चीज़ें बदल रही हैं या कहें बहुत-सी चीज़ें पूरी तरह बदल चुकी हैं. परिवार, संस्कार और त्यौहार सबकुछ आधुनिक हो...
रबिन्द्रनाथ टैगोर की यह लघुकथा लौकिक और अलौकिक सुख और इच्छाओं की बड़े ही संक्षेप में क्या अद्भुत व्याख्या करती...
जब हम किसी को गाजर-मूली कहते हैं तो एक तरह से हम उसे नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं. वैसे...
क्या आप जो ख़रीद रहे हैं, जो बनना चाह रहे हैं, वह आपका अपना निर्धारित लक्ष्य है? या किसी चालक...
‘भारत में दलित, भारत के दलित’ श्रृंखला की पिछली कड़ी मेंआपने पढ़ा, दलितों के ख़िलाफ़ बढ़ रहे अत्याचारों की कड़ी...
जो बातें ज़ुबां नहीं कहती, वो आंखें कह जाती है. और जब हमारी आंखों का पानी मर जाता है तो...
‘भारत में दलित, भारत के दलित’ श्रृंखला की पिछली कड़ी में सामाजिक चिंतक, लेखक और दयाल सिंह कॉलेज, करनाल के...
संवेदनाएं किसी पहचान से ज़्यादा तीव्र और सार्वभौमिक होती हैं. हम भले ही किसी को न जानते हों, पर उसे...
काला जल जैसे हिंदी के कालजयी उपन्यास के लेखक गुलशेर ख़ां शानी की कहानियां भी समाज के विरोधाभासों और विडंबनाओं...
औरतों का आत्मनिर्भर होना एक बड़े वर्ग को बर्दाश्त नहीं होता. अपने दम पर नाम बना रही औरतों को बदनाम...
हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.
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