढ़ने के लिए, समझने के लिए और मनन करने के लिए भी थी.
दीपक का अपना महत्व है और उस पर लगभग एक पूरी किताब लिखी जा सकती है लेकिन, मुझे जो सबसे महत्वपूर्ण बात लगती है वह यह है कि, दीया किसी भी स्थान के अंधेरे को उजाले में बदल देता है, चाहे वह अंधेरा हज़ारों लाखों साल पुराना ही क्यों ना हो. दीये को अंधकार के बड़े या छोटे होने से फ़र्क नहीं पड़ता, वह अपने लक्ष्य प्रकाश फैलाने पर केंद्रित रहता है और उसे पूरा करके छोड़ता है.
दीपक भी सूर्य की ही तरह मनुष्य की परछाई का निर्माण करता है और आईने या पानी में में उसे अपना अक्स देखने के लिए भी रोशनी की ज़रूरत पड़ती है. यह दोनों ही मनुष्य को उसकी वास्तविक्ता का दर्शन करवाते हैं. उसके अस्तित्व का दर्शन करवाते हैं, उसे बताते हैं कि वह कितना विराट है और कितना तुच्छ भी. मनुष्य यदि अपनी परछाई और अपना अक्स ना देखें तो वह अपने अस्तित्व से भी बेख़बर हो सकता है. लेकिन, सूर्य की ही तरह दीपक उसे उसके अस्तित्व से भी वाकिफ़ करवाता है. जब वह अपने आप को जान लेता है तो फिर वह सारी सृष्टि को भी जानने लगता है. इसीलिए बुद्ध ने हमें शिक्षा दी थी कि,‘अप्प दीपो भव:’. अपना दीपक आप बनो. पहले अपने आप को समझो फिर दुनिया को जानो.
दीपक की एक और विशेषता है कि उसने बदलावों को हमेशा स्वीकार किया है. उसने बदलाव को बदलावों का विरोध नहीं किया. अलाव और चूल्हों से शुरू होकर मिट्टी के दीये, मशाल, लालटेन और मोमबत्ती से होते हुए बल्ब तक कि उसकी यात्रा में उसने परिवर्तनों को अंगीकार ही किया है. लेकिन, उसका लक्ष्य एक ही रहा और वह है अंधकार को नष्ट करके उजाला फैलाना. यही वजह है कि दीपक हर दौर में मनुष्यों के लिए प्रासंगिक, आवश्यक और एक गुरु बना रहेगा.
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