इन दिनों देश में हिंदू और मुस्लिम नागरिकों के बीच एक अनकही-सी दीवार खींची जा रही है. जिसका मक़सद केवल वोट पाना है, लेकिन गांधी का यह देश वैमनस्यता की इन कोशिशों को कामयाब नहीं होने देगा. यही अरमान दिल में लेकर ओए अफ़लातून अपनी नई पहल के साथ हाज़िर है, जिसका नाम है- देश का सितारा. जहां हम आपको अपने देश के उन मुस्लिम नागरिकों से मिलवाएंगे, जिन्होंने हिंदुस्तान का नाम रौशन किया और क्या ख़ूब रौशन किया. इसकी सातवीं कड़ी में आप जानिए डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम को.
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को भारत के “मिसाइल मैन” और “जनता के राष्ट्रपति” के रूप में जाना जाता है. अपनी सादगी, समर्पण और वैज्ञानिक उपलब्धियों से भारत को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाले कलाम को जनवरी 1958 में एयरफ़ोर्स की परीक्षा में असफलता हाथ लगी थी. वे इससे बहुत निराश थे, लेकिन इससे उबरते हुए उन्होंने अपने रास्ते पर आगे बढ़ते जाना शुरू किया. आगे चलकर अपनी मेहनत के बल पर वे हमारे देश का सिर गर्व से ऊंचा करने वाले वैज्ञानिक तो बने ही, साथ ही, हमारे देश के सबसे लोकप्रिय राष्ट्रपति भी बने. उनका जीवन एक प्रेरणादायक और ऐसी कहानी है- जो ग़रीबी से शुरू होकर वैज्ञानिक उपलब्धियों से होते हुए राष्ट्रपति पद तक पहुंची.
मेहनत और लगन की सीख
अवुल पाकिर जैनुल्लाबदीन अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में एक साधारण परिवार में हुआ. उनके पिता, जैनुल्लाबदीन, एक नाविक और मस्ज़िद के इमाम थे, जबकि उनकी माता, आशियम्मा, एक गृहिणी थीं. कलाम पांच भाई और पांच बहनों में सबसे छोटे थे. उनका परिवार आर्थिक रूप से साधारण था. बचपन में कलाम को कई बार आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा. इसके बावजूद, उनके माता-पिता ने उन्हें नैतिकता, कड़ी मेहनत और शिक्षा का महत्व सिखाया.
कलाम ने अपनी आत्मकथा “विंग्स ऑफ़ फ़ायर” में बताया है कि कैसे उनके पिता की सादगी और ईमानदारी ने उन्हें जीवन में प्रेरित किया. बचपन में, कलाम अख़बार बांटकर परिवार की आर्थिक मदद करते थे. यह उनके जीवन का वह दौर था, जब उन्होंने मेहनत और लगन की नींव रखी.
वैज्ञानिक बनने की ओर बढ़ते क़दम
कलाम की प्रारंभिक शिक्षा रामेश्वरम के एक स्थानीय स्कूल में हुई. उनमें बुद्धिमत्ता और जिज्ञासा बचपन से ही मौजूद थी. उन्होंने वर्ष 1954 में तिरुचिरापल्ली के सेंट जोसेफ़ कॉलेज से भौतिकी में स्नातक की डिग्री प्राप्त की. इसके बाद, कलाम ने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी एमआईटी में एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में तीन वर्ष के पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा में पढ़ने के लिए आवेदन किया. उनका आवेदन मंजूर हो गया, लेकिन इस प्रतिष्ठित संस्था में प्रवेश काफ़ी महंगा था. इस मोड़ पर कलाम की बहन ज़ोहरा उनकी मदद के लिए आगे आईं. दाख़िले की फ़ीस के लिए उन्होंने अपनी सोने की चूड़ियां और चेन गिरवी रख दीं. इस बात ने कलाम को असली त्याग का महत्व सिखाया.
वर्ष 1955 में कलाम ने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा हासिल किया. MIT में पढ़ाई के दौरान ही कलाम ने विज्ञान और तकनीक के प्रति अपने जुनून को पहचाना. इंजीनियरिंग की पढ़ाई ने उन्हें भारत के रक्षा और अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र की ओर बढ़ा दिया. पढ़ाई के दौरान आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद, उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे.
जब कहलाए मिसाइल मैन
वर्ष 1960 में, कलाम ने रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) में एक वैज्ञानिक के रूप में अपने करियर की शुरुआत की. यहां उन्होंने हॉवरक्राफ़्ट डिज़ाइन करने में योगदान दिया. फिर वर्ष 1969 में वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) में शामिल हुए. इसरो में, उन्होंने भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान (SLV-III) के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वर्ष 1980 में, SLV-III ने रोहिणी उपग्रह को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित किया, जिसने भारत को अंतरिक्ष शक्तियों की सूची में शामिल किया.
कलाम की सबसे बड़ी उपलब्धि थी भारत के मिसाइल कार्यक्रम में उनका योगदान. वे 80 के दशक में, एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP) के प्रमुख बने. इस कार्यक्रम के तहत, भारत ने अग्नि, पृथ्वी, आकाश, त्रिशूल और नाग जैसी मिसाइलों का विकास किया. इन मिसाइलों ने भारत की रक्षा क्षमताओं को मज़बूत किया और कलाम को “मिसाइल मैन” की उपाधि दिलाई.
उनके नेतृत्व में, भारत ने वर्ष 1998 में पोखरण में सफल परमाणु परीक्षण किए. इस उपलब्धि ने भारत को वैश्विक स्तर पर एक परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित किया. कलाम की तकनीकी विशेषज्ञता और नेतृत्व ने भारत के रक्षा और अंतरिक्ष क्षेत्र में क्रांति ला दी.
जनता के राष्ट्रपति
वर्ष 2002 में, डॉ. कलाम को भारत का 11वां राष्ट्रपति चुना गया. यह सफ़र उनके लिए एक नई ज़िम्मेदारी लेकर आया. राष्ट्रपति के रूप में, उन्होंने अपनी सादगी और जनता से जुड़ाव के कारण “जनता का राष्ट्रपति” का ख़िताब हासिल किया. उनके कार्यकाल (वर्ष 2002-वर्ष2007) के दौरान, उन्होंने युवाओं को प्रेरित करने और शिक्षा को बढ़ावा देने पर विशेष ध्यान दिया.
कलाम ने “विज़न 2020” की अवधारणा प्रस्तुत की थी, जिसका उद्देश्य भारत को वर्ष 2020 तक एक विकसित राष्ट्र बनाना था. उन्होंने शिक्षा, तकनीक, और नवाचार पर ज़ोर दिया और देश के युवाओं को अपने सपनों को साकार करने के लिए प्रेरित किया. उनके भाषण और किताबें, जैसे “इग्नाइटेड माइंड्स” और “मिशन इंडिया”, आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं.
राष्ट्रपति भवन को उन्होंने जनता के लिए खोल दिया और बच्चों व युवाओं से नियमित रूप से मुलाकात की. उनकी सादगी ऐसी थी कि वे बच्चों के साथ उतनी ही सहजता से बात करते थे, जितनी कि वैश्विक नेताओं के साथ.
उपलब्धियां और विरासत
डॉ. कलाम की उपलब्धियां केवल वैज्ञानिक क्षेत्र तक सीमित नहीं थीं. उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें शामिल हैं: भारत सरकार द्वारा विज्ञान और इंजीनियरिंग में उनके योगदान के लिए-पद्म भूषण (1981); उनकी असाधारण सेवाओं के लिए-पद्म विभूषण (1990); भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान, जो उनके वैज्ञानिक और राष्ट्रीय योगदान के लिए दिया गया-भारत रत्न (1997) और अमेरिका द्वारा उनके सामाजिक योगदान के लिए-हूवर मेडल (2009).
कलाम ने कई किताबें लिखीं, जो उनकी सोच और दृष्टिकोण को दर्शाती हैं. उनकी आत्मकथा “विंग्स ऑफ़ फ़ायर” और “इग्नाइटेड माइंड्स” ने लाखों लोगों को प्रेरित किया. वे हमेशा कहते थे, “सपने वो नहीं होते जो सोते वक़्त देखे जाते हैं, सपने वो हैं जो आपको सोने न दें.”
शिलांग में 27 जुलाई 2015 को एक व्याख्यान के दौरान दिल का दौरा पड़ने से, डॉ. कलाम का निधन हो गया. उनके निधन ने पूरे देश को शोक में डुबो दिया, लेकिन उनकी शिक्षाएं और प्रेरणा आज भी जीवित हैं. वे एक वैज्ञानिक, शिक्षक, लेखक और सबसे बढ़कर एक ऐसा प्रेरणादायक व्यक्तित्व थे, जिन्होंने भारत के युवाओं को सपने देखने और उन्हें हासिल करने का साहस दिया.