हिंदुस्तान अपनी आज़ादी की 75वीं सालगिरह मना रहा है. पर उम्मीदों से भरे इस देश में बहुत-सी चीज़ें हैं, जिन्हें देखकर भी अनदेखा किया जाता है. आज़ादी की 60वीं सालगिरह पर लिखी गुलज़ार साहब की यह कविता आज भी उतनी ही सटीक है. हमें एक ही देश में दो दुनिया देखने मिलती है.
हिंदुस्तान में दो दो हिंदुस्तान दिखाई देते हैं
एक है जिसका सर नवें बादल में है
दूसरा जिसका सर अभी दलदल में है
एक है जो सतरंगी थाम के उठता है
दूसरा पैर उठाता है तो रुकता है
फिरका-परस्ती तौहम परस्ती और ग़रीबी रेखा
एक है दौड़ लगाने को तैयार खड़ा है
‘अग्नि’ पर रख पर पांव उड़ जाने को तैयार खड़ा है
हिंदुस्तान उम्मीद से है!
आधी सदी तक उठ उठ कर हमने आकाश को पोंछा है
सूरज से गिरती गर्द को छान के धूप चुनी है
साठ साल आजादी के… हिंदुस्तान अपने इतिहास के मोड़ पर है
अगला मोड़ और ‘मार्स’ पर पांव रखा होगा…!!
हिन्दोस्तान उम्मीद से है…
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