यूं तो कहने के लिए कवि हूबनाथ पांडे की यह कविता है, पर इसका एक-एक शब्द देश की दशा बयां कर रहा है. हम एक महान राष्ट्र के निर्माण के लिए बलिदान दे रहे हैं.
राष्ट्र संकट में है
उबरने के लिए
बलिदान चाहिए
आइए राष्ट्र के लिए
बलिदान हों!
राष्ट्र को धन दें
राष्ट्र को तन दें
राष्ट्र को मन दें
राष्ट्र को जीवन दें!
राष्ट्र के लिए
आइए!
हम सब एक साथ
दवा के अभाव में मरें
इस तरह कि
अंतिम संस्कार भी न हो
हम टीके के जाल में
छटपटाएं
अव्यवस्था में पटपटाएं
और कभी झुलस कर मरें
कभी हुलस कर मरें
कभी भूख से मरें
कभी बेकारी से
कभी महामारी से
मरते रहें
राष्ट्र निर्माण करते रहें
राष्ट्र की नींव में धंसें हम
हत्यारे की चाल में फंसें हम
हवा को तरसें
पानी को तरसें
पर उफ़ न करें
क्योंकि हमारी लाशों पर
एक महान देश बनेगा
धर्म का झंडा
आसमान तक तनेगा
और एक दिन बचा हुआ देश
एक साथ गाएगा
राष्ट्रगीत
बिके हुए राष्ट्र में
भेड़िए के ख़ूंख़ार जबड़े से
बचे हुए राष्ट्र का लोथड़ा
मरे हुए राष्ट्र के सम्मान में
विकास के गीत गाएगा
अतः
विकास के उस भावी यज्ञ में
हम सब
अपने पूरे परिवार सहित
सभी परिजनों सहित
आओ!
हवन कुंड में कूदें!
हमारी मांस के चिरायंध गंध से
हवा में ऑक्सीजन बढ़ेगा
सेंसेक्स आसमान चढ़ेगा
और राष्ट्र निर्माता
एक नया झूठ गढ़ेगा
आइए!
हम सब
झूठ की बलिवेदी पर
सत्य को हलाल करें
सत्य हमेशा
सबसे बड़ी रुकावट रहा है
किसी भी महान राष्ट्र के
नवनिर्माण में
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