क्या होता है पानी होना? क्या है पानी का हमारे जीवन में महत्व? पानी, प्रकृति और इंसान के आपसी संबंध को समझाती आलोक धन्वा की कविता ‘पानी’.
आदमी तो आदमी 
मैं तो पानी के बारे में भी सोचता था 
कि पानी को भारत में बसना सिखाऊंगा
सोचता था 
पानी होगा आसान 
पूरब जैसा 
पुआल के टोप जैसा 
मोम की रोशनी जैसा
गोधूलि में उस पार तक 
मुश्क़िल से दिखाई देगा 
और एक ऐसे देश में भटकाएगा 
जिसे अभी नक़्शे में आना है
ऊंचाई पर जाकर फूल रही लतर 
जैसे उठती रही हवा में नामालूम गुंबद तक 
यह मिट्टी के घड़े में भरा रहेगा 
जब भी मुझे प्यास लगेगी
शरद में हो जाएगा और भी पतला 
साफ़ और धीमा 
किनारे पर उगे पेड़ की छाया में
सोचता था 
यह सिर्फ़ शरीर के ही काम नहीं आएगा 
जो रात हमने नाव पर जगकर गुज़ारी 
क्या उस रात पानी 
सिर्फ़ शरीर तक आकर लौटता रहा?
क्या-क्या बसाया हमने 
जब से लिखना शुरू किया?
उजड़ते हुए बार-बार 
उजड़ने के बारे में लिखते हुए 
पता नहीं वाणी का 
कितना नुक़सान किया
पानी सिर्फ़ वही नहीं करता 
जैसा उससे करने के लिए कहा जाता है 
महज़ एक पौधे को सींचते हुए पानी 
उसकी ज़रा-सी ज़मीन के भीतर भी 
किस तरह जाता है
क्या स्त्रियों की आवाज़ों में बच रही हैं 
पानी की आवाज़ें 
और दूसरी सब आवाज़ें कैसी हैं?
दु:खी और टूटे हुए हृदय में 
सिर्फ़ पानी की रात है 
वहीं है आशा और वहीं है 
दुनिया में फिर से लौट आने की अकेली राह
कवि: आलोक धन्वा
कविता संग्रह: दुनिया रोज़ बनती है 
प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन
Illustration: Pinterest
 
			







