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गॉन विद द विंड: फ़िल्म, जो हर लड़की को देखनी चाहिए

जयंती रंगनाथन by जयंती रंगनाथन
April 28, 2021
in ओए एंटरटेन्मेंट, ज़रूर पढ़ें, रिव्यूज़
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गॉन विद द विंड: फ़िल्म, जो हर लड़की को देखनी चाहिए
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कुछ कहानियां ऐसी होती हैं जो जिन्हें सुनते हुए आपके अंदर एक ज़िंदगी अंगड़ाई लेने लगती है. कुछ उसी तरह जैसे घर के बड़े बच्चों को रामायण, पंचतंत्र, महाभारत की कहानियां सुनाते थे, हमारी अम्मा हमें स्कारलेट ओ’हारा की दास्तां सुनाती थीं. स्कारलेट ओ’हारा मुख्य किरदार है कालजयी हॉलिवुड फ़िल्म गॉन विद द विंड की. आज हम उसी फ़िल्म की बात करेंगे.

गॉन विद द विंड उपन्यास या फ़िल्म के बारे में कुछ कहने से पहले मैं अपनी अम्मा विशालम रंगनाथन से आपका तारूफ करवाना चाहूंगी. उनको इस दुनिया से गए पच्चीस साल हो गए. वे ऐसी मां कतई नहीं थीं, जैसा अकसर हम आदर्श मांओं में पाना या देखना चाहते हैं. वे एक ममतामई, नरम दिल, दब कर रहने वालीं, अच्छा और हमेशा खाना बनाने वाली मां नहीं थीं. अम्मा का फ़लसफ़ा एकदम अलग था. एक तमिल ब्राह्मण वो भी चित्तूर जैसे गांव में स्कूल करने के बाद मद्रास में कॉलेज की पढ़ाई करने के बाद सुदूर उत्तर में भिलाई नगर में अप्पा के साथ घर बसाना उनके लिए आसान नहीं रहा होगा. अम्मा पूजा-पाठ से कोसों दूर रहती थी. किताबों के बेहद क़रीब. तमिल, मलयालम, अंग्रेज़ी और हिंदी इन सभी भाषाओं की किताबें ख़ूब पढ़तीं. हर फ़िल्म देखतीं. हर मोर्चे पर हम चारों भाई-बहनों को आगे बढ़ने और ज़िंदगी से लड़ने के लाइफ़ लेसंस देतीं. अप्पा के एक्सिडेंट और फिर उनकी डेथ के बाद जिस मुस्तैदी से उन्होंने हमें आगे के लिए तैयार किया, उस वक़्त कई बार ग़ुस्सा आया होगा उन पर, आज पलट कर देखती हूं तो लगभग रोज़ ही उन्हें बड़ा वाला सलाम करने का जी चाहता है.
तो मेहरबान, कद्रदान, अम्मा जो थीं, वो ख़ुद स्कारलेट ओ’हारा थीं. स्कारलेट ओ’हारा यानी अठारहवीं सदी के अमेरिकन सिविल वार के समय जॉर्जिया में रहने वाली एक ज़िद्दी, मुंहज़ोर, मैनिप्यूलेटिव, आत्मकेंद्रित, तिकड़मी, चालाक, दिलेर, व्यावहारिक और ख़ूब जांबाज़ लड़की.
अम्मा के कुछ ख़ास लाइफ़ लेसंस थे: शादी दुनिया का परम सत्य नहीं है. लड़कियों के लिए ज़रूरी है पढ़ाई, नौकरी और आत्मनिर्भरता. इसके बाद अपनी पसंद से शादी करो लेकिन अपना स्व मत खोओ. अपनी पसंद की ज़िंदगी जिओ. दूसरा लेसन: किचन में जो औरत बीस मिनट से ज़्यादा वक़्त बिताती है, वो किसी काम की नहीं होती. खाना पेट भरने के लिए होता है. बाक़ि का वक़्त अपने शौक़ पूरा करने और अपने आपको अपग्रेड करने के लिए करो.
इसी फ़िल्म का स्कारलेट ओ’हारा का बोला फ़ेमस डॉयलॉग अम्मा हमेशा दोहरातीं: tomorrow is another day. यानी आज का दिन अंतिम नहीं है, कल है ना.
तो गॉन विद द विंड की कहानी अम्मा की ज़ुबानी बचपन में कई-कई बार सुनी. अम्मा इतना रस ले कर सुनाती थीं कि ऐसा लगता था वो दुनिया हमारे बिल्कुल सामने है. फिर मुझे अम्मा के ही साथ यह फ़िल्म देखने का मौक़ा मिला, 1989 में मुंबई के इरोज़ थिएटर में.

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आते हैं फ़िल्म की कहानी पर. जॉर्जिया में एक कॉटन प्लांटेशन के मालिक की बेटी है स्कारलेट ओ’हारा. वह अपने गांव के ही एशले से मोहब्बत करती है. लेकिन उसका दिल यह जान कर टूट जाता है कि ऐशले अपनी कजन मेलानी, जो हर मामले में स्कारलेट से उन्नीस है से शादी करने जा रहा है. स्कारलेट जब ऐशले से अपने प्यार का इज़हार करती है, वहां आए रेट बटलर की निगाह में आ जाती है. रेट को उससे पहली नज़र में प्यार हो जाता है. ग़ुस्से में स्कारलेट मेलानी के भाई चार्ल्स से शादी कर लेती है. उस समय अमेरिका गृह युद्ध की चपेट में है. स्कारलेट का पति युद्ध में मारा जाता है.
गृह युद्ध से पूरा गांव तहस-नहस हो रहा है. स्कारलेट उस समय अपनी सूझबूझ से घरवालों को संभालती है. अम्मा के बताए कुछ दृश्य जैसे जब घर में कुछ खाने को नहीं होता, तब अपनी बंजर ज़मीन को खोद कर कुछ कंद-मूल निकालते हुए स्कारलेट घोषणा करती है कि वह ऐसा कुछ करेगी कि उसे कभी भूखा ना रहना पड़े. इसके अलावा जब स्कारलेट के पास पहनने के लिए कुछ ढंग का नहीं होता तो वह हवेली के पुराने पर्दों को निकाल कर अपनी आया की मदद से अपने लिए एक शानदार गाउन तैयार करती है. अपने घर और अपने परिवार वालों का पेट भरने के लिए वह चालाकी से अपनी बहन के पैसेवाले मंगेतर से शादी भी कर लेती है.
इन सबके बीच स्कारलेट इसी मुगालते में रहती है कि उसका पहला प्यार ऐशले ही है. वही है उसका सच्चा आशिक़ और उसके शादीशुदा होने के बावजूद उस पर डोरे डालने और उसे अपना बना लेने के आग्रह से नहीं चूकती. स्कारलेट के दूसरे पति की भी मौत हो जाती है.
एक बार फिर स्कारलेट की ज़िंदगी में रेड बटलर की एंट्री होती है. वह उससे शादी की पेशकश रखता है. कुछ समय के लिए उसकी ज़िंदगी जैसे एक हसीन ख़्वाब में तब्दील हो जाती है. उन दोनों की एक बेटी भी होती है. लेकिन बेटी घुड़सवारी करती हुई मारी जाती है. रेड और स्कारलेट के बीच तनाव आ जाता है. रेड को लगता है स्कारलेट ऐशले को भूल नहीं पाई है और उससे उबर नहीं पाई है. वह स्कारलेट को हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ कर चल देता है. दूसरी तरफ़ कुछ मोड़ों के बाद स्कारलेट को अहसास होता है कि उसने ज़िंदगी भर एक परछाई से प्यार किया. ऐशले इस काबिल था ही नहीं. उसका सच्चा प्यार तो रेड बटलर ही है. फ़िल्म का इस डॉयलॉग के साथ अंत होता है कि मैं उसके पास जाऊंगी, उसे वापस लाने. टुमारो इज़ एनदर डे.
इस कहानी के वन लाइनर पर मत जाइए. इस फ़िल्म में भव्यता है, एक-एक सीन में बारीक़ी है. ऐक्टिंग, वो तो ज़ोरदार है ही. अमेरिका के गांव, गृह युद्ध, घायल सैनिक, उस समय के समाज का दोगलापन, ग़ुलाम व्यवस्था, पैसेवालों की मानसिकता और राजनीति का इतना ख़ूबसूरत और बारीक़ वर्णन कम ही देखने को मिलता है. मुझे कुछ दृश्य आज भी याद हैं, स्कारलेट और रेड बटलर की पहली मुलाक़ात, स्कारलेट का अपने जर्जर घर तारा में वापसी, सड़क पर युद्ध में घायल सैनिकों का रोता-चिल्लाता काफ़िला, यह सब लार्जर देन लाइफ़ है.

फ़िल्म गॉन विद द विंड से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें
Gone with the wind मार्गरेट मिशेल का फे़मस उपन्यास है, फ़िल्म इसी उपन्यास पर आधारित है. उपन्यास अपनी जगह है और फ़िल्म अपनी जगह. 15 दिसंबर 1939 को रिलीज़ इस फ़िल्म के निर्देशक थे विक्टर फ़्लेमिंग. इस फ़िल्म के लिए सही कास्टिंग करने में प्रोड्यूसर को काफ़ी वक़्त लग गया. माना जाता है कि लगभग पैंतीस हज़ार लड़कियों का स्क्रीन टेस्ट करने के बाद विवियन लीग को स्कारलेट ओ’हारा के रोल के लिए चुना गया. इस फ़िल्म में हीरो यानी रेट बटलर की भूमिका में क्लार्क गेबल को साइन करने के लिए विक्टर को दो साल तक इंतज़ार करना पड़ा. एक तो वे उस समय के फे़मस हीरो थे दूसरे वे एमजीएम के साथ अनुबंध में थे. ख़ैर उस समय फ़िल्म की जितनी कॉस्टिंग थी उसकी आधी रकम क्लार्क गेबल को साइन करने में चली गई. इस फ़िल्म को वैसे ही दस अकादमी अवार्ड नहीं मिले थे. अपने समय की और आज भी यह फ़िल्म क्लासिक स्टेटस रखती है.
इसके बाद मैंने यह उपन्यास भी पढ़ा. मेरे जहन में विवियन की छवि कौंध गई. हीरोइन विवियन लीग इस नॉवेल की इतनी बड़ी फ़ैन थीं कि पूरी शूटिंग के दौरान वह अपने हाथ में नॉवेल ले कर घूमती थीं और अगर निर्देशक नॉवेल से अलग कुछ करने को कहते तो वह बिदक जातीं. उपन्यास तो बेहतरीन है ही. पढ़ते समय ऐसा लगता है एक बार फिर से आप फ़िल्म देख रहे हों.

बात मैंने अम्मा से शुरू की थी, तो ख़त्म भी उन्हीं से करूंगी. मैंने अम्मा से कई बार पूछा था कि उन्हें स्कारलेट का किरदार इतना क्यों लुभाता है? उसे ‘अच्छी लड़की’ तो नहीं कहा जा सकता. अम्मा हर बार लगभग एक ही जवाब देती, लड़कियों को अच्छा बनने के बजाय प्रैक्टिकल होने की ज़रूरत है. उनमें व्यावहारिक ज्ञान (अम्मा का पसंदीदा जुमला) होना चाहिए. परिस्थितियों के हिसाब से ढलने की कूवत होनी चाहिए.
पता नहीं हम बहनें कितनी स्कारलेट ओ’हारा बन पाईं? अम्मा ने समय से पहले हम सबको एक तरह से एक बड़े युद्ध में लड़ना सिखा दिया. हमारे सामने चुनौती खड़ी कर दी. इस बात के लिए, दिमाग़ के कई ऊलजुलूल जाले साफ़ करने के लिए और स्कारलेट ओ’हारा से परिचय करवाने के लिए मैं हमेशा उनकी शुक्रगुज़ार रहूंगी.
यह फ़िल्म 1971, 1974 और फ़िल्म के पचासवें सालगिरह पर 1989 में री रिलीज़ हुई, एकदम नए साउंड ट्रैक और वीडियो ट्रैक के साथ. यह फ़िल्म पहली कलर फ़िल्म थी, और बाद में बस इसके कलर को रीटच किया गया.

क्यों देखें: क्लासिक फ़िल्म है भई, नहीं देखा है तो बिल्कुल मिस ना करें.

कहां देखें: अमेज़ॉन प्राइम पर

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जयंती रंगनाथन

जयंती रंगनाथन

वरिष्ठ पत्रकार जयंती रंगनाथन ने धर्मयुग, सोनी एंटरटेन्मेंट टेलीविज़न, वनिता और अमर उजाला जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में काम किया है. पिछले दस वर्षों से वे दैनिक हिंदुस्तान में एग्ज़ेक्यूटिव एडिटर हैं. उनके पांच उपन्यास और तीन कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. देश का पहला फ़ेसबुक उपन्यास भी उनकी संकल्पना थी और यह उनके संपादन में छपा. बच्चों पर लिखी उनकी 100 से अधिक कहानियां रेडियो, टीवी, पत्रिकाओं और ऑडियोबुक के रूप में प्रकाशित-प्रसारित हो चुकी हैं.

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