पेड़ बबूलों के: कुंवर बेचैन की कविता
हम जीवन की आपाधापी में इतने उलझे होते हैं कि उम्र कब बीत जाती है, पता ही नहीं चलता. कुंवर ...
हम जीवन की आपाधापी में इतने उलझे होते हैं कि उम्र कब बीत जाती है, पता ही नहीं चलता. कुंवर ...
वैज्ञानिक दृष्टिकोण और फ़िलॉसफ़ी में गहरा नाता है. पेशे से इंजीनियर रहे नरेश सक्सेना की कविता ‘पानी क्या कर रहा ...
स्त्रियों का लिखा उनका स्वयं का भोगा गया दुख होता है. क्यों उनकी लिखी पंक्तियों को सीरियसली लेना चाहिए, बता ...
उर्दू शायरियां न केवल शब्दों की ख़ूबसूरती और अपनी तहजीब के लिए जानी जाती हैं, पर उनमें छोटी-छोटी सलाहतें भी ...
जहां विडंबना है, विरोधाभास है, वहां कविता है. कृषि प्रधान देश भारत में कृषकों की हालत को बयां करती अरुण ...
मोहब्बत की शायरियों में मिठास के साथ, एक चुटीलापन दिवंगत शायर जॉन एलिया की पहचान थी. प्रेमिका की शहर वापसी ...
आपातकाल के विरोध में लिखी रामधारी सिंह दिनकर की कविता ‘सिंहासन ख़ाली करो कि जनता आती है’ बेहद चर्चित रही ...
सरकार कोई भी हो, भले ही उसके जनता के हित के कितने ही वादे क्यों न किए हों, एक समय ...
वरिष्ठ साहित्यकार अरुण कमल की कविता ‘धार’ मेहनतकश वर्ग की ज़िंदगी की कहानी कहती है. साथ ही कवि यह भी ...
अपने अंदर आए बदलावों का दोष दूसरों पर मढ़नेवालों को आईना दिखाती है, कुंवर बेचैन की कविता ‘लोहे ने कब ...
हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.
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