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खुले बाल: डॉ संगीता झा की कहानी

डॉ संगीता झा by डॉ संगीता झा
November 26, 2023
in नई कहानियां, बुक क्लब
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खुले बाल: डॉ संगीता झा की कहानी
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एक बेटी और उसकी मां के रिश्तों के रेशे धीरे-धीरे खोलती. कुछ उधेड़ती और कुछ बुनती-सी कहानी है लेखिका डॉ संगीता झा की नई कहानी ‘खुले बाल’. ग़लफ़हमी, समर्पण और स्नेह की पृष्ठभूमि पर लिखी गई यह कहानी दिल को छू जाएगी.

मैं यानी रितु शायद कलियुग की द्रौपदी थी. वहां द्रौपदी ने कसम खाई थी कि जब तक दुशासन की जंघा के ख़ून से अपने बालों को नहीं धोएगी अपने बालों को नहीं बांधेगी. उसकी इस प्रतिज्ञा को पूरा करने का काम उसके एक पति भीम ने किया. मेरे पति तो क्या पांच भाई भी ना थे लेकिन एक मां है जो सब पर भारी है. यहां खुले बाल रखना मेरी प्रतिज्ञा नहीं मेरी मजबूरी थी. कोई दुशासन भी ना था, जिसने जंघा पर बिठा कर मेरे बाल खींचे हों.
मुझ बेचारी पर तो क़ुदरत की मार थी यानी जन्म से मेरा एक कान चिपका हुआ था और छोटा-सा था जिसे डॉक्टरी की भाषा में माइक्रोशिया एट्रेजिया कहा जाता है. मैं जन्म से ट्रेचर कोलीन सिंड्रोम के साथ पैदा हुई थी. अंग्रेज़ी के शब्द ट्रेचर का मतलब ही धोखा होता है.
जब मैं पैदा हुई तो मेरी छोटी से ठुड्डी, चिपके कान आंखों के बग़ल और नीचे की हड्डी ग़ायब या कहिए जहां देखो वहां डिम्पल देख के मेरी अपराजिता मां डॉ जया के भी तोते उड़ गए थे. बाद में हम मां बेटी जब पक्की सहेली बन गए तब उन्होंने मुझे बताया. मैं जो सोचती हूं कि शायद पहले उन्होंने मुझे देख सोचा होगा ऐसी बंदर-सी बेटी! क्या करूं? ख़ुद मर जाऊं या इसका गला घोंट दूं? जैसे मैं अपने दोस्तों को देखती हूं और लाख हिम्मत जुटा कर भी अपने आपको मजबूर पाती हूं. इसीलिए तो मैं जया जी की भावनाओं को समझ पाती हूं. शायद जया जी ने उस पूरी रात ईश्वर से प्रार्थना की होगी,“हे मेरे ईश्वर ये तूने क्या किया? इतना बड़ा जुर्म! मैं ही मिली थी. जहां आज भी कन्याएं मारी जाती हैं, गर्भ के अन्दर और बाहर दोनों. मैं कैसे अपनी इस लाडो को ज़ालिमों के बीच पालूंगी.’’
लेकिन ईश्वर तो ईश्वर हैं और वही ईश्वर हैं जिन्होंने गीता के ज्ञान और द्रौपदी के चीरहरण में कपड़े पर कपड़ा देते हुए खींचने वाले के हाथ थका दिए थे, जया जी तो फिर अपराजिता थीं.
मैं उसी परिवेश में बड़ी होती गई लेकिन जया जी और उनके बेटे अंगद यानी मेरे भाई ने घुटने नहीं टेके, बल्कि मजबूर किया ईश्वर को उनकी रितु को भी वही मज़बूती दें जो जया जी ने विरासत में पाई थी. घर में तो मुझे कभी लगा ही नहीं कि मुझमें कोई कमी है और मैं एक स्पेशल चाइल्ड हूं. ख़ासकर मेरा भाई अंगद मुझे बचपन से ही बहुत प्यार करता था और हर बुरी नज़र से बचाए रखता था. बचपन में भी एक ऑपरेशन हुआ और मेरे हुलिए को कुछ ठीक-ठाक करने की कोशिश की गई ऐसा मुझे बाद में ही पता चला. हमेशा कान के पास मेरे बालों का सहारा ले उसे ढंक दिया जाता था. चेहरे पर ऑपरेशन के निशान थे, सुनने में थोड़ी तक़लीफ़ थी. इन सभी कमियों के बावजूद मेरा बचपन प्यार से भरा था. जया जी यानी मेरी मम्मा के दोस्तों ख़ास कर सुधा आंटी, रामाराव अंकल ने उन्हें काफ़ी इमोशनल सपोर्ट किया.
अपनी हीनता का एहसास पहली बार तब हुआ जब मैं स्कूल जाने लगी. मेरे सहपाठी कभी मेरी आंख, तो कभी मेरे कान, तो कभी मेरे बहरेपन का मज़ाक़ उड़ाते. एक बात तो अच्छी थी कि मैं ठीक से सुन नहीं पाती थी, जिससे आधी बातें मुझ तक पहुंचती ही ना थी. पर मैं कुछ उनके लिप मूवमेंट से और कुछ चेहरे के ढंग से समझ जाती थी कि मेरा मज़ाक़ उड़ाया जा रहा है. हिन्दी में एक कहावत है कि ‘करेला वो भी नीम चढ़ा’, वो मुझ पर पूरी तरह से चरितार्थ होने लगी जब पता चला कि मेरी एक आंख पूरी तरह से ख़राब है और मुझे मोटा चश्मा पहनना पड़ा. ऊपर से डॉक्टर के कहने पर मां चश्मे के अंदर मेरी नॉर्मल आंख पर एक पर्दे-सी पट्टी लगा देती थी, जिससे कमज़ोर आंख से मैं देखने की कोशिश करूं और उसमें सुधार हो. इस पूरी प्रक्रिया मैं हिन्दी फ़िल्मों में आने वाले काने डाकू की तरह लगती. स्कूल में बच्चे मेरा मज़ाक़ उड़ाते और घर आ मेरा सारा क्रोध मम्मा पर उतरता. मम्मा मुझे छाती से चिपका लेती और अंगद के कान लाल हो जाते. मम्मा स्कूल आकर टीचर से बात करती और कहती इसे सामने बेंच पर बिठाएं, क्योंकि ये ठीक से सुन नहीं पाती. अंगद ने मेरी सो कॉल्ड सहेलियों से कई बार काफ़ी झगड़ा भी किया था. कई बार मेरा रूखापन देख टीचर्स मम्मा को सलाह देते कि इसका कुछ नहीं हो सकता, इसे स्पेशल स्कूल की ज़रूरत है.
मैंने मम्मा से पूछा कि,“मेरे कान ऐसे क्यों हैं? क्यों मैं नॉर्मल बच्चों की तरह सुन देख नहीं सकती. क्यों-क्यों?”
बेचारी जया जी ने मुझे शांत करने के लिए बताया कि मैं जब बहुत छोटी थी, तब बिस्तर से गिर गई थी, जिससे मेरे चेहरे की कई हड्डियां टूट गईं और कान इस तरह चिपक गए. उसके बाद मैं जया जी यानी मम्मा से नफ़रत करने लगी कि कैसी मां हैं ये मुझे गिरा कैसी हालत कर दी और अब जले पर नमक छिड़क अच्छी मां बनने की कोशिश करती हैं. जया जी ने मुझे कई डॉक्टरों को दिखाया, लेकिन मैं हर बार ख़ुद से हार जाती. मैंने ख़ुद से मुझे बनाने वाले भगवान को कई पत्र लिए जो अंग्रेज़ी में ही होते थे, क्योंकि मुझे हिन्दी ठीक से नहीं आती थी. ज़्यादातर पत्रों का सार होता था,‘गॉड व्हाई डीड यू एक्सपेरिमेंटेड ऑन मी? गेव मी मॉम लाइक स्टुपिड जया, हू कुड नॉट टेक केयर ऑफ़ ए स्मॉल बेबी लाइक मी. सी! आई फ़ेल डाउन, लुक एट माई फ़ेस! टोटली डिस्टॉर्टेड ब्रोकन इयर. पीपल मेक फ़न ऑफ़ मी. आई हैव रेड मेनी स्टोरीज़ ऑफ़ यॉर मीरेकल. आई हैव हर्ड दी सॉंग पेंगू गिरी लांघे, अंधा देखे, लंगड़ा चल कर पहुंचे काशी रे. देन व्हाट इज़ माई फ़ॉल्ट. प्लीज़ हेल्प मी गॉड!’
इस तरह की ना जाने कितनी चिठ्ठियां भगवान को लिखी और कभी तकिए के नीचे तो कभी छत पर. हर दशहरे पर नीलकंठ से गुज़ारिश की,“नीलकंठ तुम नीले रहना, मेरी बातें राम से कहना. सोए हों तो जगाकर कहना, बैठे हों तो समझा कर कहना. पूछना पूरी दुनिया में रितु ही मिली थी जिसे तुमने जया की जैसी मां दी जिसने अपनी ही बेटी को बिस्तर से गिरा तोड़ फोड़ दिया.’’
अपनी परेशानियों से जूझती हुई मैं बड़ी होती गई. जया जी के बाल बहुत लंबे थे और कभी-कभी उन्हें मोड़ कर वो एक ख़ूबसूरत जूड़ा बनाती जो मुझे बड़ा अच्छा लगता था. कभी-कभी शादियों में उस जूड़े में वो एक बहुत सुन्दर रत्न जड़ित क्लिप लगाती थी, जो मुझे बहुत पसंद थी. मेरी हसरत थी या कहिए कि सपना भी था कि मैं भी अपने बालों को ऊपर बांधू और वो क्लिप लगाऊं. लेकिन हाय री क़िस्मत चिपके हुए कान ढंकने के लिए मुझे हमेशा बालों का सहारा लेना पड़ता. वहां द्रौपदी ने क्रोध और बदले की भावना से केश खुले रखे थे और यहां उसी ईश्वर जिसने चीर हरण में उसकी लाज रखी, दुशासन की जंघा भीम से तुड़वा उसकी प्रतिज्ञा पूरी की, ने मुझ पर ये क़हर ढाया था.
जया जी को उनकी मां ने मेरी हालत देख उनका ख़ानदानी क्लिप दिया था, जिसकी क़ीमत लाखों में थी, जिसे वो कभी कभी लगा कर इठलाती और फिर घर पर ही रखे गोदरेज के लॉकर में रख देती. हमेशा पार्लर वाली को घर बुला जया जी मेरे बाल कान तक कटवा देती जिससे मेरे कान ढंके रहें. मैं बहुत चिल्लाती चीखती कि मुझे बाल बढ़ाने हैं, पर जया जी मेरी एक ना सुनतीं. मुझे वो जल्लादों की भी जल्लाद लगतीं. एक तो गिरा दिया, ऊपर से अब सुंदर बालों को भी कटवा देती हैं. मां नहीं डायन हैं जया जी ऐसा मेरा तब सोचना था.
जया जी मुझे ज़बरदस्ती डॉक्टरों के पास ले जातीं, ख़ाली हमारा शहर ही नहीं बल्कि कभी चेन्नई ,कभी मुंबई तो कभी बैंगलोर की सैर करते हम. हर बार बड़े प्यार से मेरा माथा चूमती और बड़े इंटेल्जेंटली मेरा केस डिस्कस करती. सारे डॉक्टर्स कहते,‘‘मैडम यू आर इमपॉसिबल! वी सैलूट यू आपकी जैसी मांएं इक्का दुक्का ही होती हैं. कितनी अच्छी तरह से आपने अपनी बेटी को ग्रूम किया है. काश….बाक़ी पैरेंट्स भी आपकी तरह होते.’’
मैं मन ही मन सोचती कितनी होशियार है ये औरत, नाटक करने में माहिर. छोटी बच्ची का ध्यान ना रख बिस्तर से गिरा दिया. कान और चेहरे की तोड़ फोड़ कर अब ये ड्रामा! सचमुच नौ सौ चूहे खा बिल्ली हज को चली. बेचारी जया जी मेरी केयर करते-करते अपनी उम्र से काफ़ी बड़ी लगने लगी थी और तो और बाल भी उनके सफ़ेद हो रहे थे. एक दिन तो स्कूल में ग़ज़ब हो गया जब मेरी एक क्लासमेट मारिया ने मुझसे पूछा,“इज़ शी योर ग्रैनी?”
मैं मन ही मन हंसी और ख़ुश हुई कि भगवान मेरी साथ किए कर्म का ख़ुद बदला ले रहे हैं. मां की उम्र में नानी कहला रही हैं.
जया जी अपना मेडिकल प्रोफ़ेशन छोड़ क़रीब-क़रीब रोज़ मेरे स्कूल आतीं. हर टीचर से मेरे बारे में बात करती. लेकिन जैसे मलियागिरी की भीलनी चंदन जला कर ख़ाना बनाती है ठीक उसी तरह चंदन जैसी जया जी के साथ बेरुख़ी अपनाई जाती थी. दुनिया केवल पेपर में ही बड़ी इमोशनल और कंसर्न नज़र आती है. हर कोई स्कूल में जया जी को मुझे स्पेशल बच्चों के स्कूल में डालने की सलाह देता. लेकिन जया जी ने हार ना मानी. मेरे सारे रिपोर्ट कार्ड जिसमें मुझे सौ में कभी दो कभी तीन नंबर मिलते थे, छुपा कर रख देती. अंगद को भी बताती कि उसकी रितु पास हो गई है. हर दिन किसी ना किसी क्लासमेट के घर जा क्लास में सारा पढ़ाया कॉपी कर घर वापस लौटती. उस समय तो नहीं पर अब समझ आता है कि भगवान ख़ुद धरती पर नहीं आ सकते इसलिए मां को भेज दिया.
जब कभी टीवी में महाभारत देखती तो कल्पना करती कि कभी मेरे लिए भी भगवान आएं और मेरा कान ठीक कर दें. मैं नानी वाला रत्नजड़ित क्लिप लगा एक सेक्सी सा जूड़ा डालूं. जया जी ने शायद वो क्लिप लॉकर में रखा था. एक दिन मैं जया जी पर बहुत चिल्लाई,“मैं नहीं कटवाने वाली अपने बाल. ख़ुद तो लंबे बाल रखे हैं और मेरे कटवा देती हैं. मां के नाम पर कलंक हैं आप. कोई अपनी बेटी को पलंग से गिरा ऐसी हालत करता है? पता भी है मेरा कितना मज़ाक़ बनता है क्लास में? मैं डांस करती हूं तो वन्या कहती है तुम बड़ी होकर बार डांसर बन जाना. कोई लड़का मुझसे बात नहीं करता. इससे अच्छा तो जैसा दादी कहतीं हैं कि आप मेरा गला ही घोंट देतीं.’’
दादी मुझे अपने बेटे की ज़िंदगी का बोझ मानती थी और हमेशा जया जी को ताना मारती थीं,“बंदर जैसी बेटी पैदा कर ताव दिखाती है. इससे अच्छा गला घोंट इसे मार देती.’’ लेकिन जया जी ना उनकी इस टिप्पणी पर कोई प्रतिक्रिया करतीं और ना ही कमज़ोर बनतीं. मुझे एक चट्टान बन अपनी छाती से चिपका लेतीं. लेकिन उस दिन मेरी बात सुन पर्वत की तरह मज़बूत जया जी टूट गईं और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगीं. उन्हें इस तरह रोता देख मैं डर गई. जया जी रोते-रोते लगभग बेहोश-सी हो गई. अंगद बड़े प्यार से जया जी के पास आया और मुझसे पूछने लगा,“मम्मा को क्या हुआ?”
मैंने बड़ी बेरुख़ी से जवाब दिया,“ड्रामा’’
मैं तब आठवीं क्लास आ गई थी और अंगद अपने नीट यानी मेडिकल इंटरेंस के रिजल्ट का वेट कर रहा था. मेरे मुंह से ड्रामा शब्द सुन वो ज़ोर से वहशियों की तरह चिल्लाया,“शट दी फ़क! पता भी है तुम्हारे कारण मम्मा कितनी मुश्क़िलों से गुज़री है. सारे ज़माने के ताने सहती रहीं लेकिन तुम पर आंच भी ना आने दी.”
मैंने ताली बजाते हुए कहा,“वाह ग्रेट! ज़माने के ताने? अच्छा है पहले ग़लती करो, नन्ही बच्ची के नयन नक़्श बिगाड़ो फिर विक्टिम कार्ड.”
अंगद मेरी बात काटते हुए चिल्लाया,“बुल शीट…कहां से इतने इमेजिनरी आइडिया लाती हो? उन्होंने तुम्हें गिराया! तुम तो उनकी जान हो, हमेशा पलकों पर बिठा कर रखा है. आज इतनी नॉर्मल ज़िंदगी जी रही हो तो सिर्फ़ इनकी वजह से.’’ मैं और मुस्तैदी से चिल्लाई,“शी हर सेल्फ कन्फ़ेस्ड दैट बिकॉज़ ऑफ़ हर नेग्लेजेंस आई फ़ेल डाउन. व्हाट मोर यू वॉन्ट?”
अब ताली बजाने की बारी अंगद की थी. उसने मुझसे कहा,“शाबाश ग्रेट! कितना अच्छा सिला दे रही हो मॉम की ज़िंदगी भर की तपस्या का. उन्होंने सबसे नाता तोड़ा तुम्हें सम्मान दिलाने के लिए. और तो और तुम्हें बुरा ना लगे इसलिए एक कहानी भी गढ़ दी कि तुम बिस्तर से गिर गई थी. ये जानते हुए भी को वो इसके बाद वो तुम्हारे लिए मॉम से जया जी बन गईं. मैंने कई बार सच्चाई बताने की कोशिश भी की लेकिन हर बार उन्होंने ही मुझे रोका.’’
मैं समझ ही नहीं पा रही थी कि अंगद क्या बोल रहा है? मैंने फिर चिल्ला कर पूछा,“तो सच्चाई क्या है?”
अंगद फिर उतनी ही ज़ोर से चिल्लाया,“गो ऐंड चेक इंटरनेट. ट्रीचर कोलीन सिंड्रोम, यू वर बॉर्न विथ दैट. इट्स मॉम ओनली हू रैन फ्रॉम पोस्ट टू पिलर टू सेव यू ऐंड ब्रॉट यू टू दिस लेवल सो यू कैन फ़ाइट विथ हर ऐंड ब्लेम हर.’’
अब भौंचक होने की बारी मेरी थी. उधर जया जी अंगद पर ज़ोरों से बरस रहीं थी,“स्टुपिड बॉय व्हाट वाज़ दी नीड टू टेल हर ऑल दिस? शी विल गेट डिस्टर्बड, बेचारी… ऑलरेडी सो मच पेन इन हर लाइफ़ ऐंड यू टू वॉन्ट टू मेक हर लाइफ़ हेल.’’
अंगद मुंह बनाते हुए मुस्कुराया,“बेचारी…”
मैं चुपचाप वहां से उठ डेस्क टॉप के सामने बैठ इंटरनेट में ट्रिचर कोलीन ढूंढ़ने लगी. एक के बाद एक मेरे जैसे कई विभत्स चेहरे मेरे सामने आने लगे. तब जाना कि ये भयानक राक्षस किस तरह कितनों की ज़िंदगियां तबाह करता है. मुझ पर तो इसकी आंशिक मार ही है. ख़ुद पर बड़ा ग़ुस्सा और बेहद शर्म आई और जया जी पर बेहद प्यार. एक पल में वो डबल फ़ेस वाली जया जी से प्यारी मम्मा बन गई. मैं दौड़ कर बरसों पहले खोई मां के पास गई और गले लगा रोने लगी. लेकिन तभी पाया कि मुझे ख़ुश रखने के लिए मां ने अपने बाल भी कटवा लिए थे. ये उनका मेरे लिए समर्पण था. मम्मा ने भी मुझे गले से लगा लिया और हम घंटों एक दूसरे से बातें करते रहे. बरसों से पल रही कई ग्रंथियां दूर हुईं.
मैंने भगवान के पास जा कई बार अपनी सोच के लिए माफ़ी मांगी और कहा जिसे मैं अपना दुशासन समझ रही थी वो तो मेरी कृष्ण निकली, अब आप भी आओ कुछ चमत्कार करो, जया जी बेचारी तो इंसान हैं. मैंने मां को अपना सपना भी बताया कि मैं भी उनकी तरह बालों का जूड़ा बना वो रत्नजड़ित पिन लगाना चाहती हूं. मां चुप रहीं फिर धीरे से बोलीं,“देखो अब मैं भी तुम्हारी तरह स्टाइलिश बॉय कट हो गई हूं. सेम पिंच अब तो ख़ुश हो ना तुम.”
समय बीतता गया मेरे बाल भी लंबे होते गए, लगभग कमर तक आ गए पर मैं हमेशा द्रौपदी की तरह खुले ही रखती थी. अपनी कमियों से दोस्ती कर ली थी. मैंने अपनी पढ़ाई और अपने गुणों पर ज़्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया. अब मुझे कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ता था कि कोई मुझे घूर कर मेरे चेहरे की बनावट देख रहा है. लेकिन हसरतें तो हसरतें ही हैं. वो ज़रूर मन में चल रहीं थीं कि काश…मैं भी हल्का-सा जूड़ा बांधती और उस पर रत्नजड़ित क्लिप. एकाध बार क्लास में बालों को बांधा तो कभी मीनू तो कभी रमणी ने आवाज़ लगाई -ये रितु! व्हाट हैप्पेंड टू योर ईयर? देखो! चिपक गया है.’’
मैं हर बार हंसते हुए जवाब देती,“दैटस ट्रिक आई नो मैजिक. तुम लोग कर पाओगे क्या?”
हर दिन कृष्ण से गुहार लगाती कि,‘‘कब मुझसे जूड़ा बनवाओगे? कब मैं बालों को बांधूंगी?’’
लेकिन कलयुग में भी भगवान बसते हैं लेकिन अब वो डॉक्टर कहलाते हैं. एक दिन मम्मा का फ़ोन आया तो मैं ठीक से सुन नहीं पा रही थी. मम्मा ने पूछा,“व्हाट हैपेनेड?”
मैंने उदास होते हुए कहा,“मालूम तो है मां सुनने में तक़लीफ़ होती है.”
मम्मा भी चुप हो गई.
इसके बाद छुट्टियों में जब घर गई तो मम्मा ने कहा,‘‘चलो मेरे एक फ्रेंड हैं डॉक्टर विष्णु ईएनटी सर्जन हैं. बहुत नाम हैं उनका, शायद कुछ हेल्प कर पाएं.”
वैसे तो दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ने से मेरे विचार कुछ अलग थे, पर पता नहीं क्यों विष्णु नाम सुन लगा शायद मुझ द्रौपदी का कुछ उद्धार हो जाए.
हम जैसे ही उनकी ओपीडी पहुंचे, मम्मा ने वहां बैठे उनके अटेंडेंट से पूछा,“मुरली डॉक्टर विष्णु हैं क्या?”
मुरली विष्णु इन नामों ने मेरी जैसी नास्तिक के भी मन में आशा जगा दी. मैं तो ईश्वर को केवल अपने दुखों के लिए ही कोसती थी. जैसे ही हम डॉ विष्णु के कमरे में गए. मां ने उन्हें मेरे कम सुनाई देने के बारे में बताया. सुनते ही डॉ विष्णु ने कहा,“ओह डोंट वरी डॉ जया, वी हैव वंडरफुल ऑडियोलॉजिस्ट श्रीनिवास. ही विल सॉल्व योर प्रॉब्लम.”
अगेन तुम्हारा नाम भगवान श्रीनिवास, अब लगा ज़रूर मेरी मुश्क़िलें कम होंगी. श्रीनिवास सर ने ज़ोर लगा कर हैया की तरह आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का सहारा ले मेरी लिए एक छोटी-सी हियरिंग ऐड बनवा दी. पहली बार ज़िंदगी में पंखे की आवाज़ सुनी. बाहर खुले आसमान में आई तो चिड़ियों की चहचहाहट, ठंडी हवा की सनसनाहट से सामना हुआ. बार-बार ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया कि उसकी क़ायनात कितनी ख़ूबसूरत है. मुझे तो मानो पंख मिल गए, उड़ान भरने के लिए. बार-बार घर आ टीवी का वॉल्यूम धीमा कर ख़ुश होती तो अंगद आवाज़ लगाता,“ये आवाज़ तेज कर.”
ऐसा पहली बार हुआ था कि अंगद ने मुझे आवाज़ तेज करने को कहा. मम्मा को लगता बड़ी महंगी हियरिंग ऐड है, मेरे कूदने से नीचे गिर कहीं टूट ना जाए. बेचारी … डरती थीं कि मैं बुरा मान उन्हें फिर से जया जी ना बना दूं कि पैसों की बातें कर रही हैं.
मेरी ख़ुशी देखें जो ज़िंदगी में पहली बार मिली थी.
उस दिन डॉ विष्णु ने मेरे चिपके हुए छोटे कान भी देखे थे. उन्होंने मम्मा से कहा,“वन ऑफ़ माई क्लोज फ्रेंड फ्रॉम बॉम्बे डज़ इयर रिकंस्ट्रक्शन यूसिंग रिब कार्टिलेज. इफ़ यू से यस आई विल कॉल हिम ऐंड गेट इट डन.’’
मैं तो रिब के नाम से ही डर गई. हसरत ज़रूर थी जया जी का क्लिप लगाने की, लेकिन उसके लिए छाती कटवाना! रिब्स की कार्टिलेज निकालने के नाम से ही रोंगटे खड़े हो गए. मम्मा ने मुझे समझाया,“तुम अभी भी बचपन वाली सर्जरी सोच रही हो, अभी मेडिकल साइंस बीस सालों में काफ़ी आगे बढ़ गया है. एनएस्थेसिया की इतनी अच्छी तरक़ीब और दर्द कम करने के काफ़ी अच्छे इंजेक्शन आ गए हैं.
थोड़ा डर तो कम हुआ फिर अब मैं हियरिंग ऐड की वज़ह से सुनने भी अच्छा लगी थी. इससे माइंड भी पॉज़िटिव मोड में था और मैं सर्जरी के लिए मान गई. जब मम्मा ने बताया बॉम्बे में एक डॉक्टर आशीष जो अपनी सहयोगी गायत्री के साथ मिल कर इयर रिकंस्ट्रक्शन करते हैं तो आशीष और गायत्री नाम नए मेरी आंखों की बल्ब जला दिए. विष्णु, मुरली, श्रीनिवास, मां गायत्री और इन सब के आशीष की मुझ पर वर्षा. मुझ कलियुग की द्रौपदी का उद्धार तो होना ही था. कान बन गया तो मैं अपने बालों को बांध पाऊंगी. ख़ुद को ईश्वर के किए अन्याय से मुक्त कर पाऊंगी. ठीक एक स्वप्न की तरह बॉम्बे से डॉ आशीष और गायत्री आए और मुझे माइक्रोएट्रिशिया से मुक्ति दिलाई. क़रीब दो हफ़्तों बाद मैंने अपने ऑपरेशन के दर्द से भी मुक्ति पाली.
आज धनतेरस है और दो दिनों बाद दिवाली. मैं दिवाली के लिए हॉस्टल से घर आई हूं. पिछले दो हफ़्तों से अपना जूड़ा और उस पर लगा नानी वाला रत्नजड़ित क्लिप बार-बार सपने में दिख रहा था. मैंने मम्मा से अपनी इच्छा ज़ाहिर की. मम्मा का चेहरा पूरी तरह से सफ़ेद और भावरहित हो गया. मैंने हंसते हुए कहा,‘‘डरिए मत मम्मा, मैं आपकी मातिृक सम्पति नहीं लेना चाहती, केवल एक दिन अपने जूड़े में लगा अपनी बरसों पुरानी हसरत पूरी करना चाहती हूं और ये मौक़ा भी मुझे मेरे कृष्ण डॉ आशीष और डॉ गायत्री ने दिलाया है. ऑफ़कोर्स ये सब मेरी कलियुग की दुर्गा यानी मेरी मम्मा के कारण ही हो पाया है.”
मम्मा मुझे गले लगा फ़फ़क फ़फ़क के रोने लगी. उनके गरम गरम आंसुओं से मेरे पूरे बाल भीग गए. उन्होंने मुझे बताया मेरी महंगी हियरिंगऐड लेने के लिए वो क्लिप बेचनी पड़ी. वो मजबूर थी, जबकि डॉ ने ऑपरेशन तो फ्री ऑफ़ कॉस्ट ही किया था. मैं रोने के बजाय हंसने लगी और मन ही मन बुदबुदाई,“वाह प्रभु तेरी भी माया अजीब हैं, मेरे लिए कलियुग में तुम आए तो डॉक्टर बन के. तुम्हीं ने दर्द दिया था और दवा भी तुम्हीं ने दी लेकिन एक हसरत पूरी करने से क्यों चूक गए.’’
मैंने तन कर एक लंबी सांस ली और मम्मा को गले लगाया और जो चीज़ें पाई थीं उनका शुक्र अदा किया. मन ही मन सोचा मेरे खुले बाल ही अच्छे लगते हैं और मैं खुले ही रखूंगी लेकिन फिर भी हसरत ना पूरी होने का मलाल तो था ही.

Illustration: Pinterest

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डॉ संगीता झा

डॉ संगीता झा

डॉ संगीता झा हिंदी साहित्य में एक नया नाम हैं. पेशे से एंडोक्राइन सर्जन की तीन पुस्तकें रिले रेस, मिट्टी की गुल्लक और लम्हे प्रकाशित हो चुकी हैं. रायपुर में जन्मी, पली-पढ़ी डॉ संगीता लगभग तीन दशक से हैदराबाद की जानीमानी कंसल्टेंट एंडोक्राइन सर्जन हैं. संपर्क: 98480 27414/ [email protected]

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