जहां लाठी सरकार की ओर से कमज़ोरों पर चलती है, वहीं कविता सरकार और भगवान की सत्ताओं के ख़िलाफ़ और ग़रीब-कमज़ोर के सरोकार की ओर झुकी होती है. रमाशंकर यादव विद्रोही की रचना कविता और लाठी अंतर स्पष्ट कर रही है.
तुम मुझसे
हाले-दिल न पूछो ऐ दोस्त!
तुम मुझसे सीधे-सीधे तबीयत की बात कहो
और तबीयत तो इस समय ये कह रही है कि
मौत के मुंह में लाठी ढकेल दूं,
या चींटी के मुह में आंटा गेर दूं
और आप-आपका मुंह,
क्या चाहता है आली जनाब!
ज़ाहिर है कि आप भूखे नहीं हैं,
आपको लाठी ही चाहिए,
तो क्या
आप मेरी कविता को सोंटा समझते हैं?
मेरी कविता वस्तुतः
लाठी ही है,
इसे लो और भांजो
मगर ठहरो!
ये वो लाठी नहीं है जो
हर तरफ भंज जाती है,
ये सिर्फ़ उस तरफ भंजती है
जिधर मैं इसे प्रेरित करता हूं
मसलन तुम इसे बड़ों के ख़िलाफ़ भांजोगे,
भंज जाएगी
छोटों के ख़िलाफ़ भांजोगे,
न,
नहीं भंजेगी
तुम इसे भगवान के ख़िलाफ़ भांजोगे,
भंज जाएगी
लेकिन तुम इसे इंसान के ख़िलाफ़ भांजोगे,
न,
नहीं भंजेगी
कविता और लाठी में यही अंतर है
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