एक ऐसी कविता, जो इन दिनों देश की किसी भी समस्या के फौरी हल ढूंढ़ निकालने की सियासती आदत की ओर ध्यान दिलाते हुए हाल के समय को बड़े सटीक तरीक़े से और बख़ूबी बयां करती है.
इस बार
माहिष्मती में
पड़ा अकाल
बुद्धि का
विचारों का
संस्कारों का
अकाल पड़ा
न्याय का
समानता का
सामंजस्य का
अकाल पड़ा
सहिष्णुता
संयम
क्षमाशीलता का
माहिष्मती नरेश
अत्यंत व्याकुल
घोर चिंतित
अकाल से नहीं
अकाल की ख़बर
अन्य देशों तक
पहुंचने के कारण
महामात्य ने
बची हुई बुद्धि से
राह सुझाई
और माहिष्मती
पूर्णतः मुक्त हुई
सभी अकालों से
क्षण भर में
क्योंकि
अब माहिष्मती
महिमावती नाम से
जानी जाती है
और अभी
महिमावती के
अकाल की ख़बर
महिमावती में ही
नहीं पहुंची है
फ़ोटो: फ्रीपिक