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ओए अफ़लातून
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स्वीट सिक्सटी: डॉ संगीता झा की कहानी

डॉ संगीता झा by डॉ संगीता झा
May 12, 2025
in ज़रूर पढ़ें, नई कहानियां, बुक क्लब
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स्वीट सिक्सटी: डॉ संगीता झा की कहानी
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उम्र के छठें दशक को सेलिब्रेट कर रहीं महिलाओं के एक ग्रुप की कहानी. डॉ संगीता झा की कहानी ‘स्वीट सिक्सटी’ में अतीत की अधूरे सपनों की कसक तो है ही, पर बड़े ही ठसक से उस कसक को पूरा करने की ज़िद, जद्दोजहद भी है.

पाठकों को लग रहा होगा कि जरूर लेखिका सठिया गई है सिक्सटी और स्वीट? स्वीट तो सिक्सटीन हुआ करता है. लेकिन आज जो मेरी उम्र यानी साठ से ऊपर की महिलाएं है क्या हमारा सिक्सटीन स्वीट था. ये तो वही कहावत हो गई,“जब दांत थे तो खाना नहीं था और अब खाना है तो दांत नहीं है.”
मैं नहीं मानती इस कहावत को क्योंकि मेरा मानना है एज लाइज़ इन योर माइंड. काश… ये शत प्रतिशत सच होता अगर घुटने चरमर्र ना कर रहे होते. चेहरे पर आई लकीरों को छुपाने के लिए कंसीलर ना लगाना पड़ता. लंबी यात्रा पर जाने पर एडल्ट डायपर ना पहनने पड़ते.
मेरी कॉलेज की एक सहेली ने पहल की और हमने अपना एक व्हाट्स ऐप ग्रुप बनाया ‘नटखट सिक्सटी’. इस ग्रुप में सब हमारे बैच की म से शुरू होने वाली आठ लड़कियां या अब महिलाएं.
मैं मैथिली, मानसी, मिनाज, मारिया, मधु, महजबीन, मन्नत कौर और मस्कती. हमने पहले भी अपने नाम करण एम वन (मधु), एम टू (मैथिली यानी मैं), एम थ्री (मस्कती), एम फोर (मानसी), एम फाइव (मिनाज़), एम सिक्स (महजबीन), एम सेवन (मारिया) और सबसे आख़िरी में एम एट (मन्नत कौर) किया था.
ये नामकरण जैसे-जैसे ग्रुप में हमारी एंट्री हुई थी के आधार पर थे. हम अपने असली नाम भूल एक दूसरे के लिए वन टू एट गिनती बन गए थे. हम सबने एक साथ हॉस्टल में रह बायोकेमिस्ट्री में ना केवल एमएससी की थी बल्कि साथ ही पीएचडी भी की. हमने जो हॉस्टल में उन दिनों धमाल मचाया था वो आज भी अकेले में बरबस मुस्कुराने पर मजबूर कर देता है. एमएससी के बीच में मस्कती, मन्नत और महजबीन की शादी हो गई थी. मस्कती का तो एक प्यारा सा बेटा अजान भी था, जो एक सर्वेंट की मदद के साथ हमारे साथ ही रहता था. कभी वार्डन घोरपड़े मैडम का राउंड होता तो हम उस सर्वेंट के साथ उसे टहलने हॉस्टल के सामने वाले मैदान भेज देते. मैडम पूछती,“तुम्हारे विंग से बच्चे के रोने की आवाज आती है.’’
चट से हमारी ग्रुप लीडर मधु जवाब देती,“अरे मैम हमारी मैथिली सबकी आवाज़ें निकालने में मास्टर है. यही अक्सर तरह-तरह की आवाज़ें निकालती है और कभी-कभी बच्चे की तरह रो हमारा ध्यान आकर्षित करती है.’’
वार्डन मैडम मेरे कान खींचती और कहती,“तू अगर मेरी सहेली की भांजी ना होती तो तुझे हॉस्टल से निकलवा देती.’’
मेरी सबसे छोटी मौसी आशा और मैडम कॉलेज में साथ साथ पढ़ते थे और इसी हॉस्टल का हिस्सा थे. मौसी ने अपने मन से शादी कर पूरे घर से नाता तोड़ लिया था और हमारी घोरपड़े मैडम ने प्यार में धोखा खाया था, इससे अब तक कुंवारी थीं. मौसी का घरबार रिश्तेदार सब कुछ उनकी सहेलियां ही थीं उसमें हमारी मैडम का पहला नंबर था. वो जब भी मैडम से मिलने आती मुझे बुलाती और मैं उनसे मिल लेती. इसका मेरे घर वालों को बिल्कुल भी अंदाज़ा ना था. अम्मा डरती उनकी बहनों वाली कारस्तानी मैं ना कर जाऊं. बहनों वाली कारस्तानी से मतलब था ख़ुद के पसंद के लड़के से घर वालों से छुप कर शादी. जो उन दिनों मां बाप के लिए भी मरने जीने का सबब हुआ करती थी. मतलब लड़की गई और कई बापों को हार्ट अटैक. अम्मा की दो बहनों ने अपने पति ख़ुद चुने थे. अपने घरों में ख़ुश तो थीं ,पति मिल गए लेकिन मां बाप भाई बहन सब छूट गए. एक बार आशा मौसी ने मुझे कहा था,“मिष्टी तू दीदी की पसंद से ही शादी करना. मुझे देख जिसके लिए सब कुछ छोड़ा अब बात बात में ताने देता है, जो मां बाप की नहीं हुई मेरी क्या होगी. शादी सबके लिए पांच साल बाद एक सी हो जाती है. कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता अरेंज हो या लव. बल्कि घर की पसंद किए दूल्हे की पत्नियां ज़्यादा ख़ुश रहतीं है उन्हें मायके ससुराल दोनों का सपोर्ट रहता है.’’
उनकी ये बात सुन मैं बड़ी परेशान हो गई थी. मुझे लगता था कि आशा मौसी अपनी ज़िंदगी में बड़ी ख़ुश थीं.अम्मा ने हम लोगों से हमेशा अपनी दोनों बहनों की ज़िंदगी छुपा रखी थी. निशा मौसी की शादी के समय मैं बहुत छोटी थी, इससे कोई याद नहीं. वो तो बड़े होने पर अम्मा के मायके के पास रहने वाली चुग़लखोर नानियों से पता चला कि शुक्ला जी की एक नहीं दो लड़कियां घर से भागी थीं. उन दिनों अपने मन की शादी करने को घर से भागने की उपाधि दी जाती थी. आशा मौसी का मुझे याद था क्योंकि वो हमें बचपन में ननिहाल जाने पर बहुत खिलाया करती थीं. मैंने जब भी आशा मौसी के बारे में पूछा तो अम्मा कहती,“धरती फटी और मौसी उसमें घुस गई.’’
मैं पूछती ,“ठीक सीता मइया की तरह.”
अम्मा सिर्फ़ कहती,“हां.’’
मेरे प्रश्न कहां रुकते,“उनकी अग्नि परीक्षा किसने ली थी?”
अम्मा का फिर वही घिसा पिट. जवाब होता,“भगवान ने.”
मैं बहुत बड़े तक जब भी नानी के यहां जाती, उनके आंगन में वो दरारें ढूंढ़ती जहां से मौसी अंदर गईं थीं. फिर गुस्से से आसमान को देख भगवान को कोसती पूरी दुनिया में केवल मेरी प्यारी आशा मौसी ही मिली थी धरती में घुसाने के लिए. अम्मा लोग केवल तीन बहनें थीं इससे आशा मौसी के जाने के बाद हम भाई बहन मौसी का प्रेम पाने के लिए वंचित ही रहे. हमारे पंजाबी पड़ोसी के दोनों बेटे बिट्टू और गिद्दू जब अपनी चंडीगढ़ से आने वाली स्टाइलिश मासियों के गुणगान करते तो अंदर से एक जलन सी उठती काश…इनकी मासियां भी धंस जाती तो इन्हें भी पता चलता दर्द क्या होता है.
इसलिए बरसों बाद जब मौसी मुझसे हॉस्टल में मिली और उनसे गले मिली तो ऐसा लगा जैसे नवजात शिशु को लपेटने से मां की छातियां दूध से भर गई हों. मैं भी बिलख बिलख कर रोने लगी. मैडम घोरपड़े भी भावुक हो गयी.
अपनी दो बहनों के पलायन से अम्मा इतनी शक्की हो चुकीं थी कि उनकी सारी जासूसी मेरे ऊपर ही रहती. अपने साथ पापा और तीनों भाइयों को भी मेरे प्रति शक्की बना दिया था.
बचपन से ही मुझे सलवार कुर्ता पहनने पर मजबूर किया गया. उन दिनों मेरी सहेलियां घुटनों तक लंबाई की मिडी पहनती थी, जो मुझे बिल्कुल भी नहीं पहनने मिलती थी. मेरी बड़ी मिन्नतों के बाद मुझे एक मिडी दिलवाई गई. उसे पहन मैं एक दिन मोहल्ले में मटकी भी. अपने मोहल्ले के लड़कों की अपने गोरे गोरे खुले पैरों पर चुभती नज़रें महसूस भी की. गुस्से से ज़्यादा उन नज़रों पर प्यार आया. उन दिनों तो टीवी भी नहीं था. थोड़े दिन पहले अम्मा और उनकी सहेलियों के साथ पड़ोसन पिक्चर देखी थी. दो दिनों तक बिना उतारे वही मिडी पहनी रही और ठीक पिक्चर की सायरा बानो की तरह पैर ऊपर कर अपनी बेसुरी आवाज में ‘भई बद्दूर भई बद्दुर’ गाती रही. आते जाते भाई मेरी हरकतें देख रहे थे और गुस्से से उनका खून भी खौल रहा था. तीसरे दिन धोने डाली और चौथे दिन धुले कपड़ों से वो मिडी गायब थी. पूरे घर का कोना कोना छान मारा कहीं वो मिडी नहीं मिली. मैं सिर्फ़ रोती रही और भाई हंसते रहे. ये एक टिन एज युवती का विलाप था. एक साल बाद किसी कारण से आंगन में खुदाई हुई जिसमें मिट्टी में गड़ी आधी चरमराई फटी मेरी मिडी मिली. मैं अपनी अरमानों की लाश के साथ लिपट कर बहुत रोई. सारी जवानी इसी तरह बीत गई. पढ़ाया भी मुझे गर्ल्स हाई स्कूल में उसके बाद कॉलेज भी गर्ल्स डिग्री कॉलेज जहां दूर-दूर तक लड़कों की हवा भी नहीं आती थी. ये सब घर वालों के अंदर बैठा हुआ डर ही तो था कि कहीं मैं भी निशा और आशा मौसी की तरह भाग ना जाऊं और मेरे भाइयों के बच्चों को बताना पड़े कि,“धरती फटी और बुआ घुसी. “
एक बार तो बिल्कुल ग़ज़ब वाक़या हो गया. किसी मनचले का एक गुमनाम पत्र मेरे घर पर आया और ना जाने कैसे भाइयों के हाथ पड़ गया. ख़त का मजनून कुछ ऐसा था
सपनों बहारों और दिल की रानी, ढेर सारा प्यार
तुम मेरे दिलो दिमाग पर छाई रहती हो. जब भी तुमसे नजरें मिलती है मैं किसी दूसरी दुनिया में खो जाता हूं. काश हम अपनी एक दुनिया बना पाते. आज शाम तुम मुझे तुम्हारे घर के पीछे वाले नाले में मिलना. कोशिश करना कोई तुम्हें आते ना देखे. मैं शाम सात बजे वहां तुम्हारा इंतज़ार करूंगा.
तुम्हारा और केवल तुम्हारा… आशिक़
पत्र में कहीं भी किसी का नाम नहीं था लेकिन ज़ाहिर है मेरे घर पर मिला तो शायद मेरे लिए ही होगा. तीनों भाईयों ने अम्मा के साथ मिल इस मुलाक़ात को गोरिल्ला अंजाम देने का पूरा मंसूबा बना लिया. रात को उनके क्रिकेट बैट को तेल पिलाया गया और कई तरह के नए नए हथियार ईजाद हुए. शाम को जब मैं अपनी हर दिन की सहेलियों से मिलने तैयार हो निकली तो लगा जैसे कोई मेरा पीछा कर रहा है लेकिन फिर ये मन का वहम सा लगा. मुझे तो इल्म भी नहीं था कि हथियारों से लेस एक गोरिल्ला आर्मी मेरे पीछे चल रही है. मैं तो किसी दूसरे रास्ते ही जा रही थी तो जासूसों को लगा मैं गुमराह करना चाहती हूं. मैं घूम फिर के सात बजे के काफ़ी पहले ही घर लौट आई. मेरे छोटे भाई ने फिर पूछा,“आज इतनी जल्दी क्यों आ गई? फिर से बाहर जाने का इरादा है क्या?”
मैंने उत्तर दिया,“आर यू मैड? मेरा कल मैथ्स टेस्ट है. पढ़ना है, जा तू कहीं और जा.’’
भाई ने मन ही मन सोचा मैं उसे भगा ख़ुद अपनी योजना को अंजाम दूंगी. छोटे भाई को मेरी पहरेदारी करने के लिए छोड़ बड़े दोनों नाले के पीछे मेरे सो कॉल्ड आशिक़ को रंगे हाथों पकड़ने निकल पड़े बाकायदा अपने बनाये हथियारों से लैस. वहां उन्हें आशिक़ तो मिला पर मेरा नहीं बल्कि हमारे ऊपर रहने वाली लड़की मिताली का, जिसे वे पहले से ही जानते थे. चिट्ठी पहुंचाने वाले कबूतर ने ग़लती से वो चिट्ठी उपर वाले घर के बदले हमारे घर के सामने रख दी थी. अपना ‘ऑपरेशन रोमियो मिशन’ फ्लॉप होने पर उन्हें बड़ी निराशा हुई. भाइयों की वजह से ना तो मैं किसी से इश्क़ करने की जुर्रत कर सकती थी और ना कोई मेरा आशिक़ बनने को तैयार होता. पूरी जवानी राधा रानी का कृष्ण से मिलन और सीता की पतिभक्ति और पार्वती की शंकर जी को पाने के लिए की गई तपस्या में निकल गई.
क़रीब-क़रीब यही पृष्ठभूमि एम वन से लेकर एम एट की थी. एम वन यानी मधु अरोरा की फ़ैमिली पंजाबी होने की वजह से थोड़ी प्रोग्रेसिव तो थी लेकिन स्कूल में ही बारहवीं क्लास में उसका क्लास सेवन से बारहवीं तक चल रहे अफ़ेयर का बड़ा दर्दनाक अंत हुआ था. मधु क्लास सेवन से ही बड़ी मैच्योर थी ऐसा उसका कहना था और उसकी बातों से भी लगता था. उसका लॉन्ग टाइम बॉय फ्रेंड बड़ी आसानी से ब्रेकअप कर अपने मामा के पास पढ़ने यूएस चला गया. उसका दिल मर्दों की तरफ़ से पूरी तरह से खट्टा हो गया और उसने आजन्म पुरुषों से दूर रहने का निर्णय लिया और हमारे एम गैंग का हिस्सा ही नहीं लीडर भी बन गई. मधु से हम सब इतना डरते थे कि चाह कर भी लड़कों के बारे में बातें तो छोड़ो सोच भी नहीं सकते थे. आज जब अपनी दोनों बेटियों को कभी बम्बल तो कभी टिंडर ऐप में धड़ल्ले से बॉय फ्रेंड ढूंढ़ते देखती हूं तो अपनी नीरस जवानी याद आ जाती है.

बाक़ी सभी एम ग्रुप के लोगों की कहानी मेरे ही जैसी थी. मस्कती की फूफू की बेटी ने हिंदू से शादी की थी तो मेहज़बीन के खाला का बेटा ईसाई दुल्हन ले कर आ गया था. इससे दोनों के परिवार के बड़ों के कान खड़े हो गए थे. मानसी, मिनाज, मन्नत और मारिया के पैरेंट्स को लगता था गर्ल्स कॉलेज और गर्ल्स हॉस्टल में उनकी बेटियां महफ़ूज़ रहेंगी.
केवल मधु ही पुरुष जाति से नफ़रत करती थीं और बाकियों के पास कोई चारा नहीं था सिवाय सपने देखने के और उन सपनों को एम वन यानी मधु से छिपाने के. पंद्रह दिन में एक बार हमें पास के डॉ ढिल्लन के दवाखाने में जाने की परमिशन थी. वहां डॉ साहेब के शहज़ादे राजेश के दर्शन हो जाते. हमारे लिए वो राजेश ढिल्लन नहीं उन दिनों का सुपर स्टार राजेश खन्ना सा था. करते भी क्या सावन के अंधे को सब हरा-हरा दिखता था. वो शायद किसी कॉन्वेंट का पढ़ा लिखा था. हम लोगों को देख अपने घर की लैंड लाइन से पता नहीं किससे इंग्लिश में बातें करता था. उन दिनों इंग्लिश में हमारा हाथ तंग हुआ करता था ,इससे हर इंग्लिश में किट-पिट करने वाला हमे दूसरी दुनिया का वासी लगता था. मधु को ना तो डॉ ढिल्लन के पास जाने की ज़रूरत महसूस होती, ना ही वो जाना चाहती थी. उन दिनों भी महिलाओं के अस्तित्व, आजादी और पुरुषों से बराबरी की बातें होती थी और उसमें हमारा एम ग्रुप बड़े बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेता था. किसी का भी सपना शादी कर गृहस्वामिनी बनने का नहीं था.
उस समय की प्रधानमंत्री इंदिराजी हमारी नायिका थी. सन चौरासी में उनकी मौत पर एम एट ने जितना मातम मनाया था शायद ही हमने आज तक अपने किसी क़रीबी के मरने पर मनाया हो. मन्नत से तो हमने क़सम उठवाई कि वो किसी सरदार से शादी नहीं करेगी. हम सब अपनी ज़िंदगी में पीएडी करने के बाद अलग-अलग शहरों के मेडिकल कॉलेजों के बायोकेमिस्ट्री डिपार्टमेंट में प्रोफेसर बन गए. केवल हमारी लीडर मधु जिसने समाज के सामने घुटने नहीं टेके और अमेरिका की ड्यूक यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर बन गई. हम बायोकेमिस्ट्री की बुक में उसका लिखा चैप्टर अपने स्टूडेंट को पढ़ाते और बताते,“शी वास माय क्लासमेट.’’
पढ़ाई ख़त्म करते ही मेरी भी नियति वही हुई जो अस्सी के दशक में एक संस्कारी लड़की की हुआ करती थी. सजातीय निलेश का पता पापा को किसी मित्र ने बताया. दोनों परिवार की मुलाकातें हुई. बाकायदा सास ससुर मुझे घर पर देखने आए और मैं अपना घर छोड़ पाठक परिवार का हिस्सा बन गई. नीलेश की पोस्टिंग चंडीगढ़ में थी इससे मैं चंडीगढ़ में ही बस गई. मैं तो इसीमें खुश थी कि नीलेश मुझे नौकरी करने दे रहे हैं. जल्दी ही मैं दो जुड़वा बेटियों भव्या और दिव्या की मां बन गई. दोनों आइडेंटिकल ट्विन्स थी. भव्या थोड़ी बदमाश मेरे जैसे और दिव्या अपने बाप पर गई थी. कई बार मैं भव्या को दो बार दूध पिला देती और दिव्या रोती रहती और मैं सोचती ये तो रोतली है. सासू मां को बेटा चाहिए था पर मैंने आदर्श बहू बनने से साफ़ इंकार कर दिया.

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दोनों बेटियां मेरी जान है और मैं उनकी. वो जैसे-जैसे बड़ी होने लगी मुझे भी अपने साथ बड़ा करने लगी. मेरे लिए कलरफुल नाइटियां ली जाने लगी. वापस सालों बाद फिर बेटियों के साथ भई बद्दूर गाना गाय.. अब सेल फ़ोन, इंस्टा और फेस बुक का जमाना आ गया था. मेरी सारी बिछड़ी दोस्तों को ढूंढ़ा गया. फिर से एम गैंग बना और दस साल पहिले मेरे सारे दोस्तों को बुला बड़े ज़ोर-शोर से मेरा पच्चासवां जन्मदिन मनाया गया. उसके बाद तो जैसे हम आठों की दुनिया ही मानो बदल गई. घर में मेरी बेटियों ने बराबर की भागीदारी ले ली. हम आठों साल में दो बार कहीं बाहर घूमने जाते. मेरी बेटियां बार बार मुझसे कहतीं,“मॉम देयर इज नो रोमांस इन योर लाइफ. योर हसबैंड्स फ़र्स्ट लव इज़ हिज़ लैब, हिज़ जॉब. वी लव अवर डैड बट वी ऑलवेज फील समथिंग मिसिंग इन योर लाइफ़ एंड दैट इज़ रोमांस. डैड डज़ नॉट नीड इट, इट्स ओके. बट वी फील सैड फॉर यू. यू आर फ्री फ्रॉम अवर साइड, लुक फॉर ए बॉय फ्रेंड एंजॉय योर लाइफ़.’’
मैं तो भौंचक रह जाती बाप रे मैंने बेटियां पैदा की हैं या शैतान. ऐसी बातें वो भी अपनी मां से. लेकिन अब इस उम्र में दोस्तों की ज़रूरत होती है जो मुझे मिल गए थे.
मेरी बेटियों का मानना था कि हमारे ग्रुप के सात लोगों ने तो शादी का लड्डू चख लिया है भले कड़ुवा ही सही. क्यों ना मधु आंटी का ब्याह रचाया जाय. प्लानिंग के मुताबिक मधु को दो महीने के लिए यूएस से बुलवाया गया और वो मेरे घर पर ही ठहरी. बाक़ी ग्रुप के दूसरे मेंबर भी आ गए. शादी की बातें और मां की लाइफ में रोमांस की कमी सुन मधु तो हैरान रह गई. मुझसे कहने लगी,“यार असली प्रोग्रेस तो तूने की है लाइफ में. पति सीएसआईआर में सेलिब्रेटी साइंटिस्ट, गाड़ी ड्राइवर इतना बड़ा घर और उसके बाद उसी घर में तेरे रोमांस की बातें वो भी तेरी बेटियों के मुंह से. ग्रेट ली.’’
वो मुझे हमेशा मेरे नाम मैथिली के आख़िरी अक्षर ली कह पुकारती थी और मैं उसे मधु के आख़िरी अक्षर धु कह पुकारती थी. हम दोनों अगर साथ हों तो बेटियां हमें धूली कहतीं. बेटियों ने मधु का एक टिंडर अकाउंट खोला. अपने प्रोफेशन के लिए समर्पित मधु तो मानो जैसे दिव्या भव्या से वशीभूत हो गई थी. उसने बिल्कुल भी प्रतिरोध नहीं किया. घर के ऊपर के पोर्शन में बने दोनों गेस्ट रूम्स हमें दे दिए गए. बेटियों ने ज़मीन पर बिछाने वाले गद्दों का इंतज़ाम कर दिया. जगह आठों के लिए कम थी लेकिन हॉस्टल के दिन वापस आ गए.
बेटियां टिंडर में अपनी मधु आंटी के लिए दूल्हे की तलाश में जोरों-शोरों से जुटी हुईं थीं. हम आठों हॉस्टल की तरह लड़ते रहते थे. हम सबको लग रहा था मानों हम सबके लिए ही रिश्ता ढूंढ़ा जा रहा हो. सचमुच कितना सच है ये कि- एज इज़ इन योर माइंड एंड इट्स जस्ट ए नंबर.’ रोज़ अर्बन क्लैप से ब्यूटीशियन बुलाई जाती, मधु तो गई भाड़ में बाक़ी हम लोग ही पेडीक्योर, मेनिक्यूर और फेशिअल करा चमकने में लगे थे. हेयर स्पा तो कभी मरे हुए बालों का किरेटिन ट्रीटमेंट जो पहले हम लोगों ने कभी सुना भी नहीं था. मधु चिल्लाती,“कुछ तो शर्म करो, मेरे लिए लड़के या कहिए दूल्हे की खोज हो रही है. तुम लोगों के पास अपने अपने है.’’
क्या मजाल कि कोई जूं ही रेंग जाए. सब के सब बौराए हुए थे और मज़ा दिव्या और भव्या ले रहे थे. नीलेश तो घर पर रह कर भी घर पर नहीं थे. एक दिन जब मैं सीढ़ियों से नीचे उतर रही थी तो नीलेश मुझे एकटक देखने लगे. उनकी टकटकी में ही मुझे जवाब मिल गया. उन्होंने आवाज़ दे कर मुझे कहा,“आज शाम चले कहीं. मैरियट में ग़ज़ल का प्रोग्राम है.”
मैंने हंसते हुए जवाब दिया,“मेरी सारी फ्रेंड्स भी हैं.”
नीलेश ने उतनी ही गर्मजोशी से जवाब दिया,“कोई बात नहीं, उन्हें भी ले चलते हैं.”
उसके बाद अपने सेक्रेटरी को फ़ोन कर सबके लिए डोनर पास मंगा लिया. बेटियों ने तो वीटो लगा दिया कि सिक्सटी वालों के गैंग के साथ वो नहीं जाएंगी. और वैसे भी ग़ज़ल उनके सर के ऊपर से निकल जाती है. सालों बाद नीलेश के अंदर छिपे पुरुष से मुलाक़ात हुई. अपनी सो कॉल्ड सालियों से भी उन्होंने अच्छी ख़ासी बात की. घर वापिस आते समय निलेश कार में धीमे-धीमे जगजीत सिंह की ग़ज़ल भी गुनगुना रहे थे. घर घुसते ही सब मुझ पर झपट पड़ी,“बड़ी आई है कहने वाली कि नीलेश की लैब मेरी सौत है. तो ख़ुद ही घुन्नी है, आज तो नीलू जी का अंदाज़ ही अलग था.’’ अब नीलेश बाक़ी ग्रुप मेंबर्स के नीलू बन गए थे.
उसके बाद तो रोज़ ही नीलेश सुबह के नाश्ते और रात के खाने में हमारे साथ होते. निलेश और मधु के तो बड़े साइंटिफिक डिस्कशन भी होते और मधु अक्सर कहती,“निलेश इज़ ग्रेट एंड वेरी इंटरेस्टिंग पर्सन. आई डोंट माइंड मैरिंग हिम, आई विल बी हैप्पी एज हिज सेकंड वाइफ़ आल्सो. डोंट माइंड टॉलरेटिंग यू.’’
मैं चिल्लाती,“शट अप! ही इज़ माई हसबैंड और मेरा पति सिर्फ़ मेरा है.’’
मधु जवाब देती,“बड़ी आई पति वाली! अभी तक तो कहती थी लाइफ़ में कोई मजा ही नहीं है.’’ इतना मजा नोक झोंक हम सबमें काफ़ी तब्दीली ला रहा था.
हम सब उछलने कूदने और दौड़ने भी लगे थे. लगा ही नहीं हॉस्टल और आज के बीच में कोई कल भी था. इस बीच वैलेंटाइन डे भी चला गया. हम सब एक दूसरे के वेलेंटाइन बन गए. मधु बार बार पूछती,“मेरे लिए किसी पार्टनर की ज़रूरत है क्या? आई एम सो हैप्पी विथ यू ऑल. जिंदगी में किसी की जरूरत भी नहीं है.’’
बाक़ी सभी एक साथ चिल्लाती,“हम सब तो शादी नाम की कढ़ाई में झोंक दी गईं. अब तेरे साथ डेटिंग के मज़े हम भी ले रहीं हैं. कम से कम ये ख़्वाब हमारा तो पूरा होने दे.’’
मधु फिर चिल्लाती,“ख्वाब तुम्हारे और बलि मेरी! ये बड़ी अच्छी बात है.”
उसके बाद उसी ऐप में एक महाशय का प्रस्ताव आया. नाम-क्षितिज पंडित,उम्र -अट्ठावन, पेशा-चार्टर अकाउंटेड, रंग-गेहुआं, तलाकशुदा, पहली शादी से एक बेटी.
हम सब तो उन महाशय की फ़ोटो पर ही फ़िदा हो गए थे मानो वो एक साथ आठ महिलाओं को ब्याहने आ रहें हो. अब पता चल रहा था कि ख्वाबों की कोई उम्र नहीं होती. मधु तो पहले से ही टॉमबॉय सी थी. लड़की वाली फीलिंग हमने ही उसके दिल में जगाई थी. महाशय के मेरे घर आने के पहले ही सब बड़े ज़ोर-शोर से अपने साज संवार में लग गए. मुझे देख कर बेटियां पागल हुए जा रहीं थीं लेकिन ख़ुश भी बहुत थीं.
आख़िर वो दस तारीख़ आ ही गई जिस दिन छी: आने वाले थे. बिना मिले ही क्षितिज हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा बन चुके थे. मधु की टांग खिंचाई के लिए क्षितिज को हम छी:कह पुकारने लगे थे. सुबह दस बजे से ही सब मधु को सजाने में लगे थे क्योंकि क्षितिज लंच पर पधारने जो वाले थे. मैं किचन में कुक को पकोड़े बनाने के लिए बेसन घोल कर दे रही थी, नीलेश ऑफ़िस के लिए निकल चुके थे. अचानक कॉलबेल बजी, सोचा शायद कोरियर वाला है. मैंने दरवाजा खोला, धोखे से मेरा बेसन सना हाथ मेरे बालों पर जा लगा. ये क्या मेरी हालत तो बॉबी मूवी की डिंपल कपाड़िया की तरह हो गई थी. सामने खड़ा पुरुष मेरी हालत मेरे चेहरे की खीज पर मुस्कुराने लगा. हाथ मिलाने के लिए पहले हाथ बढ़ाया फिर हाथों में बेसन देख हाथ पीछे कर लिए. फिर हंसते हुए कहा,“सॉरी मैं बिफ़ोर टाइम आ गया. मधु जी मैं क्षितिज पंडित.’’
मैं झुंझलाई,“सॉरी आई एम नॉट मधु. आई एम मैथिली हर फ्रेंड. मधु इज इनसाइड, प्लीज़ कम. आई विल सेंड हर, प्लीज़ बैठिए.”
ये क्या फिर झटका. उसके साथ उसकी बेटी नंदिनी पंडित, ओह ये तो दिव्या भव्या की फ्रेंड नंदू है. मैं ही मूर्ख कोरीलेट ही नहीं कर पाई. अभी दो साल पहले ही तो उसकी मां सुमन की डेथ हुई थी. तो ये पूरा भव्या-दिव्या का नंदिनी के साथ मिलकर बनाया प्लान था. ये खोज भी बेटियों की थी और लगभग छ: महीने से ये सब चल रहा था. उसके बाद तो पूछिए ही मत क्या हुआ. तीनों लड़कियां मेरे बालों में लगे बेसन की वजह से डिंपल कपाड़िया कह मेरी हंसी उड़ाने लगीं. नंदिनी ज़ोर से चिल्लाई,“नो वे मैं निलेश अंकल को कोई दुख नहीं पहुंचा सकती. सॉरी आंटी माना मेरे पापा बड़े हैंडसम है लेकिन आपके ऋषि कपूर तो सिर्फ़ नीलेश अंकल हैं.’’
मैं तो सचमुच ठगी सी रह गई. हम फिर सिक्सटीन से स्वीट सिक्सटी में पहुंच गए और बड़ी धूम-धाम से मधु और क्षितिज की कोर्ट मैरिज हो गई. नीलेश और क्षितिज बड़े अच्छे दोस्त बन गए हैं. नंदिनी और दिव्या-भव्या एक साथ सारे प्लान बनाते हैं. हमारे नटखट सिक्सटी ग्रुप ने सचमुच उम्र को पछाड़ दिया है और ठीक स्वीट सिक्सटीन की तरह हम सबका स्वीट सिक्सटी ही चल रहा है.

Illustration: Pinterest

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डॉ संगीता झा

डॉ संगीता झा

डॉ संगीता झा हिंदी साहित्य में एक नया नाम हैं. पेशे से एंडोक्राइन सर्जन की तीन पुस्तकें रिले रेस, मिट्टी की गुल्लक और लम्हे प्रकाशित हो चुकी हैं. रायपुर में जन्मी, पली-पढ़ी डॉ संगीता लगभग तीन दशक से हैदराबाद की जानीमानी कंसल्टेंट एंडोक्राइन सर्जन हैं. संपर्क: 98480 27414/ [email protected]

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