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सेक्स-वर्कर्स, ट्रांस्जेंडर्स का काम सोशल डिस्टेंसिंग के उलट है अत: उनकी मदद हमारी प्राथमिकता रही: संजय नागर

शिल्पा शर्मा by शिल्पा शर्मा
May 16, 2021
in ओए हीरो, ज़रूर पढ़ें, मुलाक़ात
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सेक्स-वर्कर्स, ट्रांस्जेंडर्स का काम सोशल डिस्टेंसिंग के उलट है अत: उनकी मदद हमारी प्राथमिकता रही: संजय नागर
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संजय नागर यूं तो चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं, पर अपनी नौकरी छोड़कर उन्होंने मध्य प्रदेश के पेंच टाइगर रिज़र्व के पास कोहका गांव में अपने एनजीओ कोहका फ़ाउंडेशन की स्थापना की, जिसके ज़रिए वे पेंच के मध्य प्रदेश वाले भाग के गांवों में ग्रामीण बच्चों की शिक्षा को बेहतर और रोज़गारोन्मुख बनाने के काम में वर्ष 2010 से लगे हुए हैं. यहां कोहका वाइल्डरनेस कैम्प के नाम से उनका रिज़ॉर्ट भी है. पहले लॉकडाउन के समय, जब वे मुंबई आए तो उन्होंने यहां की सेक्स-वर्कर्स और ट्रांस्जेंर्ड्स की मदद के लिए क़दम उठाए और उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने के कई व्यावहारिक प्रयास भी किए. स्व-स्फूर्त कोरोना योद्धा सीरीज़ में आज हम उनसे मुलाक़ात करेंगे.

संजय, कोहका फ़ाउंडेशन के ज़रिए कोशिश कर रहे हैं कि ग्रामीण इलाक़ों के बच्चे पढ़ाई बीच में ही छोड़ न दें, बल्कि ग्रैजुएशन तक की पढ़ाई पूरी करें. जो बच्चे पढ़ाई में दिलचस्पी ले रहे हैं, उन्हें लैपटॉप देना, निजी ट्यूशन उपलब्ध करवाना, प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयार करना ये सभी बातें उनके फ़ाउंडेशन के ज़रिए सुनिश्चित की जाती हैं. संजय का परिवार मुंबई में रहता है. कोरोनाकाल के पहले लॉकडाउन से ठीक पहले उन्हें किसी मीटिंग में दिल्ली जाना था. उन्होंने सोचा मुंबई होते हुए दिल्ली जाएं और वे मुंबई आ गए, पर अगले दिन से ही लॉकडाउन की घोषणा हो गई तो उन्हें यहीं रुकना पड़ा. और यहां भी उन्होंने अपने फ़ाउंडेशन के ज़रिए एक ऐसे तबके की मदद का बीड़ा उठाया जो सबसे अधिक उपेक्षित रहता है- सेक्स-वर्कर्स और ट्रांस्जेंडर्स.

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क्या कुछ हुआ पहले लॉकडाउन के बाद? कैसे आपने सेक्स-वर्कस और ट्रांस्जेंडर्स की मदद के बारे में सोचा?
पहले लॉकडाउन के तीन दिन बाद कोहका फ़ाउंडेशन के मेरे सहकर्मियों ने मुझे फ़ोन किया और कहा कि लॉकडाउन के कारण पेंच में दिहाड़ी काम करने वाले मज़दूर बसों, ट्रकों में भर-भरकर आ रहे हैं. कई लोग पैदल आ रहे हैं. पेंच, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश की सीमा पर है. तो मैंने सोचा कि इन्हें कैसे राहत दी जाए? सबसे पहले यही दिमाग़ में आया कि इन्हें खाना देना ज़रूरी है. मैंने उनसे कहा कि सुबह-शाम कम से कम 15000 लोगों का खाना बनवाओ और बांटो उन्हें. हमारे पांच-छह लड़के इसी काम में लग गए. रोटी-सब्ज़ी, खिचड़ी बनाते और मज़दूरों को बांटते, पानी देते. शुरुआत में मैंने अपनी संस्था के ज़रिए यह काम अकेले ही किया, लेकिन फिर इस ओर सरकार का ध्यान गया तो उन्होंने अनाज देना शुरू किया. यह पूरा काम कम से कम 15 दिनों तक लगातार चलता रहा. इसके बाद हमने ग़रीब लोगों को राशन वितरण करने का काम किया. अब तक हम लगभग 3000 लोगों को राशन मुहैय्या करा चुके हैं.
इधर मुंबई में मुझे मेरे एक मित्र का फ़ोन आया तो उन्होंने मुझसे कहा कि यहां जो सेक्स-वर्कर्स और ट्रांस्जेंडर्स हैं, वे लॉकडाउन से परेशान हैं. इनका तो काम ही सोशल डिस्टेंसिंग के एकदम उलट है. काफ़ी महिलाएं तो अपने घर लौट गई हैं, लेकिन बहुत-सी अब भी यहीं हैं. और वे बहुत तकलीफ़ में हैं. तो मैंने कहा-चलो उनसे मिलकर पता करते हैं. फिर हम घाटकोपर गए. वहां स्टेशन के पास ही एक रेड लाइट एरिया है. वहां क़रीब 150 परिवार रहते हैं. इसके अलावा वहां ट्रांस्जेंडर्स भी काफ़ी संख्या में रहते हैं. वहां सलमा ख़ान नामक महिला हैं, जिनका ख़ुद का एनजीओ है-किन्नर महाट्रस्ट. मैं उनसे मिला. तो बात हुई कि फौरी राहत के लिए क्या किया जाए. हमने क्राउड फ़ंडिंग के ज़रिए, अपने दोस्तों, रिश्तेदारों के ज़रिए फंड इकट्ठा किया और उन सभी परिवारों को महीनेभर का राशन दिया. किन्नर महाट्रस्ट को भी उतना ही सामान दिया. इसके अलावा हमने हॉस्पिटल्स में, पुलिस थानों में, श्मशानों में काम करने वाले लोगों के लिए पीपीई किट, ग्लव्स, सैनिटाइज़र, ऑक्सिमीटर बांटे.

आप लोगों हाइजीन किट भी बांटे, कैंडल मेकिंग और ब्लॉक प्रिंटिंग सिखाने का काम भी किया उसके बारे में बताएं?
जब लॉकडाउन थोड़ा शिथिल होने लगा तो हमने सोचा कि चूंकि कोविड में साफ़-सफ़ाई और स्वच्छता का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है अत: गांवों के निवासियों के लिए हाइजीन पर एक प्रोग्राम करके उन्हें एजुकेट करते हैं. इसके लिए हमने एक हाइजीन किट बनाया, जिसमें सैनिटरी पैड्स, हैंड वॉश, नहाने का साबुन था. हमने ऐसे एक लाख किट पेंच और उसके आसपास के गांवों में बांटे. हमने ये किट कामाठीपुरा, ग्रांट रोड, घाटकोपर के सेक्स-वर्कर्स को भी बांटे. हमने हाइजीन पर प्रोग्राम रखा और एक डॉक्टर को भी घाटकोपर ले गए, ताकि वे स्वच्छता के बारे में वहां के लोगों को जागरूक कर सकें.
जो फौरी ज़रूरतें थीं, अब तक हमने उनपर काम कर लिया था. पर सेक्स-वर्कर्स की आजीविका की समस्या तो थी ही. दीपावली आने से तीन महीने पहले हमने घाटकोपर की सेक्स-वर्कर्स को कैंडल मेंकिंग का काम सिखाया. उन्होंने कैंडल्स बनाए और उन्हें बेचने पर हुआ प्रॉफ़िट हमने उन्हीं के बीच बांट दिया. इस प्रोजेक्ट में 10 सेक्स-वर्कर्स ने काम किया और उन्होंने एक लाख कैंडल बनाए. हमने उन्हें बेचा और हमें लगभग 40000 रुपए का लाभ हुआ, जो हमने उन 10 महिलाओं में बांट दिया. तीन महीने, जब तक उन्होंने यह काम किया, हमने उन्हें थोड़ा स्टाइपंड भी दिया.
चूंकि इस काम में केवल 10 ही महिलाएं शामिल हो सकीं तो हमने और महिलाओं का मौक़े देने के लिए उन्हें ब्लॉक प्रिंटिंग सिखाने का मन बनाया. हमने ब्लॉक प्रिंटिंग सिखाने वाले शिक्षक का बंदोबस्त किया और ऐसी महिलाओं को इकट्ठा किया, जिन्हें ब्लॉक प्रिंटिंग में दिलचस्पी है. उन्हें ब्लॉक प्रिंटिंग सिखाई जा रही है. अभी हमारे पास ब्लॉक प्रिंटिंग की दो टेबल हैं. यदि तैयार किए गए कपड़ों को बाज़ार मिलता है तो हम इस प्रोजेक्ट को बढ़ाने में देर नहीं करेंगे. क्योंकि इन सभी स्टार्टअप्स को अपने पैरों पर खड़ा होना होगा, ताकि इससे इन लोगों को रोज़गार मिल सके, तभी इनका विस्तार करना व्यावहारिक होगा.

क्या आपने इस बीच और भी लोगों की मदद की? और सेक्स-वर्कर्स को कम्प्यूटर सिखाने की सोच ने कैसे आकार लिया?
इसी दौरान जोगेश्वरी पूर्व के एक ब्लाइंड स्कूल से भी यह रिक्वेस्ट आ रही थी कि बच्चे कम्प्यूटर सीखना चाहते हैं, न तो उन्हें कोई टीचर मिल पाता है और ना ही कम्प्यूटर हैं. हमने फंड इकट्ठा कर के वहां 10 डेस्कटॉप लगवाए और एक कम्प्यूटर टीचर का इंतज़ाम किया. आज वहां 50 बच्चे नि:शुल्क पढ़ रहे हैं. हम केवल बेसिक ही नहीं, बल्कि उन्हें ऐड्वांस कोर्स भी करवा रहे हैं, जैसे- एक्सेल, पावर पॉइंट, सी++ वगैरह.
इसके बाद हमने कामाठीपुरा में भी एक कम्प्यूटर सेंटर डाला, जहां हमारे पास पांच डेस्कटॉप हैं. जिन सेक्स-वर्कर्स को बेसिक कम्प्यूटर सीखने में दिलचस्पी है, उन्हें वह सिखाया जा रहा है. इन महिलाओं के अलावा इनके बच्चों के लिए भी यहां कम्प्यूटर क्लासेस चल रही हैं. यह सब उनके लिए नि:शुल्क ही है. इस तरह उनकी समस्याओं का निदान करते हुए काम बढ़ता गया. हालांकि मदद की रिक्वेस्ट तो बहुत जगहों से आ रही थी, लेकिन हमारे पास फ़ंड सीमित है अत: हमें प्राथमिकताएं तय करनी थीं तो हमने सेक्स-वर्कर्स और ट्रांस्जेंडर्स को ही चुना.

क्या हालात बेहतर हुए हैं? क्या आपके प्रयासों से सेक्स-वर्कर्स को नौकरी पर भी रखा गया है?
सेकेंड लॉकडाउन हुआ तो हम कमोबेश उसी जगह आ खड़े हुए हैं, जहां पहले लॉकडाउन के समय थे. बस, बेहतर इसी लिहाज़ से है कि पिछली बार की तरह मज़दूरों का पलायन पैदल चलते हुए नहीं हो रहा, क्योंकि इस बार ट्रेनें बंद नहीं की गई हैं, ट्रांस्पोर्ट बंद नहीं हुआ. लेकिन सेक्स-वर्कर्स और ट्रांस्जेंडर्स के लिए सेकेंड लॉकडाउन बहुत बड़ा झटका है, क्योंकि जैसा कि मैं कह चुका हूं, इनका काम सोशल डिस्टेंसिंग के विपरीत है. इसलिए कुछ दिन पहले हमने फिर से घाटकोपर, कामाठीपुरा, ग्रांट रोड के रेड लाइट क्षेत्र में राशन बांटा है. ट्रांस्जेंडर्स को राशन बांटा. हम चाहते हैं कि कम से कम 1000 ऐसे परिवारों की मदद कर पाएं, जो कोविड के चलते सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं.
हमने मुंबई की एक सैनेटाइज़िंग कंपनी, जो बड़े इवेंट्स में सैनेटाइज़िंग और सिक्योरिटी का कॉन्ट्रैक्ट लेते हैं, से बात की कि आप सेक्स-वर्कर्स और ट्रांस्जेंडर्स को काम क्यों नहीं देते? यदि आप ऐसा करेंगे तो वे लोग सम्मानजनक काम कर सकेंगे. और हमें इस बात की ख़ुशी है कि हमने चार महिलाओं को वहां काम दिलवाने में सफलता प्राप्त की. अब वे प्रतिमाह 20000 रुपए तक वेतन कमा रही हैं. कंपनी ने उन्हें तीन-चार दिन की ट्रेनिंग देकर काम करना सिखाया और फिर नौकरी दी. हम चाहते थो ये थे कि ट्रांस्जेंडर्स भी वहां काम कर सकें, लेकिन समाज में उन्हें लेकर आज भी उतनी स्वीकार्यता नहीं है. कंपनी की अपनी सीमाएं हैं. यह क्लाइंट बेस कंपनी है. वे वही कर सकेंगे, जो क्लाइंट चाहेगा. फिर भी हमने उनसे कहा है कि एक बार ट्रांस्जेंडर्स को भी मौक़ा देकर देखिए और हम आशान्वित हैं कि उन्हें भी काम मिलेगा. 

Tags: आजीविकाइंटरव्यूएजुकेशनकम्प्यूटर की शिक्षाकम्प्यूटर ट्रेनिंगकैंडल मेकिंगकोविडखानाग्रामीण बच्चों की शिक्षाट्रांस्जेंडर्सदृष्टिहीन बच्चेनौकरीपानीफौरी ज़रूरतब्लॉक प्रिंटिंगभोजनमुलाक़ातमोमबत्ती बनानाराशनरिज़ॉर्टलैपटॉपलॉकडाउनशिक्षासेक्स-वर्कर्ससैनिटाइज़िंग कंपनीस्व-स्फूर्त कोरोना योद्धाहाइजीनहाइजीन किटहीरोहोटल
शिल्पा शर्मा

शिल्पा शर्मा

पत्रकारिता का लंबा, सघन अनुभव, जिसमें से अधिकांशत: महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर कामकाज. उनके खाते में कविताओं से जुड़े पुरस्कार और कहानियों से जुड़ी पहचान भी शामिल है. ओए अफ़लातून की नींव का रखा जाना उनके विज्ञान में पोस्ट ग्रैजुएशन, पत्रकारिता के अनुभव, दोस्तों के साथ और संवेदनशील मन का अमैल्गमेशन है.

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