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पठान, पठान-विवाद और समीक्षा: इससे ज़्यादा नग्नता तो हम ओटीटी पर देख रहे हैं!

हर फ़िल्म में विवाद और मुद्दे खोजने की ज़रूरत नहीं है

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
January 30, 2023
in ओए एंटरटेन्मेंट, ज़रूर पढ़ें, रिव्यूज़
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पठान, पठान-विवाद और समीक्षा: इससे ज़्यादा नग्नता तो हम ओटीटी पर देख रहे हैं!
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पठान फ़िल्म के विवादों की बात करें या फिर फ़िल्म की बात करें, इससे कहीं बेहतर लगा कि दोनों की ही बात कर ली जाए. भारती पंडित ने यह फ़िल्म देखी और उनका कहना है कि कुल मिलाकर फ़िल्म अच्छी है. एक गाने को छोड़ दें तो फ़िल्म में कहीं भी आपत्तिजनक दृश्य नहीं हैं, इससे ज़्यादा नग्नता तो हम ओटीटी पर देख रहे हैं. ज़्यादा दिमाग़ लगाने की ज़रूरत नहीं, तकनीक देखो, ऐक्शन देखो, सुपर स्टार्स को देखो और घर आ जाओ. हर फ़िल्म में विवाद और मुद्दे खोजने की ज़रूरत नहीं है.

फ़िल्म: पठान
सितारे: शाहरुख़ ख़ान, दीपिका पादुकोन, जॉन अब्राहम, डिम्पल कपाड़िया, आशुतोष राणा और अन्य.
लेखक व निर्देशक: सिद्धार्थ आनंद
रन टाइम: 146 मिनट

एक महीने से कपड़ों के रंगों पर चलते विवाद और बायकॉट की गहमागहमी के चलते फ़िल्म को देखने की उत्सुकता जागी हुई थी. फ़िल्म के प्रदर्शन वाले दिन यानी 26 जनवरी को ढेरों प्रदर्शनकारी मॉल के सामने जमा थे, गोया फ़िल्म प्रदर्शन से इनकी निजी संपत्ति का नुक़सान होने वाला हो. खैर, हमने भी तीन दिन इंतज़ार करना मुनासिब समझा. आज फ़िल्म देखने गई तो पाया कि फ़िल्म में ऐसा कुछ है ही नहीं, जिसे इतना विवाद का विषय बनाया गया. विवाद का पहला तर्क नारंगी रंग की बिकनी पहनने पर, अरे भाइयों, यदि फ़िल्म का वह गीत ठीक से देखा हो तो समझ में आए कि उस गीत में दीपिका ने लगभग सारे रंगों के कपड़े पहन डाले हैं, अब यही एक रंग बचा था, इसे क्यों छोड़ा जाए? पर उत्पातियों का ध्यान केवल नारंगी रंग पर ही गया, हद है न? अरे ख़ुश होना चाहिए था कि नारंगी रंग को फ़िल्म में एक मुस्लिम लड़की (दीपिका का किरदार आईएसआई की एजेंट का है) के किरदार ने पहना है, लेकिन…

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विवाद का दूसरा तर्क कि देश के रॉ एजेंट को ऐसे क्यों दिखाया गया. तो भाई मेरे, यह फ़िल्म है और चूंकि भारत में बनाई गई है तो विलेन की भारत से नफ़रत के लिए कुछ तो सन्दर्भ बनाना पड़ेगा न? रॉ के काम पर हर देश में और भारत में भी कई फ़िल्में अब तक बनी है और ख़ूब देखी गई हैं… तो इस फ़िल्म पर विवाद क्यों? और फिर फ़िल्म का हीरो तो पक्का देशभक्त है न? (लोग उसे अफ़गानिस्तान का कह रहे हैं मगर कहानी के आधार पर स्पष्ट कर दूं कि उसका नाम पठान है पर वह भारत में जन्मा, पला, बढ़ा अनाथ बच्चा है, जो भारतीय सेना का जवान था और अफ़गानिस्तान के मिशन में एक गांव को बचाने के कारण स्नेह से उसे पठान नाम दिया गया ) मतलब भाई लोग फ़िल्म ठीक से देखने से पहले ही शुरू हो जाते हैं.

विवाद का तीसरा तर्क कि आईएसआई की एजेंट को भारत के प्रति वफ़ादार क्यों दिखाया गया. हद है यार, मतलब मुहब्बत करें तो दिक़्क़त, नफ़रत करें तो दिक़्क़त! ख़ुश होना चाहिए कि उस एजेंट ने हमारी सहायता की…

तो कुल मिलाकर विवाद के सारे तर्क एकदम बकवास रहे, मुझे तो लगा कि यह विवाद या तो शाहरुख़ का विरोध है या फिर ख़ुद शाहरुख़ और कंपनी ने अपनी फ़िल्म को हिट करवाने के लिए इसे प्रायोजित किया है. ख़ैर छोड़िए.

अब फ़िल्म पर आते हैं. आदित्य चोपड़ा ने इस बार प्रेम छोड़कर ऐक्शन में हाथ आज़माया है, तकनीक का बेहतर इस्तेमाल किया है और बढ़िया, रोचक फ़िल्म बनाई है यदि आप धुंआधार ऐक्शन और धूम-धड़ाम के शौक़ीन है तो यह फ़िल्म आपके लिए है. धारा 370 के ख़त्म होने के बाद पाकिस्तान की भारत को नुकसान पहुंचाने की मंशा रखने और उसके लिए एक आतंकी एजेंसी को आउटसोर्स करने से फ़िल्म शुरू होती है.

फ़िल्म की गति इतनी तेज़ है कि आपको सोचने का मौक़ा बिलकुल नहीं मिलता. सेना में सामान्यतः चोटिल हुए लोगों को सेवा निवृत्त कर दिया जाता है, मगर इस फ़िल्म में उन सबको जोड़कर एक अलग यूनिट बनाने और अलग तरीक़े के काम देने की पैरवी की गई है जो ठीक लगा. इसी यूनिट की हेड हैं डिम्पल और उनके साथ हैं पठान और उसके साथी. इनका मुक़ाबला है जिम से, जो भारत का भूतपूर्व रॉ एजेंट है और किसी कारणवश (वह कारण आप फ़िल्म देखकर ही पता करें) भारत सरकार और सेना के विरोध में है | जिम के साथ आईएसआई की एजेंट रुबीना है. ये सभी रक्तबीज की तलाश में हैं. फ़िल्म गति से आगे बढ़ती है, रक्तबीज जिम के हाथों लग जाता है, वह इससे संक्रामक वायरस बनाकर पाकिस्तान के इशारे पर भारत में संक्रमण फ़ैलाने की योजना बनाता है.

इस फ़िल्म का ऐक्शन, सिनेमेटोग्राफ़ी और दृश्यांकन आला दर्जे का है. यह फ़िल्म वाईईएफ़ की पहली डॉल्बी सिनेमा रिलीज़ है और पहली बॉलीवुड फ़िल्म है, जिसे पूरी तरह से आईमैक्स कैमरे के साथ शूट किया गया है. स्पेन, रूस और पैरिस के सुन्दर दृश्य कैमरे में क़ैद किए गए हैं. बर्फ़ पर स्कीइंग और लड़ाई का अंतिम दृश्य बहुत ही शानदार तरीक़े से फ़िल्माया गया है.

शाहरुख़ इस बार नए अवतार में हैं और बहुत अच्छे लगे हैं. लम्बे बालों का यह अवतार उन पर जमता है, जॉन भी अपनी भूमिका में बहुत फबे हैं…दोनों ने ही अपनी दूसरी पारी शानदार तरीक़े से खेली है. बीच में टाइगर यानी सलमान का आना हंसता है, पर शायद यह सिक्वेंस रोहित शेट्टी की सिम्बा की नकल है और अगली फ़िल्म की भूमिका भी. दीपिका सुन्दर हैं ही और कई दृश्यों में बहुत सुन्दर लगी हैं. हालांकि, उन पर बेवजह कम कपड़े पहनने का आरोप लगाया जा सकता है, पर इसे छोड़ दिया जाए तो फ़िल्म में कहीं भी आपत्तिजनक दृश्य नहीं हैं, इससे ज़्यादा नग्नता तो हम इन दिनों ओटीटी पर देख रहे हैं. इन सबके साथ फ़िल्म में आशुतोष राणा, डिम्पल और मनीष वाधवा हैं.

हां, विशेष यह कि इस फ़िल्म का पार्श्व संगीत इसकी जान है. जॉन की एंट्री पर तो शानदार ट्रैक बनाया है. बेशरम रंग पर विवाद बहुत हुआ, पर सुनने में गीत अच्छा लगा.

इस फ़िल्म के लेखक और निर्देशक सिद्धार्थ आनंद हैं, बढ़िया निर्देशन हैं, विशेषकर तकनीकी दृश्य और ऐक्शन दृश्य बहुत अच्छे बन पड़े हैं. तो कुल मिलाकर यह कि अपने को तो फ़िल्म अच्छी लगी, ज़्यादा दिमाग़ लगाने की ज़रूरत नहीं, तकनीक देखो, ऐक्शन देखो, सुपर स्टार्स को देखो और घर आ जाओ. हर फ़िल्म में विवाद और मुद्दे खोजने की ज़रूरत नहीं है जी. और हां, इस फ़िल्म ने बीते पांच दिनों में वर्ल्डवाइड बॉक्स ऑफ़िस पर 550 करोड़ कमा लिए हैं.

फ़ोटो: पिन्टरेस्ट

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हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

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