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ओए अफ़लातून
Home ज़रूर पढ़ें

ध्यान दें: त्वरित प्रतिक्रियाएं रिश्तों को प्रभावित कर सकती हैं!

शिल्पा शर्मा by शिल्पा शर्मा
February 21, 2022
in ज़रूर पढ़ें, प्यार-परिवार, रिलेशनशिप
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ध्यान दें: त्वरित प्रतिक्रियाएं रिश्तों को प्रभावित कर सकती हैं!
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यह तेज़ गति वाला दौर है, जहां इंटरनेट, यातायात, स्मार्टफ़ोन, सूचनाएं, ख़बरें और यहां तक कि किसी घटना पर प्रतिक्रिया देने की गति भी बेहद तेज़ है. और तो और आमने-सामने या फिर फ़ेसबुक, ट्विटर, वॉट्सऐप जैसे सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म्स पर भी अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को जवाब देने की गति भी इतनी तेज़ है, कि संबंधों पर इसका प्रतिकूल असर पड़ने लगा है. ऐसी त्वरित प्रतिक्रियाएं, रिश्तों के लिए बेहद नुक़सानदेह होती हैं. यहां इसी के बारे में हमने विशेषज्ञ से बातचीत की है, जो आपको ज़रूर पढ़नी चाहिए.

 

यदि आप भी उन लोगों में से हैं, जो नाराज़गी में आकर लोगों को तुरंत ही अपना रिऐक्शन देते हैं, फिर चाहे आमने-सामने, उन्हें फ़ोन कर के या फिर चैट/वॉइस मैसज के जरिए तो आपको लाइफ़ कोच और सर्टिफ़ाइड साइकोलॉजिकल काउंसलर अंजली तिवारी की इस बात पर ज़रूर ध्यान देना चाहिए. अंजली कहती हैं,‘‘कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि पैसे या प्रसिद्धि से ज़्यादा ख़ुशी लोगों को अपने क़रीबी रिश्तों से मिलती है. रिश्तों में प्रेम और ख़ुशहाली हो तो लोगों का स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है और वे लंबा जीवन भी जीते हैं. लेकिन आजकल जिस तरह वास्तविक और आभासी दुनिया के बीच भ्रम-जाल निर्मित हो रहा है, लोगों के मन के भीतर एक तरह की व्यग्रता है. ऐसे में लोग रिश्तों में उपजी छोटी-छोटी बातों पर ही तीखी प्रतिक्रिया देने लगे हैं, जिससे रिश्तों पर नकारात्मक असर पड़ता है.’’
यदि आप ने भी कभी ऐसी प्रतिक्रियाएं दे कर परिजनों या दोस्तों के साथ अपने संबंधों को बिगाड़ लिया है तो आगे ऐसा न हो इसके लिए इन बातों का ध्यान रखें:

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पहले देखिए सवाल तवज्जो देने लायक़ है या नहीं
यदि आप त्वरित प्रतिक्रिया देने के आदी हैं तो एक बड़ा अच्छा कोट है, जिसे आपको ज़रूर जानना चाहिए-यह बिल्कुल ज़रूरी नहीं कि आपको हर उस विवाद में पड़ना ही होगा, जिसके लिए आपको आमंत्रित किया गया है. इसी बात को अंजली कुछ इस तरह समझाती हैं,’’दरअसल ज़्यादातर लोग सवाल क्या है, उसका मक़सद क्या है या उसके परिणामों की चिंता किए बग़ैर इस बात पर ज्यादा फ़ोकस करते हैं कि हमें जवाब क्या देना है. जबकि कई बार कोई वाजिब सवाल ही नहीं होता, जिसे किसी जवाब की आवश्यकता हो, लेकिन लोग हर बात को ख़ुद पर हमले के रूप में लेते हैं और वहीं से संबंधों से बनने बिगड़ने या प्रभावित होने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है.’’

जवाब न देना भी माकूल जवाब है
जब आपके सामने कोई ऐसा मौक़ा आए कि आपको लगे कि अब तो अति हो गई मुझे जवाब देना ही होगा, तब ख़ुद से पूछें- क्या वाक़ई जबाव देना ज़रूरी है या फिर इस बात को कोई तूल न देने से ही काम चल जाएगा? क्योंकि कई बार जवाब न देना, किसी की बात को तूल न देना भी एक माकूल जवाब होता है. इसे सरल शब्दों में बयान करते हुए अंजली कहती हैं,‘‘लोग किसी भी बात को सुनने या उस पर प्रतिक्रिया देते समय ये ध्यान नहीं देते कि, उन्हें कहां रिऐक्शन देना है और कहां नहीं. कहां अपनी ऊर्जा खपानी है और कहां उसे खपाने का कोई अर्थ ही नहीं है.’’

ख़ुद को थोड़ा समय दें
यदि आपको किसी की बात ने इतना आहत कर दिया है कि आप उसे प्रतिक्रिया देना बहुत ही ज़रूरी समझते हैं और यह भी जानते हैं कि ऐसा करने से आपके रिश्तों में कड़वाहट आ सकती है तो प्रतिक्रिया देने से पहले ख़ुद को थोड़ा समय दें. पांच-सात बार गहरी सांसें लेकर ख़ुद को संयत करें. यह क्यों ज़रूरी है, वह भी आप अंजली की इस बात से समझ सकेंगे,‘‘शुरुआत से ही मानव मस्तिष्क तीन तरह से काम करता है- फ़ाइट, फ़्लाइट और फ्रीज़ मोड में. जैसे कि प्राचीन समय में जंगल में शेर देखा, तो या मनुष्य जान बचाने उससे लड़ता था या डरकर भागता या फिर कुछ पल के लिए कुछ भी सोच पाने की स्थिति में नहीं रहता और फ्रीज़ हो जाता था, जिससे परिस्थितियां उस पर हावी हो जाती थीं. हमारा दिमाग़ अब भी इसी तरह काम करता है.’’ तो जब हम दिमाग़ को सोचने के लिए समय देते हैं तो वह हमारी भावनाओं को समझते हुए इस बात का बेहतर निर्णय ले पाता है कि उसे करना क्या है.

हर पहलू को जांचना भी है ज़रूरी
जल्दबाज़ी में की गई प्रतिक्रिया के दौरान हम किसी की कही गई बात के सभी पहलुओं पर ध्यान नहीं दे पाते और उसे उसी तरह देखते हैं, जैसी कि वह हमारे नज़रिए से दिखाई देती है. जबकि हो सकता है कि सामनेवाले ने कोई बात आपका दिल दुखाने के उद्देश्य से न कही हो, बल्कि वह उसकी सहज प्रतिक्रिया हो. अब आपने निदा फ़ाजली साहब का यह शेर तो सुना ही होगा- हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी, जिस को भी देखना हो कई बार देखना. यानी हर परिस्थिति में एक ही इंसान के अलग-अलग रूप देखने को मिल सकते हैं. अत: इस बात को ध्यान में रखते हुए त्वरित प्रतिक्रिया यानी रिऐक्शन देने के बजाय, कुछ समय सोचने के बाद दिया गया रिस्पॉन्स न सिर्फ़ आपके मन के लिए बेहतर होगा, बल्कि आपके रिश्तों के लिए भी अच्छा होगा.

फ़ोटो: पिन्टरेस्ट

Tags: ArgumentationHandling RelationshipsNot RespondingQuick ReactionReact QuicklyreactionRespondRespondingResponding ThoughtfullyResponseSave Relationships From Unnecessary ControversyUnnecessary Controversyजवाब देनाजवाब न देनातुरंत रिऐक्ट करनात्वरित प्रतिक्रियाप्रतिक्रियाबेवजह का विवादरिश्तों की साज-संभालरिश्तों को बेवजह विवाद से बचाएंवाद-विवादसोच-समझकर जवाब देना
शिल्पा शर्मा

शिल्पा शर्मा

पत्रकारिता का लंबा, सघन अनुभव, जिसमें से अधिकांशत: महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर कामकाज. उनके खाते में कविताओं से जुड़े पुरस्कार और कहानियों से जुड़ी पहचान भी शामिल है. ओए अफ़लातून की नींव का रखा जाना उनके विज्ञान में पोस्ट ग्रैजुएशन, पत्रकारिता के अनुभव, दोस्तों के साथ और संवेदनशील मन का अमैल्गमेशन है.

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हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

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