मुंबई के इतिहास (या वर्तमान) से अगर अंडरवर्ल्ड, स्मगलर और रॉबिन हुड मार्का ग़रीबों की मदद करने वाले गैंगस्टर से निकाल दिया जाए तो इस मायानगरी की कहानी फुस्स हो जाएगी. स्मगलर चाहे वो हाजी मस्तान, करीम लाला, वरदराजन मुदलियार कुछ ऐसे नाम हैं, जो मुंबई के क्राइम जगत में बड़ा नाम रहे हैं और इनके ऊपर फ़िल्में भी बनी हैं. आज मैं बात करने जा रही हूं वरदराजन मुदलियार की ज़िंदगी पर बनी तमिल फ़िल्म नायगन की.
बात है 1987 की. मैं अपनी अम्मा के साथ मुंबई में एंटॉप हिल में एक किराए के फ़्लैट में रहती थी. उस पूरे इलाक़े में ख़ासकर सायन कोलीवाड़ा में बड़ी संख्या में तमिलियंस रहते थे. वहां का पूरा इलाक़ा एक वक़्त में वरदराजन मुदलियार का रसूक चलता था. उसके नाम की रॉबिनहुड टाइप कहानियां सुनी जाती थीं. कैसे उसने स्मगलिंग से पैसे कमाए और ग़रीब साउथ इंडियंस को काम पर लगाया या ज़रूरत के वक़्त पैसे दिए.
मणि रत्नम का बतौर निर्देशक तब उतना नाम नहीं हुआ था. कमल हासन ज़रूर बड़ा नाम था. उस साल 21 अक्तूबर को रिलीज हुई थी नायगन (नायकन को तमिल में ऐसे ही प्रनाउंस किया जाता है) यानी नायक, यानी हीरो.
अब आते हैं कहानी पर. शक्तिवेल एक यूनियन लीडर का बेटा है. पुलिस से झड़प में बाप मारा जाता है. शक्ति उस पुलिस वाले को मार कर मुंबई आ जाता है. मुंबई में एक दयालु स्मगलर उस बच्चे को पनाह देता है. बच्चा बड़ा होकर हुसैन का काम संभालने लगता है. भ्रष्ट पुलिस इंस्पेक्टर केलकर हुसैन को जेल में बंद कर देता है और मार डालता है. वेलु केलकर को मार डालता है. वह केलकर की पत्नी और मानसिक रूप से कमज़ोर बेटे अजीत की देखभाल करने लगता है. केलकर की बीवी को अपने पति के ग़लत कारनामों का पता है, वह भी वेलु का ही साथ देती है.
वेलु का दोस्त उसके साथ हमेशा चट्टान की तरह खड़ा रहता है. वेलु की मुलाकात वेश्यालय में नीला से होती है, वह आगे पढ़ना चाहती है पर पैसे कमाने की मजबूरी है इसलिए वेश्या बन गई है. वेलु नीला से शादी कर लेता है. वह मुंबई का सबसे नामी स्मगलर बन गया है. उसके फ़ॉलोअर्स बढ़ रहे हैं. वेलु के दोनों बच्चे चैन्नई से पढ़ कर वापस लौट आए हैं. बेटा उसके काम में हाथ बंटाता है. बेटी को उसके काम से नफ़रत है और मां और भाई की मौत के बाद पिता को छोड़ कर चली जाती है.
मुंबई में आया नया असिस्टेंट कमिश्नर पाटिल किसी भी सूरत में वेलु को गिरफ्तार करना चाहता है. वेलु को पता चलता है कि उसकी बेटी चारुमति ने पाटिल से शादी की है और उनका एक बेटा भी है.
वेलु अपनी बेटी के कहने पर सरेंडर करता है. पर पाटिल कोर्ट में उसके विरोध में कोई भी अपराध सिद्ध नहीं कर पाता. पाटिल केलकर की पत्नी के पास जा कर उसे कोर्ट में बयान देने को कहता है, आख़िर वेलु ने ही उसके पति को मारा था. पर वह इंकार कर देती है. अजीत को जब यह बात पता चलती है, वह बिखर जाता है. अपने पापा का यूनिफ़ॉर्म और पिस्तौल लेकर वह कोर्ट के बाहर पहुंचता है, जहां से वेलु रिहा हो कर बाहर निकलने वाला है. हज़ारों की भीड़ वेलु का स्वागत करने खड़ी है. बाहर निकलते ही वेलु का नन्हा नाती उससे सवाल करता है: ताता, नींग नल्लवरा या कट्टवरा? (नाना, आप अच्छे आदमी हो या बुरे आदमी?)
इसके जवाब में वेलु बस इतना भर कह पाता है: थिरयले पा…(पता नहीं बच्चे…)
अजीत पिस्तौल चलाता है और वेलु वहीं मारा जाता है.
वरदराजन को भी फ़िल्म का यही अंत चाहिए था…
फ़िल्म की शुरुआत में एक बेहद मार्मिक सा गाना बजता है: तेन पांडिचीमयले… आर अड़चालो…अंत भी इसी गाने से होता है… एक सफ़र ख़त्म हुआ. आप वेलु को अच्छा कहें या बुरा उसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता.
इस फ़िल्म में बेटी जब उससे बुरा काम छोड़ने को कहती है, तो वेलु दीवार फ़िल्म की तर्ज पर उससे सवाल पूछता है: पहले उस आदमी को गिरफ़्तार करो जिसने मेरे बाप को मारा, उस आदमी को ले कर आओ जिसने हुसैन को मारा, तुम्हारी मां को मारा… अगर वे आएंगे तो मैं भी आऊंगा. फांसी पर झूल जाऊंगा.
नायगन में मुंबई की अंधेरी दुनिया, ग़रीब गुरबों की ज़िंदगी, चीथड़ों से झांकती रौशनी और पेट की ख़ातिर महानगर में अपनी तरह की कोशिशों का बेमिसाल चित्रण है. होली का दृश्य भी है. रोमांस और प्रणय भी. मुजरा भी.
इस फ़िल्म में पहले नायिका या गाने की गुंजाइश नहीं थी. प्रोड्यूसर के कहने पर मणि ने वेश्या, वेलु की शादी, गाना और डांस ऐड किया. ईलयराजा का संगीत ताज़गीभरा है, कहीं से फ़िल्म पर भारी नहीं पड़ता. इस फ़िल्म में एक गाना कमल हासन ने भी गया है.
मैंने यह फ़िल्म अम्मा और रजनी के साथ सायन में इरोज़ थियेटर में देखी थी. वहां बारह बजे के शो में तमिल फ़िल्में लगती थी. मैंने सोचा नहीं था, मैं एक ऐसी फ़िल्म देखने जा रही हूं जो आने वाले सालों में मुझे फ़िल्म देखने ख़ासकर अच्छी फ़िल्म देखने की तमीज सिखाएगा. मैं अभिभूत थी कमल हासन की ऐक्टिंग से, कहानी के उतार-चढ़ावों से और कैमरे के कमाल से. उस दिन मैं नए निर्देशक मणि रत्नम की भी फ़ैन हो गई, जिन्होंने आने वाले समय में हमें रोजा, बंबई, अलय पायुदे, दिल से, युवा, गुरू, कन्नथई मुत्थमविट्टय, ओ कादल कनमनि, कात्रु विलयदई जैसी अप्रतिम फ़िल्में दीं.
नायगन इसके अगले साल ही हिंदी में बनी दयावान के नाम से. फ़िल्म में विनोद खन्ना ने कमल हासन का रोल किया और हीरोइन थी माधुरी दीक्षित. कमल के दोस्त का किरदार निभाया फ़िरोज ख़ान ने. मैंने वो फ़िल्म भी देखी थी. पर आधे घंटे से ज़्यादा बर्दाश्त नहीं कर पाई.
तमिल नायगन को ही 1989 में वेलु नायकन के नाम से डब करके लाया गया. अगर आप तमिल फ़िल्म नहीं देखना चाहते तो मूल का डब्ड वर्ज़न देखिए. दयावान क़तई नहीं.
फ़िल्म नायगन से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें
इस फ़िल्म के बनने की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं. फ़िल्म के निर्माता मुक्ता श्रीनिवासन मणि रत्नम के साथ एक फ़िल्म बनाना चाहते थे. अस्सी के दशक की शुरुआत में उन्होंने शिवाजी गणेशन और कमल हासन से बात करके तमिल में हॉलीवुड की फ़िल्म गॉड फ़ादर का रीमेक बनाने को कहा. कमल हासन के सहयोगियों ने उन्हें हिदायत दी कि जिस फ़िल्म में शिवाजी होंगे, वहां उनके करने के लिए कुछ नहीं होगा. कमल इस प्रोजेक्ट से पीछे हट गए, पर उन्होंने श्रीनिवासन को मणि रत्नम के बारे में बताया, जिनकी फ़िल्म पल्लवी अनु पल्लवी में वे काम कर चुके थे. श्रीनिवासन ने रत्नम को अपने घर बुलाया और सत्तर में रिलीज़ हुई हिंदी फ़िल्म पगला कहीं का कैसेट थमाया और तमिल में बनाने को कहा. अगले ही दिन मणि रत्नम उनके पास लौटे और कैसेट फेंक कर बोले कि इस फ़िल्म में रीमेक जैसा कुछ नहीं है. उस समय मणि के पास वरदराजन मुदलियार की कहानी पर फ़िल्म बनाने का आयडिया था. श्रीनिवासन को आयडिया जम गया और उन्होंने तुरंत गॉड फ़ादर के भी कुछ अंश डालने को कहा. बाद में इस मुद्दे पर कमल हासन ने उनके विरोध में काफ़ी कुछ कहा. पर तब तक नायगन हिट हो चुकी थी और विवादों से कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ना था.
मणि रत्नम और कमल हासन दोनों ही अपने-अपने क्षेत्र के दिग्गज. मैं कमल हासन को इस समय देश का सबसे बड़ा कलाकार मानती हूं. इसमें हिंदी भी शामिल है. जहां दूसरे कलाकार, तमिल के ही तलइवा सुपर स्टार रजनीकांत सहित हर भूमिका में अपने स्व से आगे नहीं बढ़ पाते, कमल हासन किरदार के इतना अंदर घुसते हैं कि उन्हें आप आसानी से किरदार से अलग कर लेते हैं. पुष्पक, सागर, इंडियन, माइकल मदन काम राज, सती लीलावती, तेनाली, हे राम, पंचतंतिरम, अंबै शिवम, दशावतारम, किस फ़िल्म का नाम लूं और किसे छोड़ूं?
इस फ़िल्म को बनाते समय मणि और कमल वरदाराजन से मिलने गए थे. वरदराजन ख़ुद भी कमल के फ़ैन थे. उनसे मणि ने पूछा कि फ़िल्म का अंत वे कैसे देखना चाहेंगे? वरदराजन ने कहा: वेलू को मरना होगा. पुलिस के हाथों नहीं, किसी अपने के हाथों.
उनकी बात पर ग़ौर करने के बाद मणि ने फ़िल्म का क्लाइमेक्स तैयार किया. इस फ़िल्म को उस साल का बेस्ट नैशनल फ़िल्म का अवॉर्ड मिला. यह फ़िल्म टाइम मैगज़ीन के 100 बेस्ट फ़िल्म्स ऑफ़ ऑल टाइम में भी शामिल हुई.
क्यों देखें: एक बेहद अच्छी, क्लासिकल फ़िल्म देखने से क्यों वंचित रहना?
कहां देखें: एमएक्स प्लेयर, यू ट्यूब, अमेज़ॉन प्राइम पर.